Wednesday, November 30, 2011

देश को दूसरी बार गुलाम बनाने की साजिश अथवा विकास?-- FDI-Retail

Foreign direct investment : investment --FDI

आखिर FDI है क्या बला ?

विद्वान् पाठकों को FDI के बारे में अवश्य ही पता होगा फिर भी सामान्य पाठकों की जानकारी के लिए सरल शब्दों में -- FDI अर्थात किसी देश का अन्य देश में निवेश करना। यह निवेश किसी भी क्षेत्र में हो सकता है , लेकिन आजकल जो मुद्दा सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है , वह है FDI-Retail का। उदाहरण के लिए 'वालमार्ट' ।

विदेशी कंपनी ५१ प्रतिशत की भागीदारी के साथ हमारे देश में 'वालमार्ट' आदि के द्वारा निवेश करना चाहती है, जिसकी अनुमति श्री सिंह ने दी है।


क्यों करना चाहती है निवेश ? विदेशी कंपनी को क्या लाभ होगा ?



  • जाहिर सी बात है , पैसा कमाने के लिए।


  • निस्वार्थ तो करेगी नहीं


  • दान देने की प्रथा केवल भारत में है , विदेशों में नहीं।


  • भारत का हित तो चाहेंगे नहीं, अपना हित देखकर ही निवेश कर रहे हैं।


  • इससे इन्हें एक बड़ी मार्केट मिलेगी , इनका नाम , प्रचार और टर्न -ओवर बढ़ जाएगा।


  • मालामाल पहले से थीं , अब और हो जायेंगी।


  • सीधा लाभ निवेश करने वाले देश को होगा। उसकी आर्थिक स्थिति और सुदृढ़ होगी।



FDI -Retail से भारत को क्या लाभ होगा ?



  • एक अच्छी और निरंतर सप्लाई मिलेगी खाद्य और अन्य वस्तुओं की --लेकिन यह आपूर्ति हम अपने स्वदेशी संसाधनों द्वारा बखूबी कर सकते हैं।


  • अपने गोदामों में सड़ते अनाज का इस्तेमाल करके भी कर सकते हैं।


  • एक लाभ है क्वालिटी और variety मिलेगी (क्या अपने देश में क्वालिटी नहीं है ? यदि नहीं है तो उस दिशा में प्रयास किये जाएँ)


  • देश को एक अच्छा इन्फ्रा-स्ट्रक्चर मिलेगा-( क्या इस उपलब्धि के लिए विदेशियों को घुसपैठ करने दी जाए ? यह काम करने में तो हमारा देश स्वयं ही सक्षम है । कब तक दया पर जीवित रहेंगे परजीवियों की तरह ?)


इस निवेश से संभावित नुक्सान--


  • छोटे तथा घरेलू उद्योग समाप्त हो जायेंगे।


  • छोटे व्यापारी उजड़ जायेंगे।


  • किसान बर्बाद हो जायेंगे।


  • गरीबों की आजीविका छीन जायेगी।


  • वालमार्ट अपना पाँव पसारेगा तो धीरे धीरे हमारी ज़मीनें भी महंगे दामों में खरीद कर अपनी जडें मजबूत करेगा और रियल स्टेट के दाम बढेंगे।


  • पूर्व में गुलामी भी इसी तरह विदेशी कंपनियों की घुसपैठ से ही मिली थी।


  • हज़ारों लोग बेरोजगार हो जायेंगे।


  • दूसरा कोई विकल्प न होने के कारण ये आत्महत्या करने पर मजबूर हो जायेंगे।


  • अपने देशवासियों के साथ घात करके विदेश को संपन्न करना कहाँ की अकलमंदी है?


