Monday, July 19, 2010

श्रेष्ठ और मनचाही संतान कैसे प्राप्त करें?

शादी के बाद हर व्यक्ति , चाहे वह स्त्री हो या पुरुष , एक सुन्दर, बुद्धिमान तथा श्रेष्ठ संतान की कल्पना करता है। और यह संभव भी है, बशर्ते आप थोड़ी निष्ठां और नियम से बताई गयी विधि का पालन करें।

आजकल चर्चा में चल रहे नवयुवक तथागत अवतार तुलसी की अद्वितीय प्रतिभा ने मेरा ध्यान इस तरफ खींचा और मैंने कोशिश की इस बात को जानने की , कि क्या ऐसा संभव है?

हमारे वेदों में कितना ज्ञान भरा पड़ा है , कभी हमने जानने की कोशिश नहीं की । अथर्व-वेद के उपवेद , आयुर्वेद में 'पुंसवन-संस्कार' नामक एक संस्कार है जिससे इच्छित संतान [ बेटा या बेटी ] तथा उत्तम गुणों से युक्त , प्रतिभाशाली संतान प्राप्त की जा सकती है।

हमारे प्राचीन वेदो में श्रेष्ठ संतान को सबसे ज्यादा महत्व दिया है और शायद इसी बजह से हमारे शास्त्रो में उसके लिये कई सारे उपाय भी हमारे ऋषिओं ने बताये भी है। पुंसवन संकार पुर्णत: वैज्ञानिक पद्धति से होने वाली एक महत्वपूर्ण गर्भधान प्रक्रिया है भारतीय संस्कृति की यह बहुत बडी उपलब्धि है गर्भविज्ञान और आनुवंशिकता के कई सिद्धांत इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है इस में साथ साथ प्रभाव चिकित्सा, गर्भसंस्कार एवं बाल आरोग्य का तर्कबद्ध समन्वय है।

योग्य रीति से श्रद्धापूर्ण तपश्चर्या रुप चिकित्सा से कोई भी दँपत्ति अपने दैवयोग से अपनी ईच्छानुसार संतान प्राप्त करने में सफल रहता है ।


आज कल क्रोस ब्रीडिंग से अच्छी नस्ल के जानवर , फल और सब्जियां तो उगा रहे हैं, लेकिन अफ़सोस है कि उत्तम गुणों से युक्त संतान प्राप्ति के लिए बहुत विरले लोग ही प्रयासरत हैं।

इन प्रयासों से हम आने वाली पीढ़ियों को भी बेहतर बना सकते हैं , क्यूंकि श्रेष्ठ गुण उन्हें अनुवांशिकता में मिलने लगेंगे।

पश्चिम कि दौड़ में हम अपने ही घर में रखी बहुमूल्य धरोहर को नहीं पहचान रहे ।


164 comments:

Satish Saxena said...

अछूते विषय पर लिखे लेख के लिए बधाई दिव्या जी ! कमाल की हिंदी लिख रही हो !

ZEAL said...

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सतीश जी,

आप लोगों की ही प्रेरणा का परिणाम है । आशीर्वाद बनाएं रखें ।
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प्रवीण पाण्डेय said...

संस्कार गर्भ के समय ही मिलने लगते है, यह भारतीय संस्कृति की मान्यता है। इसी बहाने माँ कितनी ही अच्छी ज्ञान भरी बातें सीख लेती है। विचारणीय प्रस्तुति।

Amit Sharma said...

हिन्दू धर्म में, संस्कार परम्परा के अंतर्गत भावी माता-पिता को यह तथ्य समझाए जाते हैं कि शारीरिक, मानसिक दृष्टि से परिपक्व हो जाने के बाद, समाज को श्रेष्ठ, तेजस्वी नई पीढ़ी देने के संकल्प के साथ ही संतान पैदा करने की पहल करें । गर्भ ठहर जाने पर भावी माता के आहार, आचार, व्यवहार, चिंतन, भाव सभी को उत्तम और संतुलित बनाने का प्रयास किया जाय । उसके लिए अनुकूल वातवरण भी निर्मित किया जाय । गर्भ के तीसरे माह में विधिवत पुंसवन संस्कार सम्पन्न कराया जाय, क्योंकि इस समय तक गर्भस्थ शिशु के विचार तंत्र का विकास प्रारंभ हो जाता है । वेद मंत्रों, यज्ञीय वातावरण एवं संस्कार सूत्रों की प्रेरणाओं से शिशु के मानस पर तो श्रेष्ठ प्रभाव पड़ता ही है, अभिभावकों और परिजनों को भी यह प्रेरणा मिलती है कि भावी माँ के लिए श्रेष्ठ मनःस्थिति और परिस्थितियाँ कैसे विकसित की जाए ।

http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0

कडुवासच said...

....बेहतरीन अभिव्यक्ति!!!

शिवम् मिश्रा said...

दिव्या जी,
बहुत बढ़िया लिखा है आपने ..........आगे भी इस तरह के अनछुए विषयो पर आपके विचार पढने को मिलेगे यही आशा है ! शुभकामनाएं !

ashish said...

परम्परागत लीक से हटकर ज्ञानवर्धक पोस्ट. हिन्दुस्तानी चिकित्सा पद्धति की वैदिक अवधारणा पर बल देती , और पाठको को इस बारे में सोचने पर विवश करेगी .

हमारीवाणी said...

हिंदी ब्लॉग लेखकों के लिए खुशखबरी -


"हमारीवाणी.कॉम" का घूँघट उठ चूका है और इसके साथ ही अस्थाई feed cluster संकलक को बंद कर दिया गया है. हमारीवाणी.कॉम पर कुछ तकनीकी कार्य अभी भी चल रहे हैं, इसलिए अभी इसके पूरे फीचर्स उपलब्ध नहीं है, आशा है यह भी जल्द पूरे कर लिए जाएँगे.

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Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

नया विषय पर लिखने के लिए बधाई ...

दिगम्बर नासवा said...

हमारे ग्रंथों में बहुत कुछ रहस्य छिपा है .. ज़रूरत है उनको पुनः वैज्ञानिक तरीके से खोज कर कमर्शियल तरीके से प्रयोग में लाने की .... अछा लिखा है आपने बहुत ...

डॉ टी एस दराल said...

वह समय भी जल्दी ही आने वाला है दिव्या जी , जब इंसान डिजाइनर बच्चे पैदा करने लगेगा ।
१९८० के आस पास एक जेम्स बोंड की फिल्म आई थी --मूनरेकर । इसमें कुछ ऐसा ही दिखाया गया था ।

सतीश जी से सहमत । आपकी हिंदी बहुत बढ़िया है । हिंदी में ही लिखते रहिये । बहुत लोगों का भला हो रहा है ।

Coral said...

A very thoughtful note on an important subject !

सम्वेदना के स्वर said...

मैं तो डॉ. अमर कुमार की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करूँगा...विषय अछूता है, किंतु शास्त्रों से अछूता नहीं.लेकिन इस विषय को लेने से पहले एक प्रश्न अनुत्तरित रह जाता है. कितने ही दम्पत्ति शरीरिक, मानसिक एवम् जैविक रूप से स्वस्थ होते हुए भी निःसंतान हैं.तो पहले यह विषय लेना चाहिए कि इसके कारण क्या हो सकते हैं तथा इसका समाधान क्या है. फिर यह विषय.
वैसे विषय बिल्कुल अनोखा और हमारी पौराणिक मान्यताओं को स्थापित करता है.मेरी जनकारी इस विषय में बिल्कुल शून्य है, किंतु आस्था प्रगाढ़. धन्यवाद! अछूते विषयों को इस मंच पर प्रस्तुत करने के लिए.

Arvind Mishra said...

डिजाईनर बेबी की वांछना आदि काल से ही रही है और मनुष्य ने कितने ही पापड इसलिए बेले हैं ....ब्लू ब्लड की शुद्धता बनाये रखने के लिए अपने वंश के ईतर दूसरे वंशों से मेल पर प्रतिबध भी रहा है और इसके विपरीत संकरण से वांछित गुणों की प्राप्ति के लिए "श्रेष्ठ नस्लों " से मेल की भी चाह रही है ....
इस विषय पर यह कहानी मैंने कुछ वर्षो पहले लिखी थी -मनचाही संतानयहाँ पढ़ सकती हैं!
एक बात बताएं जब इतनी अच्छी हिन्दी आप लिख सकती थीं तो अपने शुभचिंतकों से क्यों रार किये हुए थीं ...

संजय @ मो सम कौन... said...

रोचक विषय छेड़ा है आपने, वैसे यहाँ तो भारत सरकार ने मनचाही संतान का दावा करने वाले दवाखानों, प्रयोगशालाओं आदि पर रोक लगा रखी है :)


@ पश्चिम कि दौड़ में हम अपने ही घर में रखी बहुमूल्य धरोहर को नहीं पहचान रहे:
-----------
मुझे तो लगता है कि पश्चिम ने जबसे हमारे वेद, ग्रन्थ, चिकित्सा प्रणाली, योग जैसी विधाओं को मान्यता दी है, उसके बाद से ही हमने इनका महत्व समझना शुरू किया है।
और कमेंट्स का भी इंतज़ार रहेगा, विविध विचारों से विषय रुचिकर लगने लगता है।

डा० अमर कुमार said...
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एक बेहद साधारण पाठक said...

मैं आ रहा हूँ .. थोड़ी सी देर में :)

एक बेहद साधारण पाठक said...

समय कितना भी कम हो एक दो सवालों का जवाब तो दे ही सकता हूँ , जिससे श्रद्धा को बल मिले , तर्क शक्ति को भी

एक बेहद साधारण पाठक said...

@अमर जी
कृपया यहाँ पढ़ें और बताएं पढ़ कर कैसा लगा ???
मेरा भी समय बच गया

http://tarunchhattisgarh.com/index.php/2010-04-05-07-45-16/1610-2010-07-02-10-00-54

ethereal_infinia said...

Dearest ZEAL:

If only it were so easy to have wishes fulfilled!! Zmiles.

Child Prodigies happen all over the world. Einstien also gave the famous E=MC^2 at a very young age.

It has nothing to do with mantra-tantra. Tathagat is surely a great prodigy. But that is it. Now that he is famous, his parents are trying to create a myth around him.

He is a simple, straight-forward case of extra-ordinary brilliance.

On a tangential thought, in a worse case scenario, such a capability could prove even more detrimental to the birth ratio of 'girl child' because it gives hope to believers that they can choose / manipulate everything in their progeny - including the gender.

Luckily, course of life runs its own unalterable path and whenever humans have tried to play God, they have failed miserably.


