Tuesday, April 5, 2011

कैसे इनकार कर दूँ कि डरती नहीं हूँ

बचपन से एक ही सपना था , डॉक्टर बनने का। इश्वर ने पूरा किया पांच वर्षों की अच्छी नौकरी और प्राईवेट प्रक्टिस का सुख भी लिया , लेकिन यहाँ आने के बाद इस सुख से वंचित होना पड़ा। संतोष कर लिया सोचा ब्लॉग के माध्यम से हिंदी भाषा में रोगों पर लेख लिखूंगी , जिससे अपने पसंदीदा विषय से भी जुडी रहूंगी और लोगों को जानकारी भी मिलेगी वैसे तो इन्टरनेट पर सब सुलभ है , लेकिन हिंदी में सरल भाषा में लिखे होने के कारण ब्लॉग के माध्यम से आम व्यक्ति ना चाहते हुए भी उसे पढ़ ही लेगा और सामान्य जानकारी उसे मिलेगी और विषय के प्रति जागरूकता भी रहेगी।

लेकिन अभी चंद रोगों पर ही लिखा था की स्वयं को ही उनसे ग्रस्त पाया मन में भय पैदा हो गया। इसलिए चिकित्सा सम्बन्धी विषयों पर लिखना छोड़ दिया। शोभना चौरे जी और जगन राममूर्ती जी के निवेदन पर लिखी पोस्टें ड्राफ्ट में हैं लेकिन मन में भय उत्पन्न हो जाने के कारण पब्लिश नहीं की कभी शायद कोई शक्ति मुझे चिकित्सा सेवा से दूर रखना चाहती है।

दिसंबर और जनवरी से स्वास्थ बहुत खराब है सर्जरी due है , विलम्ब हो रहा है , लेकिन कई वजहों से विलम्ब की अवधी बढती जा रही है। चिकित्सा सेवा करने का जितना शौक था , अब उतनी ही ज्यादा चिकित्सा सेवा पर निर्भर हो गयी हूँ

मेरी पिछली पोस्ट की कुछ पंक्तियों ने जहाँ निराश किया है आपको , उसके लिए खेद है भविष्य में ऐसा नहीं होगा। मैं तो वही दिव्या हूँ ..अकडू , घमंडी , स्पष्टवादी...आदि आदि ...

श्री सुरेश झंझट जी की लिखी हुई बेहतरीन पंक्तियों के साथ आप सभी का आभार।

अधरों पर ताला अनजाना और आँसुओं पर पहरे ,
भीतर-भीतर सब कुछ पी लें, कुछ कहें तो अच्छा है..

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