इस तरह से तो हमारा देश तरक्की नहीं करेगा बल्कि हम अपने देश की गरीब जनता, छोटे मोटे व्यापारी , उधोगपति, किसानों आदि के पेट पर लात मारेंगे।
श्री सिंह तो देशवासियों के दर्द को समझ नहीं रहे , लेकिन हम और आप इस निवेश के खिलाफ एकजुट होकर इसका बहिष्कार कर सकते हैं। हमने स्वदेशी के इस्तेमाल द्वारा आजादी पायी थी और विदेशी सामानों का बहिष्कार किया था। आज एक बार फिर उसी जागरूकता की ज़रुरत है वरना देश पुनः इन विदेशियों के चंगुल में चला जाएगा।
बेरोजगारी से पीड़ित हो हज़ारों लोग भूखे मरेंगे , रोयेंगे और कलपेंगे, आत्महत्या करेंगे, वहीँ हमारी आने वाली पीढियां हो सकता है गुलाम भारत में ही जन्म लें। अतः सचेत रहने की अति-आवश्यकता है। ये विदेशी कम्पनियाँ हम पर राज करेंगी और हमें कई दशक पीछे धकेल देंगीं ।
कब्र में पाँव लटकाए लोग तो चल बसेंगे, लेकिन ज्यादा ज़रुरत है नौजवानों के खून में उबाल आने की और सचेत रहने की। बहिष्कार करो अन्यथा आप और आपकी आने वाली संतानें की भुक्तभोगी होंगी इस विदेश निवेश की। ये ईसाईयों की पार्टी (सरकार) , जो भगवा को आतंकवाद करार देती है और आतंकियों को शाही दामाद की तरह रखती है, वह अब विदेशियों को घुसपैठ करने की अनुमति देकर हमारी आधी जनता के मुंह का निवाला छीन रही है।
इन वाल मार्ट्स द्वारा कनाडा आदि कई देश अपने लोकल निवेशकों और व्यापारियों को पूरी तरह खो चुके हैं । यही हश्र भारत का भी होगा। शुरू-शुरू में ये कम्पनियाँ लुभावेंगी , लेकिन एक बार जडें मज़बूत होने के बाद ये हमारे किसानों और उत्पादकों को दूध से मक्खी की तरह निकाल फेकेंगी . बाद में ये हमारे किसानों द्वारा उत्पादित फसलों की क्वालिटी पर ऊँगली उठा, उन्हें भी नकार देंगीं। हम मुंह ताकते रह जायेंगे।

यह निवेश भारत देश की आने वाली आबादी के लिए गुलामी और गरीब आबादी के लिए मौत का फरमान होगी। श्री सिंह को इटली से आदेश मिलते ही हैं, चीन भी बताता है की कौन सी कान्फरेन्स अटेंड करनी है दलाई लामा की और अब अमेरिका बताएगा की देश कैसे चलाया जाए और देश का विकास कैसे हो।
जब देश आतंकवाद और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों से जूझता है तो श्री सिंह भोली-गाय बन जाते हैं लेकिन क्या चक्कर है जब विदेशी निवेश की बात होती है तो वे 'शेर' बन जाते हैं ? स्वयं तो कुछ वर्षो के ही मेहमान होंगें लेकिन आने वाली पीढ़ियों को गुलाम कर जायेंगे ये।
अपने देश को सुरक्षित रखने के लिए सचेत रहना होगा। ये विदेशी कम्पनियाँ हमारी सगी कभी नहीं हो सकतीं। इनका स्वार्थ इन्हें भारत की तरफ गिद्ध-दृष्टि करवाता है। और श्री सिंह की असंवेदनशीलता ही छोटे व्यापारियों और कुटीर उद्योगपतियों के पेट पर लात मारती है और बेरोजगारी को बढाती है। जब तक बेरोजगार होने वालों की पुनर्स्थापना का कोई बेहतर विकल्प न ढूंढ लिया जाए , तब तक ऐसे निवेश के बारे में सोचने का कोई अधिकार नहीं है सरकार को।
अपने देशवासियों की आहों पर तरक्की नहीं चाहिए हमें। हमारे देश के पास संसाधन भी है, विद्वता भी। हम अपने प्रयासों से और स्वदेशी के उपयोग से अपने देश का विकास करने में सक्षम हैं और इस निवेश का पूर्णतया बहिष्कार करते हैं।
केवल 'भारत-बंद' से काम नहीं चलेगा। इस सरकार का तख्ता उलटना भी बहुत ज़रूरी है क्योंकि यह देश और देशवासियों के विकास के उल्टा ही सोचती है।
ईश्वर भारतवासियों को सद्बुद्धि और जागरूकता दे। सचेत रखे।

भारत-माता की जय।


वन्देमातरम !