Arth kaa
Natmastak charansparsh

एक बेहद साधारण पाठक said...

मित्र कईं लोग इस बात पर आज भी बहस करते हैं की आइन्स्टाइन योगी थे या वैज्ञानिक ???

एक बेहद साधारण पाठक said...

एक समकालीन लेखक, विलियम स्तुकेले, सर आइजैक न्यूटन की ज़िंदगी को अपने स्मरण में रिकोर्ड करते हैं, वे 15 अप्रैल 1726 को केनसिंगटन में न्यूटन के साथ हुई बातचीत को याद करते हैं, जब न्यूटन ने जिक्र किया कि "उनके दिमाग में गुरुत्व का विचार पहले कब आया.

जब वह ध्यान की मुद्रा में बैठे थे उसी समय एक सेब के गिरने के कारण ऐसा हुआ. क्यों यह सेब हमेशा भूमि के सापेक्ष लम्बवत में ही क्यों गिरता है? ऐसा उन्होंने अपने आप में सोचा.यह बगल में या ऊपर की ओर क्यों नहीं जाता है, बल्कि हमेशा पृथ्वी के केंद्र की ओर ही गिरता है."


hi.wikipedia.org

ZEAL said...

@ संवेदना के स्वर,

आपके साथ मुझे भी था इंतज़ार, लीजिये ख़तम हुआ इंतज़ार.

@ अरविन्द मिश्र,

अभी तो ये शुरुआत है। उपन्यास इत्मीनान से पढ़िए। आगे आगे देखिये होता है क्या ।

@ डॉ अमर,

एक सार्थक टिपण्णी के लिए बहुत बहुत आभार। बहुत कुछ नया सिखा गयी आपकी टिपण्णी।

अभिन्न said...

gyanvardhak lekh,is tarah ke vishyon par bahut kam padhne ko milta hai aap badhai ki patraa ho ki aapka kalam par pura adhikaar hai
dhanyavaad sahit

ZEAL said...

@ Arth Desai,

He is indeed a child / physics /Indian Prodigy. No doubt about it. But if his father is claiming that he did some experiment during conception, prior to his birth, we ought to know about it. There is no point ignoring the fact.

If you think it is all myth , then why did you mention God?. He is also a myth then. Isn't it ?

Don't you believe in our ancient texts? Do you think whatever written in our texts and Vedas are all myth?

'Punsavan sanskaar ' as mentioned in Ayurvada was in practice at that time. It was all established and proven facts. These are not mere fairy tales. Everything mentioned in our texts are quite scientific .

Ancient medicine is thousands of year old . Modern medicine is developed in 19th century only.

People from west are progressing by stealing our texts and experimenting and patenting the scientific illustrations mentioned there. But unfortunately we are not understanding the significance of our texts and following west with herd mentality.
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एक बेहद साधारण पाठक said...

अभी बहुत कुछ कहना बाकी है .. पर अभी मुझे जाना होगा .... सार बात कहूँगा ये करीब करीब सभी बातें वैज्ञानिक हैं पर ना तो कोई ठीक से सीखने वाला गुरु है न सीखने वाले शिष्य

@दिव्या जी, आप का धन्यवाद करने के लिए एक बड़ा सा कमेन्ट बनाना पड़ेगा लगता है ... हरबार इतना अच्छा विषय ... वाह , मान गए आपको

हमें जब तक "मुर्गी हुयी या अंडा .. साइंटिस्ट" किसी नए पेकेट में लपेट कर ये ही ज्ञान वापस नहीं देंगे हम लोग भी इसे अपनाने से कतराते रहेंगे

फिर भी आप जैसे ब्लोगर उजाले की तेज किरण तो साबित होंगे ही जो अँधेरे में बहुत तेज उजाला इस पोस्ट के जरिये फैला रहे हैं

ZEAL said...

@-Gaurav,
@-Abhinna,

Thanks for the encouragement.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

ए भाई.. माफ करना बहिन..हड़बड़ाहट में भाई बहिन भी भुला गए हैं हम..डॉक्टर साहब का बात सुनकर त हमको भी लगता है कि एतना बात बोले हैं त बतिया सहिये होगा... लेकिन एगो बात समझ में नहीं आया...
तब क्या जानता था कि कोई दिव्या जी आकर यह मुझसे यह सब उगलवा लेंगी । धन्यवाद दिव्या !

ई त अन्याय है डोक्टर साहेब... उगलवाया सम्वेदना के स्वर, अऊर आप धन्यवाद दे रहे हैं दिव्या को..
सोचा था कि आज कोई टिप्पणी ही नहीं करूँगा ।
सम्वेदना के स्वर की हुँकार ने विचलित कर दिया ।
और यह शैतान हाज़िर है ।
आप जईसे ज्ञानी ब्यक्ति को एतना गोस्सा करना ठीक नहीं...चलिए उनका तरफ से हम माफी माँग लेते हैं.

देवेन्द्र पाण्डेय said...

अच्छी आत्माएँ वहीं जन्म लेना चाहती हैं जहाँ दम्पत्ति आपस में खूब प्रेम से रहते हैं. अतः अच्छी संतान की आकांक्षा रखने वाले दम्पत्तियों को आपस में खूब प्रेम से रहना चाहिए.

डा० अमर कुमार said...
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डा० अमर कुमार said...
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डा० अमर कुमार said...
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बाल भवन जबलपुर said...

सार्थक आलेख

बाल भवन जबलपुर said...

इन प्रयासों से हम आने वाली पीढ़ियों को भी बेहतर बना सकते हैं , क्यूंकि श्रेष्ठ गुण उन्हें अनुवांशिकता में मिलने लगेंगे।पश्चिम कि दौड़ में हम अपने ही घर में रखी बहुमूल्य धरोहर को नहीं पहचान रहे ।
=> सही कहा आपने इसे गम्भीरता से लेना ही होगा

वाणी गीत said...

रोचक जानकारीपरक आलेख ...
क्या कहें कि आगे आगे देखने का किस बेसब्री से इंतज़ार है...:)

Gyan Darpan said...

इस विषय को आगे बढाया जाय

एक बेहद साधारण पाठक said...

@ आदरणीय अमर जी
आपसे सहमत हूँ
लगता है आपकी बात पूरी तरह समझ नहीं पाया था
इसके लिए क्षमा चाहता हूँ

ZEAL said...

पुंसवन संस्कार , से लड़का या लड़की , इच्छित संतान प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन डर इस बात का है की हमारे यहाँ की मुर्ख जनता गुणों पर ध्यान न देकर , बेटा चाहिए, इस बात पर ही ज्यादा देगी। कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा मिल सकता है। पुरुष-स्त्री का अनुपात और भी ज्यादा बढ़ सकता है । लोगों को अच्छे गुणों से युक्त संतान मिले न मिले , वो तो बस लड़का चाहिए इस फ़िराक में लग जायेंगे । इस संस्कार का अनुचित उपयोग होने की ज्यादा संभावनाएं हैं।

आपका क्या ख्याल है?

ZEAL said...

हम अपनी संतान को सुन्दर , बुद्धिमान और सर्वगुण संपन्न तो चाहते हैं , लेकिन क्या हम इन गुणों से युक्त कन्या की कल्पना करेंगे?

तथागत अवतार तुलसी तीन भाई है। काश उसकी एक बुद्धिमान बहेन भी होती?

कभी नहीं होगी इतनी बुद्धिमान लड़की, क्यूंकि लोग जब इस विधि से संतान प्राप्ति के लिए प्रयासरत होंगे तो वे बेटा मिल जाये यही कोशिश करेंगे।

प्रश्न यह है की क्या कोई होनहार बेटा, एक होनहार बेटी की भी कामना रखता है?

ZEAL said...

@-ई त अन्याय है डोक्टर साहेब... उगलवाया सम्वेदना के स्वर, अऊर आप धन्यवाद दे रहे हैं दिव्या को..

बिहारी भाई,

धन्यवाद की कामना नहीं है। यह तो डॉ अमर का बड़प्पन है की उन्होने धन्वाद कह दिया। बड़ों के आशीर्वाद से ही छोटे तरक्की करते हैं।

Smart Indian said...

स्पष्टीकरण के लिये शुक्रिया डौ0 साहेब!

ZEAL said...

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Most of couples have question only on the male or female child, but the important question would be how we can get child best ever. What are the guidelines for making our child genius, clever, Intelligent, cultured, civilized, Polite all qualities to make itself best ever?
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ZEAL said...

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समाज की विकृत मानसिकता में जकड़े हुए दम्पति , USG करवा के कन्या भ्रूण की निर्ममता से क़त्ल कर देते । और पुत्र प्राप्ति के लिए बार बार इस घृणित कार्य को दोहराते हैं ।

इससे तो बेहतर होगा , पुंसवन संकार से ही बेटा प्राप्त कर लें एक बार में ही, कम से कम धारा ३०२ के अभियोग एवं कलुषित मानसिकता से तो बचेंगे।
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ZEAL said...

मालूम नहीं कितने लोग इसे पढ़कर बोर हो रहे हैं। लेकिन विषय को अधुरा छोड़ना विषय और मेरी खुद की इमानदारी से अन्याय होगा। इसलिए अकेले ही चर्चा जरी है। जो पढेंगे , उन्हें अवश्य ही लाभ होगा।

अच्छे कारणों से की गयी चर्चा , जो जन-मानस के अंतर्मन को उद्वेलित करे , वो व्यर्थ नहीं हो सकती ।
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Avinash Chandra said...

दिव्या जी,
इस पर टिप्पणी करने का सामर्थ्य नहीं मुझमे शायद.
हाँ, लेकिन विषय बहुत सोचनीय और अलग है.
अमर जी ने जो बातें रखीं उनका भी बहुत धन्यवाद, आपको तो है ही.

ZEAL said...

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प्राचीन काल में इन विधियों एवं संस्कारों द्वारा ही - राम, कृष्ण , अर्जुन , ध्रुव, प्रहलाद, युधिस्ठिर ,दिलीप , अज, रघु तथा आज के तथागत अवतार तुलसी जैसे प्रतिभाशाली युवकों का जन्म हुआ।

हम लोग भाग्यशाली हैं की आज भी यह सब कुछ हमारे ग्रंथों में , लिपिबद्ध हैं , और हम उसका लाभ उठा सकते हैं।

पहले भारत को ' सोने की चिड़िया ' कहा जाता था , क्यूंकि लोगों को पारद से सोना बनाना आता था। 'स्वर्ण - निर्माण' की विधि आज भी ग्रंथों में लिपिबद्ध है , लेकिन दुर्भाग्य से कोई भी आज तक संस्कृत में वर्णित - 'षोडश संस्कारों ' का सही अनुवाद नहीं कर सका ।

केवल आठ संस्कार तक ही लोग अनुवाद कर पाएं हैं। हमारे संस्कृत के विद्वानों को ये प्रयास करना चाहिए की गूढ़ संस्कृत में लिखी इस अमूल्य धरोहर को अनुवाद करके , फिर से भारत को 'सोने की चिड़िया' बना दें ' ।

ZEAL said...

अविनाश जी,

पढने का आभार। पाठकों के पढ़ लेने से लिखने का सुकून मिल जाता है।

याद आया ...मुझे एक कप चाय की बहुत आवश्यकता है...अभी आती हूँ वापस..

Be right back after the commercial break....

cutting chai is badly needed !

Divya and her ginger tea !

वाणी गीत said...

लोगों को अच्छे गुणों से युक्त संतान मिले न मिले , वो तो बस लड़का चाहिए इस फ़िराक में लग जायेंगे...
खूब नब्ज़ पकडती हो ...समय की पाबन्दी है वरना अदरक और काली मिर्च की चाय के साथ इस बहस में भाग लेते ...!

seema gupta said...

इस महत्वपूर्ण विषय पर क्या कहूँ कुछ समझ नहीं आ रहा, आलेख के साथ साथ इतने गुनी जनों की सार्थक टिप्पणियाँ भी पढने को मिली , और कुछ रोचक जानकारियां प्राप्त हुई.
regards

ZEAL said...

हा हा हा ...वाणी जी ... अदरक और काली मिर्च तो मज़ा ला देगी॥

सीमा जी , बहुत आभार ।

@ बेचैन आत्मा जी,

आपने सही कहा ...अच्छी आत्माएँ वहीं जन्म लेना चाहती हैं जहाँ दम्पत्ति आपस में खूब प्रेम से रहते हैं। अतः अच्छी संतान की आकांक्षा रखने वाले दम्पत्तियों को आपस में खूब प्रेम से रहना चाहिए.

गौरतलब है।

प्रवीण said...

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@ डॉक्टर अमर कुमार,

धन्यवाद सर!

भले ही नक्कारखाने में तूती सी ही... पर एक Sane Voice तो हैं ही आप... आभार आपका !

दिव्या जी,

यह रहे आपके...

गर्भाधान संस्कार...

एवम्

पुंसवन संस्कार...

जितना पढ़ो इनके बारे में... समझ नहीं आता हंसूं या रोऊं...

एक बानगी पेशे-नजर है...

सनातन धर्म पुस्तकालय , इटावा द्वारा 1926 में छपवाई गई ‘ ‘षोडष संस्कार विधि‘ के अनुसार गर्भाधान संस्कार में यह मन्त्र लेटी हुई पत्नी की नाभि के आसपास हाथ फेरते हुए 7 बार पढ़ा जाता है ।

ओं पूषा भगं सविता मे ददातु रूद्रः कल्पयतु ललामगुम ।
ओं विष्णुर्योनिं कल्पयतु त्वष्टा रूपाणि पिंशतु ।
आसिंचतु प्रजापतिर्धाता गर्भं दधातु ते ..
ऋग्वेद 10-184-1

अर्थात पूषा और सविता देवता मुझे भग ( स्त्री की योनि ) दें , रूद्र देवता उसे सुन्दर बनाए । विष्णु स्त्री की योनि को गर्भ धारण करने योग्य बनाए , त्वष्टा गर्भ के रूप का निश्चय करे , प्रजापति वीर्य का सिंचन करे और धाता गर्भ को स्थिर करे ।


हा हा हा हा,

जो मानता है करे यह सब!
मैं तो Nobel Laureates की फौज के इस महान भारतदेश मे अवतरण का इंतजार कर रहा हूँ... ४० का हूँ ३०-४० वर्ष से ज्यादा नहीं है मेरे पास... सुन रहे हैं आप लोग!


आभार!


...

ashish said...

@प्राचीन काल में इन विधियों एवं संस्कारों द्वारा ही - राम, कृष्ण , अर्जुन , ध्रुव, प्रहलाद, युधिस्ठिर ,दिलीप , अज, रघु तथा आज के तथागत अवतार तुलसी जैसे प्रतिभाशाली युवकों का जन्म हुआ।

मुझे अभी से तथागत को उन महापुरुषों की श्रेणी में खड़ा करना कुछ अतिरंजना प्रतीत हो रही है. उसको अभी बहुत कुछ सत्यापित करना होगा , उन महापुरुषों के योगदान के कुछ अंश तक पहुचने में. मै मानता हूँ की अकादमिक महत्ता , किसी को महापुरुष नहीं बना सकती है , मानवीय गुणों का ज्यादा प्रभाव होता है. और एक बात और पूछना चाहूँगा, क्या तथागत के दोनों भाई तथागत के जैसे ही है ?? या उनपर उनके पिता ने अपने पुंसवन कर्मो का प्रयोग नहीं किया?

एक बेहद साधारण पाठक said...

बड़ा दुःख होता है ये देखकर की योगियों के दिए रहस्यों पर लोग हँसते हैं
अगर कोई अवतार पैदा हो जाए तो एक न्यूज लिंक देकर उसे पूरी तरह नकार कर बुद्धि जीवी होना का सुख भी प्राप्त किया जाता है और नए अवतार का इन्तजार भी रहता है .... नयी न्यूज , नया खंडन , नया बुद्धि जीवी होने का एहसास .. हाँ भाई इस सुख का भी कोई मुकाबला नहीं होता

@ आशीष भाई

कहते हैं जब तक विवेकानंद अमेरिका नहीं गए थे भारत में उन्हें कोई नहीं जानता था , किसी भी इंसान को अवतार मानना (जब वो आपके सामने हो) कठिन होता है
....होने को तो हम सभी अवतार हैं ( आखिरकार हैं तो आत्माएं ही ना) , पर अब क्या कहूँ .. शायद हमें खुद पर उतना यकीन नहीं है या इश्वर पर ??

हमें अनुपात देखना होगा ..... तब के ज़माने के लोगों की मानसिक और शारीरिक शक्ति के अनुपात में अर्जुन जैसे लोग अवतार थे आज के अनुसार तथागत अवतार माना जा सकता है

एक बेहद साधारण पाठक said...

मैं ये नहीं बोलने वाला था पर अब लगता है बोल देता हूँ

ऐसा माना जाता है की मानव शरीर और सारा संसार पंचभूतों से बना है ( अग्नि, जल ....).
योगी किसी एक तत्व पर भी अधिकार जमा लेते तो उस पर नियंत्रण कर लेते होंगे
जल को रोकना , सालों तक तपस्या करना तो उनके लिए बहुत छोटे स्तर के काम होते हैं
असली खजाना तो इश्वर से जुड़ कर ईश्वरीय आंनद पाने में ही होता है
अब मुझे समझ आ रहा है की एक कथा में ऐसा क्यों कहा गया है की स्वामी विवेकानंद ने किसी को गीता पढने से पहले फुटबाल के मैदान में जाने की सलाह दी
ताकि इन सब बातों को वो ठीक से समझ पाए वर्ना वो भी कोरी गप मानकर पढ़ तो लेता और बाद में हँसता

ashish said...

गौरव जी , मै मानता हूँ की अवतार , आत्मा ही होती है , और मैंने ये कहा की तथागत को उन महापुरुषों की श्रेणी में गिने जाने के लिए , विवेकानंद की तरह अपने आप को सिद्ध करना होगा. और मेरे महतवपूर्ण सवाल का जवाब लगता है आप देना भूल गए. तथागत के दोनों अनुजो के बारे में?? मेरी जानने की इच्छा है की उन पर पुंसवन का कितना असर रहा. आप जैसे ज्ञानी पुरुष इस पर प्रकाश डाले तो पाठको के ज्ञान में वृद्धि होगी.

एक बेहद साधारण पाठक said...

हाथ की पाँचों उंगुलियां बराबर नहीं होती पर सभी का अपना महत्त्व होता है ये बात तो मानेंगे न मित्र ??
हम तो अंगूठे का प्रयोग ही करते हैं अक्सर सफलता दिखने के लिए " थम्ब्स अप " या फिर डाउन करके हार दिखाने में


शायद हम तथागत की सर्टिफिकेट या विवेकानंद की मेमोरी को उपलब्धि मानते हैं
दूर कहीं गुफाओं में तप करने वाले ऋषि मुनि हमारे पूरे जीवन को "टाइम पास" मानते होंगे

हम अर्जुन को ज्यादा जानते हैं इससे नकुल और सहदेव का महत्त्व कम नहीं होता ना ?

इतिहास में ऐसे न जाने कितने अवतार होंगे जिन पर मीडिया की नजर न पड़ी हो

सदा said...

दिव्‍या जी, आलेख का विषय पूरी तरह ध्‍यान आपनी ओर आकृष्‍ट करता है, पर मैं भी वाणी जी कि बात से पूर्णत: सहमत हूं कि लोगों की जो मानसिकता है वह यही है उन्‍हें बेटा हो, बेटी से तो वह बचते ही रहते हैं, और उनके विचार इतनी आसानी से बदलने वाले नहीं, बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये बधाई ।

ashish said...

शायद आप मेरे मूल प्रश्न का जवाब घुमा फिरा कर देना चाहते है . ये सबको पता है जो अपने बताया , मेरी तो ये जानने की इच्छा है की पुंसवन का प्रयोग तथागत के पिता जी ने अपने बाकी दोनों पुत्रो पर किया की नहीं?? और अगर किया तो सफल हुए या नहीं?? अगर सफल नहीं हुए तो क्यों?? और आप ये कहना चाहते है की तथागत मीडिया द्वारा उत्पन्न अवतार है?? अगर वर्तमान के कुछ और अवतारों पर प्रकाश डाले तो महती कृपा होगी. .

एक बेहद साधारण पाठक said...

हा हा हा ...... मैं जानता था ऐसा ही कोई उत्तर आएगा मित्र
पर मुझे तथागत के भाइयों के बारे में कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं है इसलिए मैंने घुमा फिराकर उत्तर दिया है
मैं तो बस ये मान कर चल रहा हूँ की प्रयोग किये भी गए हों और उनका असर हमें नजर न आता हो यानि वो प्रोफ़ेसर नहीं बने हों तो भी हम इसी बात को प्रयोग की असफलता नहीं मान सकते....
आपको असंतुष्ट होने का पूरा अधिकार है मित्र

एक बेहद साधारण पाठक said...

@ क्या तथागत मीडिया द्वारा उत्पन्न अवतार है ??