Zeal

Monday, November 28, 2011

काश मैं तुम्हारा पति होता... (कहानी)

ऋचा और देव एक दुसरे से बहुत प्रेम करते थे लेकिन विवाह के बंधन में बंध नहीं सकते थे क्यूंकि माता-पिता, भाई-बहन , मित्र और समाज की आपत्ति थी उनके रिश्ते पर। प्रेम विवाह को आसानी से स्वीकृति जो नहीं मिलती. लेकिन केवल प्यार करने वाला दिल ही जानता है कि प्रेम से पवित्र कुछ नहीं होता।


आखिर ऋचा ने विकल्प ढूंढ ही लिया । विवाह नहीं हो सकता तो क्या ? धर्म पत्नी नहीं बन सकती तो क्या , अग्नि के फेरे नहीं ले सकती तो क्या , गवाह भी नहीं हैं तो क्या हुआ। उसने मन से देव को अपना पति मान लिया। एक दुसरे से अलग रहते हुए भी, पूर्ण समर्पण के साथ आगे का सफ़र तय होता रहा। विवाह एक तपस्या कि तरह था उन दोनों के लिए..


देव और ऋचा का प्रेम पवित्र था। दोनों को एक दुसरे पर पूर्ण विश्वास भी था. बस एक ही बात का दुःख था ऋचा को। देव बात-बात पर अक्सर यह कह जाता था --


यदि मैं तुम्हारा पति होता...

यदि मेरा और तुम्हारा विवाह हुआ होता तो..

मुझे तो विवाह का अनुभव` ही नहीं है ...

मैं कुंवारा हूँ...

यदि ऐसा होता ...

यदि वैसा होता ...

यदि परिस्थितियाँ आम शादी-शुदा पति-पत्नी कि तरह होती तो मैं यह प्रमाणित कर देता कि मैं तुम्हारे लिए क्या-क्या कर सकता हूँ...


देव कि सभी बातें सत्य थीं फिर भी ऋचा को यही दुःख था कि क्या वह उसे पत्नी नहीं समझ पाता था। जिसे वह मन से अपना पति मान सर्वस्व समर्पित कर चुकी है क्या वह अभी भी दुविधा में है?... क्या धर्मपत्नी ही पत्नी है?...क्या मन का समर्पण व्यर्थ है?...


अपने अनुत्तरित प्रश्नों के साथ ऋचा अपना पत्नी धर्म निभा रही है, और इसी आस में है कि शायद देव, धर्मपत्नी और मन तथा विश्वास से मानी गयी पत्नी का भेद मिटा देगा एक दिन......पति-धर्म निभाने के लिए और प्रमाणिकता साबित करने के लिए किसी विशेष परिस्थिति का इंतज़ार नहीं करेगा...




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Saturday, November 26, 2011

तुम कान्हा हो मैं मीरा हूँ, हर युग में तुमको अपना मानूँ...

द्वापर के हो या त्रेता के,तुम किस युग के हो ,मैं क्या जानूं
हर युग में करूँ मैं प्रेम तुम्हें , बस तुमको ही अपना मानूँ

सुन कान्हा सुन , तुम मेरे हो ,
तुम मेरे हो , तुम मेरे हो
मैं गोपी हूँ , मैं मीरा हूँ, मैं राधा भी और मुरली भी
मन मंदिर में हो तुम ही बसे ,हो कान्हा तुम और मोहन भी

हैं रास तुम्हारे देख सभी, स्त्री मन सारे खिल जाते
और ज्ञान की अद्भुत गंगा में गांडीव हज़ारों उठ जाते
हो चीर हरण गर नारी का, संरक्षक बन तुम आ जाते
दुष्टों का मर्दन करने को , हैं चक्र सुदर्शन चल जाते.

कर्म है करना सीखा तुमसे, हर पग पे है लड़ना सीखा तुमसे,
कर्तव्य का बोध करा हमको , सन्मार्ग का बोध करा डाला,
हे गोविंदा , हे गोपाला , हे कृष्ण-सखा, हे नंदलाला,
तुम अद्भुत हो तुम श्रेष्ठ बहुत , पहनो मेरी तुम वरमाला.

सतयुग के हो या द्वापर के, तुम किस युग के हो, मैं क्या जानूँ
तुम कान्हा हो मैं मीरा हूँ, बस तुमको ही अपना मानूँ

Zeal

Thursday, November 24, 2011

अविराम युद्ध

द्वारकाधीश श्रीकृष्ण का कहना है कि कर्म करो, कर्म से विमुख मत हो , जीवन एक संघर्ष है , सतत युद्ध करो, कभी अपने मन के बढ़ते मोह से , कभी स्वजनों के मोह से, कभी देश-द्रोहियों से तो कभी धर्म (कर्तव्य) से विमुख होने वालों से.