मैं ये नहीं कह रहा की तथागत मीडिया द्वारा उत्पन्न अवतार है
मैं बस ये कह रहा हूँ की वो अवतार (माना जा सकता) है जिस पर मीडिया की नजर गयी है

एक बेहद साधारण पाठक said...

@अगर वर्तमान के कुछ और अवतारों पर प्रकाश डाले तो महती कृपा होगी.

अगर मैं किसी को अवतार मानता भी हूँ (माना) तो आप कहेंगे की इनकी प्रमाणिकता किस लेब से प्राप्त होगी ??? तब मैं क्या कह पाउँगा ???
अगर आप तथागत के नाम पर भी सहमत नहीं है तो देखिये न मैं तो कुछ कह ही नहीं पा रहा मित्र

एक बेहद साधारण पाठक said...

सार बात कहूँगा ये करीब करीब सभी बातें वैज्ञानिक हैं पर ना तो कोई ठीक से सिखाने वाला गुरु है न सीखने वाले शिष्य

एक बेहद साधारण पाठक said...

मैं एक ऐसी बात का समर्थन कर रहा हूँ जिसका समर्थन करने से बेहतर लोग उस पर हँसना बेहतर समझते हैं
मैं जब भी अपना ब्लॉग स्टार्ट करूँगा हो सका तो भारतीय संस्कृति कितनी अधिक वैज्ञानिक है इस पर प्रकाश डालने का पूरा प्रयास करूँगा
मैं अभी यहाँ कमेन्ट अन्सब्स्क्राइब करने आया था

ashish said...

आप अनुसंधानक हो , और जहा तक मै जानता हूँ , अनुसन्धान के लिए प्रमाण और तथ्यों का ज्ञान होना जरुरी है . कृपया मेरी बातो का अन्यथा ना ले. मै अपने पहले कमेन्ट में कह चूका हूँ की वैदिक चिकित्सा पद्धति का पुनुर्त्थान जरुरी है , मेरा मतलब केवल ये ज्ञात करना था की ये पुंसवन विधि कितनी कारगर है और क्या ये हर बार सफल रहती है. चले भैया कुछ काम कर ले.धन्यवाद.

ZEAL said...

१-@-मुझे अभी से तथागत को उन महापुरुषों की श्रेणी में खड़ा करना कुछ अतिरंजना प्रतीत हो रही है. उसको अभी बहुत कुछ सत्यापित करना होगा , उन महापुरुषों के योगदान के कुछ अंश तक पहुचने में...

२-@-और एक बात और पूछना चाहूँगा, क्या तथागत के दोनों भाई तथागत के जैसे ही है ?? या उनपर उनके पिता ने अपने पुंसवन कर्मो का प्रयोग नहीं किया?

आशीष जी,

१-जितना सतयुग और कलियुग में अंतर है, उतना ही राम और तथागत में है। दोनों युगों के सन्दर्भ में नाम एक साथ लिखने से राम और अर्जुन की महिमा कम नहीं हो जाएगी। रही बात तथागत की तो, उसे समय मिलना चाहिए अपनी काबिलियत सिद्ध करने की, वैसे मेरे विचार से, वो जितना सिद्ध कर चूका है, उतना ही काफी है। हम उससे मंदराचल उठाने की उम्मीद नहीं करते।

२-तथागत के पिता ने किस पर प्रयोग किया , किस पर नहीं यह मालूम नहीं , लेकिन जिसपर किया, जिसे वह अधिकार के साथ कह रहे हैं, हम तो उसकी ही चर्चा कर सकते हैं।

वैसे एक बात बता दूँ, आज के सन्दर्भ में, यदि किसी को पुंसवन संस्कार का प्रयोग करना हो तो , पहली संतान पर न किया जाये। क्यूंकि यह संस्कार इतने समय से विलुप्त सा रहा है, इसलिए कोई भी डॉक्टर इसकी पूरी जिम्मेदारी अपने ऊपर नहीं लेगा। क्यूंकि डॉक्टर की इस विषय में जानकारी सीमित है। डॉक्टर से छोटी सी गलती हुई नहीं की लोग उसे consumer forum में खींचने में जरा भी नहीं हिचकेंगे।

यह श्रद्धा एवं विश्वास का विषय है, जिसमें शत प्रतिशत वैज्ञानिकता है। थोड़े संयम और विश्वास के साथ इसका लाभ उठाया जा सकता है। जानकार डॉक्टर के साथ , उसमें पूरी निष्ठां रखते हुए इस विधि से निश्चय ही एक प्रतिभाशाली संतान [ बेटा या बेटी] प्राप्त की जा सकती है।
.

एक बेहद साधारण पाठक said...

मैं जब भी अपना ब्लॉग स्टार्ट करूँगा हो सका तो भारतीय संस्कृति कितनी अधिक वैज्ञानिक है इस पर प्रकाश डालने का पूरा प्रयास करूँगा

दरअसल हम सबको पका पकाया माल चाहिए ( मेरी बात को भी अन्यथा न लें ) और मेरी बातों पर प्रमाणिकता की तलवार कुछ ज्यादा ही अच्छी तरह लटकी हुयी है

अब तो भगवान् भी भारत के नाम से थोडा घबराते होंगे

ZEAL said...

@ Gaurav--

unsubscribe?

why?

एक बेहद साधारण पाठक said...

@ divya ji
इस तरह के नकारात्मक कमेन्ट मेरे कार्य से मेरा ध्यान हटा देते हैं

शिवम् मिश्रा said...

एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
आपकी चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं

एक बेहद साधारण पाठक said...

@दिव्या जी

मुझे तो वो बेकार सी लग रही है की
" कहते हैं ना प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या आवश्यकता "

हम सब का धर्म है की हम सब मिल कर अनुसंधान करें

एक बेहद साधारण पाठक said...

मुझे तो वो कहावत बेकार सी लग रही है की [correction]

ZEAL said...

गौरव जी,

यह नकारात्मक कमेंट्स नहीं हैं। यह लोगों की जिज्ञासाएं हैं। जो हमे पहले से बेहतर करने को प्रेरित करती हैं। हमारी कोशिश यही होनी चाहिए की हम उनकी जिज्ञासा शांत करें।

लोगों अगर हँसते हैं तो क्या हुआ...अपनी worth हमे खुद ही समझनी होगी....जिसमें काबिलियत होती है, अपेक्षाएं भी उनसे ही ज्यादा होती हैं।
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ZEAL said...

गौरव जी,
जिनमें पुरुषार्थ है वो कठिनाइयों में निराश नहीं होते...बल्कि आग में तपकर कुंदन हो जाते हैं।

ZEAL said...

@ प्रवीण शाह जी,

आप links के द्वारा क्या सिद्ध करना चाहते हैं, ज्ञात नहीं हुआ। यदि आप इस संस्कार को सिरे से ख़ारिज करना चाहते हैं तो नया क्या है?...सदियों से हमारे ग्रन्थ उपेक्षित से पड़े हुए हैं। मेरी तो एक छोटी सी कोशिश है की इन वैज्ञानिक विधियों पर पुनर-विचार कर अपने आने वाली संतति को बेहतर बनाया जाए।

ZEAL said...

@- शिवम् मिश्र जी,

ब्लॉग-वार्ता में चर्चा करने के लिए आपका बहुत आभार। आपके निस्वार्थ प्रयास से लेखकों को प्रेरणा मिलती है।

डा० अमर कुमार said...
This comment has been removed by the author.
डॉ .अनुराग said...

जाने क्यों गांधी का पुत्र याद आ जाता है .....ओर एक राजा का बेटा सिद्दार्थ ...जो बाद में बुद्ध बना....तो क्या गुण आनुवंशिक नहीं होते? भारतेंदु हरिश्चंद ने एक बार कहा था ...धर्म के आचरण की प्राप्ति यदि उपरी आडम्बरो से होती तो आजकल भारत निवासी सूर्य के सामान शुद्ध आचरण वाले होते ! माला से जप नहीं होता गंगा नहाने से ताप नहीं होता ,पहाड़ पर चढ़ने से प्राणायाम हुआ करता है ,आंधी पानी तथा साधारण जीवन जीवन के उंच-नीच गर्मी सर्दी ,अमीरी -गरीबी को झेलने से तप हुआ करता है ....
सच कहा था.......यूँ भी सच्चा साधू धर्मको गौरंव देता है धर्म किसी को गौरवान्वित नहीं करता ......ब्राह्मण का असल अर्थ होता है जिसके ब्रहा जैसे कार्य हो...अच्छे आचरण वाले ...यानि जात से कोई ब्राह्मण नहीं होता .....
चरित्र खून से नहीं आता .....डी एन ए में नहीं मिलता...ये दो चीजों से बनता है आपकी विचारधारा से ओर आपके आस पास के वातावरण से जिसे आप बचपन से ग्रहण करते है .मनुष्य के ऐसे बहुत से गुण है जिनका विकास समाज में रहकर ही होता है .......सबसे अच्छी बात है मनुष्य की आत्मा कभी भी ज्ञान प्राप्त कर सकती है .बाल्मीकि इसका जीता जागता उदारहण है ...
जीवन एक सतत प्रक्रिया है ...इसके कई कोण है ....इसके लिए कोई एक दिशा निर्धारित नहीं की जा सकती .....

ZEAL said...

.
आज भी लोग 'सत्यनारायण की कथा ' कहते हैं तो कितना आयोजन करते हैं। सनातन धर्म पद्धति से एक दाह संस्कार , तथा शादी ब्याह भी ,बहुत आयोजन से करते हैं। बर्थडे पार्टी भी बहुत तल्लीनता से प्लान करके करते हैं। अन्नप्राशन से लेकर, मुंडन तथा जनेऊ संस्कार आदि बहुत से हैं जो प्रचलन में हैं। इनको करने में लोगों को आलस नहीं आता , लेकिन लिक्स में बताये गए संस्कार को, जो थोडा नियम, धैर्य और संस्कृत के मन्त्रों की मांग करते हैं, उसे लोग अपनाने में बेईज्ज़ती या फिर पिछड़ापन महसूस करते हैं।
.

ZEAL said...

@--सबसे अच्छी बात है मनुष्य की आत्मा कभी भी ज्ञान प्राप्त कर सकती है .बाल्मीकि इसका जीता जागता उदारहण है !जीवन एक सतत प्रक्रिया है ...इसके कई कोण है ....इसके लिए कोई एक दिशा निर्धारित नहीं की जा सकती .....

डॉ अनुराग,

पूर्णतया सहमत हूँ आपकी बात से।
.

Shiv said...

पोस्ट के साथ सारी टिप्पणियां पढी. आपसब को धन्यवाद.

एक बेहद साधारण पाठक said...

कहीं तो आज की इस "अकर्मण्य पुत्र" स्थिति में हमारी ही श्रद्धा की कमीं भी रही है , या कहूँ एक लम्बा गेप रहा है ( शायद काफी सारे आक्रमण झेलने के कारण .. या कईं कारण हो सकते हैं )
अब हमारे पास रीसेंट उदाहरणों की या तो कमी है ( मजबूरी में कह रहा हूँ ) या फिर उन्हें सत्यापित करने वाली संस्था की मानसिकता बदल चुकी है ( सच्चाई यही है )
एक बार सिध्धू ( प्रसिद्ध क्रिकेटर ) किसी प्रोग्राम में जब अपनी एकाग्रता और सफलता , शांति का सारा श्रेय इसी तरह की अवैज्ञानिक बातों को दे रहे थे ( हाँ हाँ ... वे स्वयं ) तो उनकी इस तरह की बातों को लगभग पूरी पूरी तरह नकार दिया गया था ( मतलब अब इंसान अपनी स्वयं सफलता का श्रेय भी किसी अप्रमाणिक माध्यम को नहीं दे सकता ) अब इससे अधिक महानता तो क्या हो सकती है ??
मैं तो नतमस्तक हुआ

एक बेहद साधारण पाठक said...

@दिव्या जी
प्रोत्साहित करने का शुक्रिया , मुझे लगता है आपके ब्लॉग पर सबसे जयादा परेशानी, अस्त व्यस्तता का कारण का कारण मैं ही बनता हूँ
इसके लिए आपसे क्षमा चाहता हूँ

ZEAL said...

शिव जी,
बहुत आभार सभी की तरफ से।

गौरव जी,
किसी के न मानने से सिद्धू जी का विश्वास कम तो नहीं होगा न?

ZEAL said...

.गौरव जी,

निराशा की बातें आपके मुख से शोभा नहीं देती। हमे तो फख्र है हमारे पास गौरव जैसा भाई है ।

जिसे आप अस्त-व्यस्तता कह रहे हैं...वो तो शादी-ब्याह और त्योहारों की सी रंगीनता है।

आनंद उठाइए।
.

एक बेहद साधारण पाठक said...

@जिसे आप अस्त-व्यस्तता कह रहे हैं...वो तो शादी-ब्याह और त्योहारों की सी रंगीनता है। आनंद उठाइए।

@ दिव्या जी
हा .. हा .. हा .. आप की बातों का तो जवाब नहीं दिव्या जी ,
इसे ध्यान से पढ़ें

वैसे तो "आपकी ये बात पढ़ कर मेरी निराशा दूर हुयी है" इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण तो नहीं दे सकता ( हा हा हा )
अभी तो आपको "मेरी इस बात में श्रद्धा रखें" ( काफी अवैज्ञानिक सा काम(श्रद्धा ) करने को तो नहीं कह दिया ना हा हा हा )

@divya ji
ब्लॉग जगत में जब भी वापस आना हुआ ( पूरी तरह से ) तो पुरानी अवैज्ञानिक संस्कृति से ही कोई नयी वैज्ञानिक शुरुआत करेंगे तब तक काफी सारे वैज्ञानिक तर्क (जो सिर्फ जबानी ही याद हैं रेफरेंस नहीं है इसलिए नहीं दिए हैं ) का कलेक्शन करने का भी प्रयास रहेगा

ZEAL said...

गौरव जी,

काल करे सो आज कर , आज करे सो अब,
पल में परलय होएगी, बहुरि करोगे कब?
.

Anonymous said...
This comment has been removed by the author.
Anonymous said...

दिव्या जी , सर्वप्रथम आपको एक बहुत हे रोचक मुद्दा उठाने के लिए हार्दिक धन्यवाद . साथ ही उन सभी टिप्पणीकर्ता श्रेष्ठ बुद्धिजीवियों का भी शुक्रिया अदा करूंगा जिन्होंने इसे अपनी महत्वपूर्ण टिप्पणियों से और रोचक बनाया. बस सिर्फ पढ़े ही जा रहा था कि डाक्टर अनुराग जी की टिपण्णी पर पहुँच कुछ रुक सा गया और दिल के अन्दुरूनी कोने से एक आवाज निकले कि एक टिपण्णी तू भी लिख डाल.
डाक्टर अनुराग जी ने वैसे तो सभी बाते अभूत उपयोगी कही है अपनी टिपण्णी में मगर एक बात खटक गई और ज्यादा इस लिए खटकी कि उस बात को एक अनुभवी, विवेकशील डाक्टर कह रहा था. उन्होंने कहा ," चरित्र खून से नहीं आता .....",

गलत डाक्टर साहब ......... ,अन्य स्रोतों के साथ-साथ चरित्र खून से भी आता है.

arvind said...

विचारणीय प्रस्तुति।

Deepak Shukla said...

Hi..

Aaj hun aaya main jo "ZEAL" main..
dekha kitna gyaan yahan..
ab afsos hua hai humko..
kyun etne din door raha..

Jo bhi kaam hai karta koi..
aalekhon main dikh hai jaata..
anjaane anchaahe bhi sab..
ek pramaan bhi mil hai jaata...

Aapki post se hi jahir hai ki madam ji ek sanvedansheel lekhika hain jo peshe se doctor bhi hain "Who is divya..main aapne bataya hi hai"

aapka bahut bahut dhanyawad ki aapne etni achhi jankaari hamare saath baanti...

Shubhkamnaon sahit...

Deepak

एक बेहद साधारण पाठक said...

काल करे सो आज कर , आज करे सो अब,
पल में परलय होएगी, बहुरि करोगे कब?

@ दिव्या जी
जब सच का ये हाल है तो प्रलय इससे ज्यादा तो क्या होगी :))
वैसे भी बात तो आपकी (प्रलय वाली ) वैज्ञानिक द्रष्टि से बिलकुल सही नहीं है :))

एक बेहद साधारण पाठक said...

@ दिव्या जी

"अगर कोई काम एक बार शुरू करो तो काम पूरा ही करो" ये मानता हूँ
और ये भी की
"कर्म करो फल की चिंता मत करो "

फिर भी सच ये है की टाइपिंग बहुत समय कंज्यूम कर रही है और बहुत सी टाइपिंग करनी पड़ेगी
कोई शोर्ट कट ढूंढेंगे .. पर अभी तो कमेन्ट का समय भी कम होता जा रहा है
जल्दी ही ये भी बंद होते जाएंगे .... और एक राज की बात बताऊँ "ब्लॉग जगत में मेरा वापस आना होगा या नहीं ये भी निर्धारित नहीं लग रहा"

फिर भी काफी कुछ सीखने को मिला है यहाँ से .. सभी का (सबसे ज्यादा आपका )आभारी रहूँगा

संगीता पुरी said...

पोस्‍ट के साथ बहुत सारी टिप्‍पणियां पढी .. जब पुराने ग्रंथो को एक सिरे से ही खारिज किया जा चुका हो .. जिसमें वैदिक गणित से लेकर आयुर्वेद तक .. और एक एक कर्मकांड के नियम तक मौजूद थे .. तो इसकी चर्चा से ही कुछ लोगों को आपत्ति क्‍यूं हो जाती है .. जब किसी नियम की परीक्षा ही नहीं हुई .. तो अब उसके औचित्‍य पर प्रश्‍नचिन्‍ह क्‍यूं ??

ZEAL said...

.
आलम जी,

सभी की तरफ से आपका स्वागत एवं आभार ।

आपकी बात से सहमत हूँ.....चरित्र खून से भी आता है । हम जिस परिवेश में पलते , बढ़ते हैं, उससे हमारे अन्दर संस्कार रचते-बसते रहते हैं। जो हमारे व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं। यही संस्कार...पीढ़ी दर पीढ़ी हमारी संतानों में आते है।

डीएनए की बात करें तो उसमें दो तरह के सूत्र होते हैं, एक वह जो हमारी शारीरिक संरचना में दिखाई देते हैं, दुसरे वह जो हमारे मानसिक गुणों के कारक होते हैं।

इसलिए संस्कार एवं चरित्र निश्चय ही अनुवांशिक हैं। हाँ , समय और परिवेश के साथ बहुत कुछ बदल जाता है। क्यूँ किसी का भी व्यक्तित्व , मात्र ४६ जींस से नहीं बनता , अपितु बहुत से factors उसे प्रभावित करते हैं।
.

ZEAL said...

@--
आज ही आया मैं तो ज़ाल में ,
देखा कितना ज्ञान यहाँ !
अब अफ़सोस हुआ है हमको,
क्यूँ इतने दिन दूर रहा ।

जो भी काम है करता कोई,
आलेखों में दिख जाता है।
अनजाने, अनचाहे भी सब,
एक प्रमाण भी मिल जाता है।

दीपक जी,

इतनी सुन्दर रचना एवं प्रोत्साहन के लिए आपका आभार। आँखें नम कर दीं आपने।
.

ZEAL said...

संगीता जी,

@--जब पुराने ग्रंथो को एक सिरे से ही खारिज किया जा चुका हो .. जिसमें वैदिक गणित से लेकर आयुर्वेद तक .. और एक एक कर्मकांड के नियम तक मौजूद थे .. तो इसकी चर्चा से ही कुछ लोगों को आपत्ति क्‍यूं हो जाती है .. जब किसी नियम की परीक्षा ही नहीं हुई .. तो अब उसके औचित्‍य पर प्रश्‍नचिन्‍ह क्‍यूं ??

बहुत सही बात उठायी आपने। बहुत जरूरी है की लोग इस बात को एक बार ठन्डे दिमाग से सोचें।

आभार ।

ZEAL said...

.
गौरव जी,

नर हो न निराश करो मन को. ...

आसान काम तो सभी करते हैं। ज़रा हट के , ज़रा बच-बच के , बिंदास चलो ।

महात्मा गाँधी की सोचिये --

" पड़ गयी जिधर भी एक दृष्टि , उठ गए कोटि दृग उसी ओर ।
बढ़ गए जिधर भी एक पग, उठ गए कोटि पग उसी ओर । "

बापू अगर घबरा जाते , तो क्या आज हम एक आजाद भारत के नागरिक होते?
.

Himanshu Mohan said...

पढ़ा कल था, टिपियाने आज आया। सारी टिप्पणियाँ भी पढ़नी थीं न!
मज़ा आया।
क्यों आया?
क्यों न आए?
जय गुरुदेव - सतयुग आएगा।
और बोरे का कपड़ा पहन के घूमेंगे - तो कूकुर तो पिछुआएगा ही न!

Anaam said...

A very stupid post!
Shame on you! You call yourself a doctor?

ZEAL said...

@-हिमांशु जी-

आदत से मजबूर, आपकी टिपण्णी को पोजिटिव ही ले रही हूँ।

आभार।

ZEAL said...

@ अनाम -

एक डॉक्टर को समझने के डॉक्टर जैसी बुद्धि चाहिए। तेरे जैसे गुमनाम बन्दर क्या जानें अदरक का स्वाद ।

Get lost !

सुज्ञ said...

यह असंभव है कि किन्ही मानवीय प्रयोगों से 'श्रेष्ठ और मनचाही संतान प्राप्त की जा सकती है। जब बात हम हमारे प्राचीन शास्त्रों से भी करें तो
घोर विरोधाभास पैदा हो जायेगा। कर्म सिद्धांतों पर आधारित मानव चरित्र को मानवीय प्रयोग कैसे परिवर्तित कर पायेंगे। यदि आत्मा स्वयं अपने कर्मों का कर्ता व भोक्ता है तो संतान अपने पुरूषार्थ से श्रेष्ठता के कर्म कर श्रेष्ठ बनेगी। अथवा पूर्वोक्त कर्मो के अनुसार। और यदि मनचाहा निर्णय माता-पिता (मानव) के अधिकार में होगा तो कर्म सिद्धांत तो निरस्त ही हो जायेगा।
वस्तुतः डा० अमर कुमार जी ने सही कहा "प्राचीनतम ही सर्वश्रेष्ठ है, इस पर कुँडली मार कर बैठ फुँफकारते रहना, सामाजिक प्रवँचना से अधिक कुछ और नहीं।" प्रचीन ज्ञान का गौरव अवश्य लेना चाहिये,और उससे मानवता को लाभ प्राप्त हो तो उठाना भी चाहिये,ज्ञान होता ही इसलिये है।लेकिन प्राचीनतम सम्पूर्ण सर्वश्रेष्ठ ही है इस भ्रांति में रहना अंधविश्वास है,पता नहिं कितने शास्त्र अपने मूल शुद्ध रूप में हम तक पहुंचे है,कितने पूरक नष्ट हो गये जो स्पष्ठ कर सकते थे,कितने पूर्वाग्रन्थी से लिप्त पुरूषों द्वारा सुधारे गये या रचे गये। मै प्राचीन ज्ञान समर्थक हुं,पर अन्ध श्रद्धावान नहिं।
डॉ .अनुराग जी से भी सहमत "चरित्र खून से नहीं आता .....डी एन ए में नहीं मिलता...ये दो चीजों से बनता है आपकी विचारधारा से ओर आपके आस पास के वातावरण से जिसे आप बचपन से ग्रहण करते है .मनुष्य के ऐसे बहुत से गुण है जिनका विकास समाज में रहकर ही होता है"

एक बेहद साधारण पाठक said...

अमरजी की टिप्पणिया बहुत गहराई तक जाती हैं
उनकी टिप्पणियों के बिना चर्चा को अधूरा समझा जाना चाहिए
उनकी टिपण्णी से सहमत होकर कोई भी अपने आप में सुरक्षित महसूस कर सकता है
वे हमेशा सही होती हैं क्योंकि वर्तमान का सच उजागर करती हैं
अगर हमारी सोच को हम एक नदी माने तो उनकी सोच सागर की तरह गहरी मानी जा सकती है

एक बेहद साधारण पाठक said...

साथ ही मैं ये भी मानता हूँ की हो सकता है कोई क्रांति विफल हो जाये (जो सबके भले के लिए हो रही हो ) पर इससे डर कर कोशिश ही ना करना भी मुझे सही नहीं लगता
एक "नमक" के नाम पर ही पूरी दांडी यात्रा हो सकती है , पूरा देश एक हो सकता है तो इसी तरह किसी एक जगह से तो शुरुआत करनी ही होगी , "एक साधे सब सधे सब साधे सब जाये"
अगर हम सब सुधारने चलेंगे तो कुछ भी सुधार नहीं पाएंगे , आज विचार बदलेंगे.... कल पहनावा .. फिर जीवन शैली

एक बेहद साधारण पाठक said...

ये भी सच है की ये वाला संस्कार जिसे भी पता चलेगा ( माना अभी पता चला ) उसका पुराना आचरण जो भी रहा हो परिस्थितियां जो भी हों वो उम्मीद सबसे बेहतर परिणाम की ही करेगा
अगर नहीं हुआ तो पूरी तरह विरोध हो जायेगा , बस गलत है ये .... झूठ है ये
आज कईं बच्चे मंत्रदीक्षा लेकर अपने जीवन में बहुत बड़े चेंज पाते हैं , वो ऐसा इसलिए कर पाते हैं क्योंकि वो शंका नहीं करते
बच्चे जो ठहरे , आज का परिपक्व इंसान एक माला ( जिसमें १०८ मनके होते हैं ) ठीक से नहीं कर सकता वो तो कुछ भी बोलो .... गप ही मानेगा

एक बेहद साधारण पाठक said...

हर इंसान कुछ तो करेगा ही
वो या तो खाना खायेगा या नहीं खायेगा
वो या तो सुबह जल्दी उठेगा या नहीं उठेगा
कोई एक विचारधारा तो फोलो करेगा ही या तो वैदिक या कोई और
पर आज हमें तो कहीं से भी कुछ ऐसी ट्रिक चाहिए जो बस हमेशा फिट बैठती हो , बस हमारा काम हो जाये
कोई ऐसा मन्त्र जो चाहे एक बार बोले बस काम हो जाये ( सुविधा नंबर एक )
देशभक्ति करनी है ??? आज से हिंदी में बोलेंगे बस हो गयी देश भक्ति ( सुविधा नम्बर २ )
पता नहीं सभी हथेली पर दही क्यों जमाना चाहते हैं ???

एक बेहद साधारण पाठक said...

मुझे पता है इस वक्त मेरी बातों आध्यात्म ज्यादा है और तथ्य कम पर फिर से वही बात मुझे पता नहीं था की प्रत्यक्ष को भी प्रमाण की इतनी जरूरत पड़ सकती है
ये अहसास भी अद्भुद है

एक बेहद साधारण पाठक said...

@दिव्या जी

जब होगी अगली पीढी संस्कारी.... तभी मिटेगी दुविधा सारी

एक बेहद साधारण पाठक said...

@दिव्या जी
हो गए पूरे १०८ मनके विचारों की माला में
यहाँ मनके = कमेन्ट

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

I also believes in "Mutation" Theory... Desired offspring can be possible with Genetic mutation... nice article.... hats off...

10 O 10...

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

Plz read the theory of Jumping genes ... a theory given by Barbara McClintock....also known as Transposon.....

डा० अमर कुमार said...
This comment has been removed by the author.
डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

किन्तु अमुक स्त्री ही मेरी माँ है, यह एक निर्विवादित विश्वास है..क्योंकि निरँतर उनकी कोख से उपजने का सच इसकी गवाही दे रही होती है । Her womb is a real evidence in it !


Truly said Sir...... bowed to you....

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

Divya.....nice answer to Anaam....

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

Gaurav is great brother ...

एक बेहद साधारण पाठक said...

@ आदरणीय अमर जी

आपने जिस अच्छी तरह से आस्था और विश्वास में फर्क बताया है
उसे नमन करता हूँ

एक बेहद साधारण पाठक said...

महफूज भाई
आपका हार्दिक धन्यवाद , आपके आने से खुद को महफूज महसूस कर रहा हूँ

ZEAL said...

@ सुज्ञ जी,

असंभव तो वैसे भी कुछ नहीं। दुनिया में सब कुछ संभव है ।

जिसको आप मानवीय प्रयोग का नाम दे रहे वो कर्म नहीं तो और क्या है? टेस्ट तुबे बेबी आपको संभव लगता है जिसमें sperm और ovum को In vitro fertilization (IVF) [ outside womb]], fertilize कराते हैं॥

यदि होर्मोने थेरपी से चिकित्सा करके infertility correct की जा सकती है तो पुंसवन से क्यूँ नहीं मन चाही संतान प्राप्त की जा सकती है?

पुंसवन में जैसा प्रोजेक्ट किया जा रहा है अल्पज्ञों द्वारा , वैसा नहीं है- की मंत्रोच्चार किया और नाभि पर हाथ घुमा के प्रसाद दे दिया। मजाक उड़ना अल्पज्ञों का शौक हैं। Inquisitive लोग चीज़ों की तह तक जाना पसंद करते हैं।
.

एक बेहद साधारण पाठक said...

@आदरणीय अमर जी

आपके प्रश्न बहुत ही अच्छे हैं , सही भी हैं
पर मैं अपनी बुद्धि से और साहस से उत्तर देने का प्रयास कर रहा हूँ
हो सकता है मेरी बातें किताबी लगे पर क्या किया जाये सच इतिहास बन कर किताबों में ही बसता रहा है

एक बेहद साधारण पाठक said...

१. Where should be the Zero milestone, to begin with ??

आज का दिन ( अगर आप टाइम लाइन की बात कर रहे हैं तो )

एक बेहद साधारण पाठक said...

२. What should be the ratio of stories ol glorious past to be amalgated into realities of present to shape our better future. ??

अब क्या कहूँ ...... गाँधी जी, बाल गंगाधर तिलक आदि सबने गीता महाभारत से सीख क्यों ली होगी ??
क्यों लोग (भगत सिंह जैसे) दूसरे देशों की पुरानी क्रांतियों से सीख लेकर अपने देश पर एप्लाई करने की सोचते थे ??
ये तो बहुत बड़ा स्कोप हो गया है कृष्ण से लेकर किसी पडोसी देश की क्रांति तक

ZEAL said...

Researches are going on this field also. Without knowing anything about it or reading thoroughly or knowing the related facts, how can one be so sure about it and condemn the process so confidently?

एक बेहद साधारण पाठक said...

@आदरणीय अमर जी
मेरे इन उत्तरों में बचपना भी झलक सकता है
तो उसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूँ

ZEAL said...

Those who are hell bent on condemning the sanskaar mentioned in our texts , must prove it wrong first.

We are proud of the four VEDAS, but unfortunately we do not bother to know what is written in it.

Science of modern ERA can never be that developed to prove the authenticity of the medicine which was in practice in our VEDIC times.

.

ZEAL said...

I can challenge if anyone can even correctly translate , what is written in our sacred texts in Sanskrit.

People from west are visiting our country, learning Hindi and Sanskrit and Pali languages , just to unveil the truth written in our ancient texts and Vedas.

They are practical people. They are clever and shrewd as well. They are well aware of the glorious past of India. They want to know how and why?

Its their thirst to know about the unchallengeable past , that is leading them to come here, learn Sanskrit and explore the truth hidden in our texts. Wise and practical and progressive people of west are busy stealing our heritage and patenting it.

Shame on us !

West has patented our 'Neem ' and " Haldi ' even.

We like morons are allowing them to steal and cheat us.
.

ZEAL said...

.
In modern ERA who on earth is competent enough to unveil the mystery behind Tathagat's intellect which he has proved in mere 22 years.

Modern science has no answer for Tathagat's intellect but the answer is beautifull scripted in our ancient texts.
.

ZEAL said...

.
The dissection and seven layers of skin which was revealed in modern medicine in 19th century was long ago mentioned in our Atharv-veda. ! By shushut [Father of surgery ]
.

ZEAL said...

.
In modern science catguts were developed in 19th centuary , while the surgery performed in ancient times , the stitching was done by the help of black ants [cheenta].See how much the science was developed in that ERA.

The blood letting in modern era was performed ages ago by the help of leeches.

Are we anywhere near them?
.

ZEAL said...

Aryabhatta , the mathematician was million times better than today's mathematicians.

एक बेहद साधारण पाठक said...

@आदरणीय अमर जी
इतिहास के बारे में ये वर्तमान में कहा गया है
रिटयार्ड मैजर जनरल जी.डी. बक्शी (सैन्य विषयों के जानकार) के अनुसार
चाणक्य की मौर्य काल में बनाई गयी सैन्य नीति आज भी प्रासंगिक है इसका उपयोग करके भारत विश्व शक्ति बन सकता है।

ZEAL said...

.
Chanakya , the economist of our glorious past was zillion times intelligent and wiser than our today's economist Mr. Manmohan Singh .

एक बेहद साधारण पाठक said...

मैं अपनी वही बात फिर से रीपीट करना चाहूँगा हमें थोडा पीछे मुड़ कर देखना ही चाहिए , एक संतुलित भविष्य के लिए हमें इतिहास सीख लेनी चाहिए

ZEAL said...

@- Mehfooz Ali- Thanks !

ZEAL said...

.
Unfortunately the scientifically proven facts of our past is considered as stories by the wise men of modern era.
.

एक बेहद साधारण पाठक said...

@ Unfortunately the scientifically proven facts of our past is considered as stories by the wise men of modern era

@divya ji

पूरी तरह हूँ आपकी सहमत हूँ आपकी इस बात से

एक बेहद साधारण पाठक said...

@ divya ji
आस्था और अंध विश्वास के बीच बहुत महीन फांसला होता है
उतना ही महीन जितना की तर्क और कुतर्क में

ZEAL said...

.
गौरव जी,

बात को आरी लेकर खचाक से काट देना , बहुत आसन कार्य है, लेकिन प्रयासरत होकर सच्चाई तक पहुँचने का धैर्य सबके बस का नहीं है।

" सब कोरी बकवास " है , यह तो कोई भी कह सकता है।

लेकिन हम तो विश्वास करते हैं...एक-एक शब्द जो हमारे पूर्वज और विद्वान् जन कह/लिख गए हैं।
.

एक बेहद साधारण पाठक said...

@ दिव्या जी
बिलकुल सही कहा
तभी तो १९७२ में हुए युद्ध में भारत में ज्यादा सोचे विचारे बिना "चाणक्य द्वारा बनाई गई सामरिक नीति" (२००० साल पुरानी ) का अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष अनुसरण किया और जीत हांसिल की थी
- रिटयार्ड मैजर जनरल जी.डी. बक्शी (सैन्य विषयों के जानकार) के अनुसार

"अगर वो वक्त अलग था ... ये अलग है" ये सोचते तो पता नहीं क्या होता ??

ZEAL said...

गौरव जी ,

कलियुग में लोग , यदि ये समझ लें , की क्या सही है और क्या गलत , क्या उनके हित में है , तो फिर कलियुग में सतयुग आ जायेगा ।

लोग सतयुग की दुहाई तो देते मिलेंगे, लेकिन दुर्भाग्यवश, सतयुग में होने वाले क्रिया-कलाप तथा संस्कारों को वाहियात तथा परियों की कहानी कहते हैं।
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Alpana Verma said...

जी हाँ इस बारे में सुना है.हम अपने ही पुरातन ज्ञान भण्डार को नज़र अंदाज़ किये हुए हैं यही त्रासदी है.
गीता जी को स्वरांजलि

मनोज भारती said...

पुंसवन संस्कार क्या है ? इसको समझना होगा ? वैचारिक जुगाली करने से पहले ।

ZEAL said...

अल्पना जी , आपका बहुत धन्यवाद ।

मनोज जी,

क्या वैचारिक जुगाली के बगैर किसी भी प्रक्रिया को समझा जा साथ है? बुद्धिजीवियों का काम ही है - चिंतन और मनन। बिना वैचारिक जुगाली के तो हम कभी किसी भी तथ्य को समझ नहीं पायेंगे।

आप क्या कहना चाहते हैं की इन विषयों पर लिखा ही न जाए? तथा इन पर धुल की परतें जमने दें और लोगों को आते जाते थूकने दें इस पर?

खैर, हमारे समाज में अपनी ही धरोहर की इतनी अवहेलना, कम से कम मुझे तो प्रेरित करती है , इसको बेहतर समझने और जन- जन तक पहुंचाने के लिए।

आभार ।

एक बेहद साधारण पाठक said...

हा हा हा
अगर बात सिर्फ जुगाली की है तो वो तो स्वस्थ पशु की पहचान है
और अगर वैचारिक जुगाली की बात है तो वो विवेकी पशुओं ( सामाजिक प्राणी ) के स्वास्थ्य की पहचान है

एक बेहद साधारण पाठक said...

@ divya ji
मेडिकल साइंस में दवाओं की एक्सपायरी डेट होती है ये तो सुना था पर
मेडिकल साइंस की भी एक्सपायरी डेट होती है आज ही महसूस हो रहा है
अब इसे बेकार दवा की तरह क्यों समझा जा रहा है पता नहीं
आयुर्वेद में तो दवाएं बहुत लम्बे समय तक असर नहीं खोती है

ZEAL said...

गौरव जी ,

I believe in " Do your duties, reward is not thy concern "

मरना तो एक दिन है ही, क्यूँ न मरने के पहले कुछ लिख जाऊं , शायद किसी को लाभ मिले या अंतरात्मा जगे। किसी को फ़ायदा हो न हो, मुझे तो लाभ हो ही रहा है , इसी बहाने जाने कितना पढ़ डाला।
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एक बेहद साधारण पाठक said...

@मरना तो एक दिन है ही, क्यूँ न मरने के पहले कुछ लिख जाऊं , शायद किसी को लाभ मिले या अंतरात्मा जगे। किसी को फ़ायदा हो न हो, मुझे तो लाभ हो ही रहा है , इसी बहाने जाने कितना पढ़ डाला।

@ divya ji

मैंने भी यही सोच कर ब्लॉग बनाया था

गाना याद आ गया

जग में रह जायेंगे प्यारे तेरे बोल .....

ब्लोगिंग के कन्सेप्ट को धन्यवाद... जिसने हम सभी को अपने स्तर पर लेखक बनने का मौका दिया और कुछ पाठक भी दिए

सहमति और असहमति एक अलग बात है .... सब हमारे मित्र ही हैं

एक बेहद साधारण पाठक said...

@दिव्या जी

आप तो "सर्वाधिक कमेंट्स प्राप्तकर्ता ब्लोगर" का रिकोर्ड बना कर ही रहेंगी ......लगता है

ZEAL said...

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गौरव जी,

मेरा ध्यान केवल विषयों को लिखने में है। मन में जिस बात को लेकर उहा-पोह मचती है , उसे यहाँ लिख देती हूँ। पाठकों की टिप्पणियों से ज्ञानवर्धन होता रहता है । इसके लिए अपने पाठकों की बेहद आभारी हूँ तथा इस ज्ञानवर्धन के लिए उनकी कर्जदार हूँ।
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Satish Saxena said...
This comment has been removed by the author.
Satish Saxena said...

डॉ अमर कुमार की मस्त बिहारी भाषा में बिहारी बाबू के साथ संवाद आनंद दायक रहे ! श्रेय संवेदना के स्वर को देता हूँ !
डॉ अमर कुमार की बात एवं उद्धरणों से काफी हद तक सहमत हूँ ! हमारी यह विसंगतियां काफिरों को मौका देती हैं कि हम इसे केंद्र बिंदु बना कर बहस छेड़ें ...
हमें गर्व है कि हम अपनी आलोचना खुद करते है और बदलते भी हैं !हिन्दू धर्म हमेशा परिस्थितियों के अनुसार बदलाव स्वीकार करता आया है ....

मगर इसके साथ साथ धार्मिक कटाक्ष और मखौल अनुचित है ..किसी की आस्था को चोट पंहुचने का अपराध नहीं करना चाहिए ! यह ग्रन्थ किसने लिखे ...इनका अनुवाद किसने क्या किया ?? सदियों पहले लिखे ग्रन्थ किस माहौल में लिखे गए, उस समय समाज की स्थिति और उस लेखक विशेष की सामाजिक स्थिति क्या थी, हज़ारों बरसों बाद, भिन्न भिन्न ज्ञानियों द्वारा, विभिन्न सामाजिक स्थितियों में, पुनर्मुद्रण के बाद, इन ग्रंथों में कितनी मौलिकता बची है कितनी सत्यता है ? आज की स्थिति में हम उसकी विवेचना करें यह उचित नहीं ! इन पुरातन विसंगतियों की मज़ाक उड़ाने के लिए बहुत लोग तैयार बैठे हैं उन्हें ही यह कार्य करने दें तो बेहतर होगा कम से कम उनका एक उद्देश्य तो है ...

डॉ अरविन्द मिश्र और अमित शर्मा का न बोलना समझ नहीं पाया.......दिव्या के उठाये विषय, का ही समापन करना ही चाहिए !
गौरव अग्रवाल अपनी जगह बनाने में कामयाब रहे हैं शुभकामनायें !
सादर

ZEAL said...

सतीश जी,

जो विषय उठ गए हैं, वो समापन की और कभी नहीं बढ़ेंगे। हाँ इस डगर पर चलने वाले कम जरूर होंगे।

कुछ बदलेगा और सार्थक होगा तो अच्छा है, नहीं तो पर्त दर पर्त धूल चढ़ ही रही है और हम लोग भी इंच दर इंच मृत्यु की और अग्रसर हो रहे हैं।

कुछ लोगों की चुप्पी से परेशान मत होइए । एक सेकंड में ३० विचार आते हैं दिमाग में । कब कौन, किस विचार से प्रभावित हो जाए, कहा नहीं जा सकता ।
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ZEAL said...

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सतीश जी,
कुछ लोग चुप इसलिए हैं क्यूंकि मुझसे सहमत नहीं हैं , लेकिन लिखना नहीं चाहते। ..... कुछ लोग मुझसे सहमत हैं लेकिन दिग्गजों से असहमति जताने का बोझ नहीं लेना चाहते। ...

Nobody wants to walk the untrodden path and go beyond their comfortable zone.

Probably this is the reason.
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Unknown said...

दिव्या जी, देर से आना हुआ…
असल में इधर विद्वानों की भरमार है सो मैं थोड़ा पीछे हट के चल रहा था… :) :)

सच तो यही है कि मैं भी इस पर विश्वास नहीं करता था, लेकिन हाल ही में मेरा विश्वास हिला है। उज्जैन में हमारे एक परिचित पण्डित जी हैं, वे सिर्फ़ उन्हीं को गर्भाधान और पुंसवन के बारे में बताते हैं जिनकी पात्रता हो (ज़ाहिर है कि "पात्रता" सम्बन्धी निर्णय वे खुद, होने वाले माता-पिता से काउंसिलिंग करके और उनकी सामाजिक/पारिवारिक स्थिति का पता करने के बाद, करते हैं)।

खैर, तो पंडित जी उस जोड़े को तमाम तरह के नियम पालन करने, खाने में कई तरह के प्रयोग और परहेज करने को कहते हैं। इसी के साथ वे मासिक धर्म के दिनों की गिनती करके किस दिन संसर्ग किया जाये, कौन से कपड़े पहनकर किया जाये, किस मुद्रा में किया जाये और किन मंत्रो को पढ़कर किया जाये सभी कुछ डीटेल्स में बताते हैं…

मेरा विश्वास हिलने का एकमात्र कारण यह है कि मैं इस प्रयोग के लगातार 10 मामले देख चुका हूं और उसमें से 8 जोड़ों को लड़का हुआ (जो कि पंडित जी ने बताया था) एक जोड़े को लड़की हुई (जो कि जोड़े द्वारा चाही गई थी), सिर्फ़ एक मामले में उनका "आकलन"(?) (या प्रयोग या सिद्धान्त जो भी कहें) फ़ेल हुआ, यानी सफ़लता प्रतिशत 90% हुआ… अब मैं क्या कहूं? मैं उनसे कोई बहस भी नहीं कर सकता, और आपसे भी नहीं… :)

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

आपने इतना उत्तम विषय उठाया..यदि समय पर आ पाते तो शायद हम भी इस विषय पर गुणीजनों से कुछ सार्थक चर्चा, तर्क-वितर्क कर पाते...खैर्.बहरहाल इसी विषय पर अपने कुछ विचार एक आलेख के माध्यम से रखने का प्रयास करता हूँ..शीघ्रातिशीघ्र..
"छिन्नोपि चन्दनतरूर्नजहाति गन्धं
यन्त्रार्पितो मधुर्तांम न जहाति चेक्षु:
क्षीणोपि न त्यजति शीलगुणांकुलीन:"
कटा हुआ चन्दन का वृ्क्ष अपनी सुगन्ध नहीं छोडता, मशीन में पिरोया हुआ गन्ना भी अपने मधुर रस गुण को नहीं त्यागता, दरिद्र कुलीन भी अपने सुशील गुण को नहीं त्याग सकता...लेकिन कितने दुख कि बात है कि अपनी श्रेष्ठता का दम्भ भरने वाले हम लोग ही कुछ तथाकथित पश्चिममुखापेक्षी बुद्धूजीवियों के बहकावे में आ अपने प्राचीन ज्ञान-विज्ञान, अपनी परम्पराओं का त्याग करते जा रहे हैं....

ZEAL said...

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@ -पं.डी.के.शर्मा"वत्स" ji,

"छिन्नोपि चन्दनतरूर्नजहाति गन्धं
यन्त्रार्पितो मधुर्तांम न जहाति चेक्षु:
क्षीणोपि न त्यजति शीलगुणांकुलीन:"

उपरोक्त पंक्तियों में ही सब कुछ कह गए आप। आपका देर से आना दुःख दे रहा है, फिर भी प्रसन्नता हुई आपके शुभ विचारों को जानकार।

आपका बहुत आभार।
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सञ्जय झा said...

AMAR, ARVIND, AMRENDER, ANOOP
JISKO DE MAN SE MAAN,
UNKO HAM HAMAR BLOGWOOD DE SAMMAN,
BADLE ME LE APSE VISHISHT GYAN.

VERY VERY GOOD FLOW AND RYTHEM IN YOUR
THINK AND THOUGHTS.

HAN, HAM BIHAR SE HAIN JALLAD HI HINDI
ME TIPPANI KARENGE.

SHAILENDRA JHA
CHANDIGARH.

मनोज भारती said...

मेरा कहना इतना है कि पुंसवन संस्कार को समझे बैगर इस पर चर्चा नहीं हो सकती । पुंसवन संस्कार गर्भ के तीसरे मास के भीतर किया जाता है । आप जानती होंगी कि यह वह समय होता है जब बच्चे का मस्तिष्क विकसित होना शुरु हो जाता है और उसमें विचारों की तरंगों के प्रति आकर्षण शुरु हो जाता है । पुंसवन संस्कार द्वारा स्त्री -पुरुष (माता-पिता) से अपेक्षा की जाती है कि वे कोई ऐसा कार्य न करें जिस से गर्भ में विकसित हो रहे बच्चे के मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़े । उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे अपने विचारों को शुद्ध रखें । ध्यान करें । पुंसवन का अर्थ ही है बीज-वपन । अर्थात यह वह समय होता है जब बच्चे के मस्तिष्क के विकास का बीज डाला जाता है । इस दौरान माता से अपेक्षा की जाती है कि वह अपने बच्चे में जो गुण देखना चाहती है उनकी कल्पना करे । सुंदर विचार करे । और यदि माता पिता दोनों ध्यानस्थ हो सकें तो बहुत अच्छा ...क्योंकि ध्यान का अर्थ है मन की निर्विचार दशा । यदि बच्चे को माँ से इस प्रकार का वातावरण मिलता है तो बच्चे का मस्तिष्क उर्वरा होगा और उसका ह्रदय विशाल होगा ,माँ के निर्विचार होने से बच्चे में विशेष जागरुकता और चेतना का विकास होता है तथा उसका भाव-शरीर दृढ़ बनता है । ।
विषय से धूल उघाड़ने का काम अवश्य होना चाहिए । जब मैंने वैचारिक जुगाली शब्द का प्रयोग किया था तो मेरे कहने का आशय सिर्फ इतना था कि केवल पुरानी संस्कृति, धरोहर, वेद-वेदांग आदि के गुणगान ही न गाए जाएँ, बल्कि उनके मर्म तक भी पहुँचने की कोशिश की जानी चाहिए । टिप्पणियों से ऐसा लगा कि दिव्या ने हमारे ब्लॉगर बंधुओं को एक ऐसा विषय दे दिया ... जो शायद उनके मन-मस्तिष्क में कहीं दबा पड़ा था और वर्षों से चर्वण की अपेक्षा कर रहा था जिससे कि वह पच सके । लेकिन मूल विषय की ओर कम ही टिप्पणियाँ रही ।

ZEAL said...

@ मनोज भारती जी,

आपकी लिखी सारी बातों से सहमत हूँ सिवाय एक के।

पुंसवन संस्कार तीन माह पर नहीं बल्कि एक मॉस की अवस्था पर किया जाता है। [ after four weeks of pregnancy]

आभार ।
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ZEAL said...

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सुरेश चिपलूनकर एवं शैलेन्द्र जी,

आपका आभार।
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SomeOne said...

बहुत ही अच्छा लिखा है !

Unknown said...

aap us verg se hai,jo ye maante hai ki germany ke logo ne vedo ka gyan chura ker atom bomb bana liya.aap ye dava kise ker rahi hai ki sanskrit granto ka sahi anuvaad abhi tak nahi hua hai?kya anuvaad kerne vale itne log moorkh hai?Praveen Shah aapko 'Alpagya' lagte hai,kyuki vo in sanskaro ka anuvaad sabko dikha dete hai,jise dekhke koi bhi vicharvaan vyakti inhe siray se nakar dega.aap SATYANARAYAN KATHA ko bhi mahimamandit kerti hai,jo sirf purohito ke paisa ugahene ka dhandha hai.agar apko vaidik gratho ki sahi jankari kerni hai to aap khud sanskrit seekhe ya SARITA-MUKTA riprint padhe, aapka saara bhram door ho jayega.test tube baby ko mahabhrat se jodna,PUSHPAKVIMAAN ko aeroplane ka aadiroop batana,ye apne gaal bajane ke siva kuchh nahi hai.dukh ki baat ye hai ki aapke samarthak aapko is 'ateet gaurav' ke bhramjaal se nikalne nahi denge.

विवेक रस्तोगी said...

आज पहुँच पाये एक अच्छी सी पोस्ट पर संगीता जी के एक पोस्ट की लिंक से ..

पोस्ट पढ़ी फ़िर १६२ टिप्पणियां पढ़ने का संयम नहीं था, पर बहुत सारी पढ़ीं और बहुत सारी छोड़ीं, पर मूल प्रश्न वहीं का वहीं है, कुछ नहीं हुआ ?

मेरी रुचि संस्कृत में शुरु से ही रही है पर अच्छा गुरु न मिलना और समाज का दबाब अपना भविष्य बनाने के लिये भी था, इसलिये इस और बढ़ ही न पाया, मन में टीस है, क्योंकि संस्कृत का विद्वान नहीं पर थोड़ी बहुत आती है, बाकी भूल गया, और यह बिल्कुल सही है कि हमारे यहाँ के ग्रंथों को अनुवादित कर बताने वाला कोई माई का लाल नहीं है, सब बस अपनी विद्वत्ता झाड़ते हैं।

एक बेहद साधारण पाठक said...

@अच्छा गुरु न मिलना और समाज का दबाब अपना भविष्य बनाने के लिये भी था, इसलिये इस और बढ़ ही न पाया

@Vivek Rastogi ji

बिलकुल सही कहा है आपने
एक दम सच्ची बात है

पर शुरुआत कहीं से तो करनी होगी
मूल प्रश्न का उत्तर कभी तो सामने आएगा ही

Anonymous said...

Hi there to all, as I am actually keen of reading this blog's post to be updated daily. It contains fastidious stuff.

my blog post :: cam chat