स्वतंत्रता सेनानी मोहनदास करमचन्द्र गांधी का कहना है - "कोई एक गाल पर मारे तो दूसरा सामने कर दो"

मेरे विचार से अन्याय को कतई सहना नहीं चाहिए, इस प्रकार कि सहनशीलता कर्तव्यों से विमुख करती है , नकारा बनाती है, अराजकता बढाती है, दुष्टों का हौसला बुलंद करती है और संसार से सकारात्मक ऊर्जा को कम करती है.

अतः गांडीव उठाओ पार्थ, एक गाल पर मारने वाले के दोनों गाल पर सजा दो ताकि दुबारा किसी के साथ भी ऐसी कुचेष्ठा न करे.

अपराध का दंड अवश्य मिलना चाहिए... आज का दुर्भाग्य यही है कि अपराधी बिना सजा पाए मुक्त घूम रहे हैं , दंड के अभाव में ही अराजकता बढ़ रही है .

हे पार्थ युद्ध करो ! यह जीवन एक सतत संघर्ष है , केवल युद्ध ही देश काल और परिस्थिति को व्यवस्थित और वातावरण को कलुष से रहित रखा सकता है.

अतः कैसी भी परिस्थिति आये , गांडीव मत रखना....उठो ! जागो ! युद्ध करो !

अविराम युद्ध !

उद्घोष करो - वन्देमातरम !

Zeal

Tuesday, November 22, 2011

वतन की माटी ..

अनेक मंचों पर चर्चाओं के दौरान लोगों के ये ताने सुने कि -"आप तो विदेश में रहती हैं , आपको भारत देश के बारे में सोचने का क्या अधिकार है ? "

इस बचकानी दलील का क्या जवाब दूं ? ...आप दुसरे शहर में बस जाते हैं तो क्या माँ को भुला देते हैं ? बेटियां विदा होने के बाद मायके को भूला बैठती है ?

वो भारतवासी क्या जो भारत कि माटी को ही भुला दे।

जन्मभूमि से जुडी हमारी जडें इतनी कमज़ोर नहीं कि विदेशी धरती पर पाँव रखते ही मुरझा जाएँ।

अपनी माँ अपनी ही है , अमिट प्यार जो है करती...

वन्दे मातरम् !

Zeal

Saturday, November 19, 2011

कांग्रेस छीन रही है भारतीय मुसलमानों का स्वाभिमान



ये सरकार किसी की सगी नहीं है। एक विदेशी द्वारा स्थापित हुई और आज भी एक विदेशी द्वारा ही संचालित है, फिर इससे देशभक्ति की उम्मीद करना ही व्यर्थ है। देश के विकास, भाईचारे और शान्ति बनाए रखने से इनका कोई सरोकार ही नहीं है।


यह सरकार मुसलामानों और अल्पसंख्यकों के नाम के विधेयक लाती है, क्योंकि इसमें उसका निजी स्वार्थ है। यह सरकार बिना इनके वोट पाए कभी टिकी नहीं रह सकेगी चरमरा कर गिर जायेगी इसलिए यह सरकार मुस्लिम समुदाय के तुष्टिकरण की नीति अपनाती है।


हमारे देश के मुसलमान यह समझते हैं कि यह सरकार उनकी शुभचिंतक है, उनके हित में सोच रही है, लेकिन नहीं वह तो केवल इनके वोटों का इस्तेमाल कर रही है। सत्ता में बने रहने के लिए वह इन्हें बलि का बकरा बनाकर इन्हें हलाल कर रही है पिछले ६४ वर्षों से।


अल्पसंख्यकों को चाहिए कि वे अपने स्वाभिमान को जगाएं। अपने निजी हित से ऊपर उठकर राष्ट्र के बारे में सोचें वे कमज़ोर नहीं हैं, मोहताज नहीं हैं जिन्हें भाँती-भाँती के आरक्षण और विशेष सुविधाओं की ज़रुरत हो। उन्हें अपने ज्ञान और शिक्षा के आधार पर उपलब्धियां हासिल करनी चाहिए अन्य भारतीयों की तरह।


मुस्लिम समुदाय को ये स्पष्ट दिखना चाहिए कि सरकार उन्हें मोहरा बनाकर देश को अल्प और बहुसंख्यक में विभाजित कर रही है। हिन्दू-मुस्लिम के बीच द्वेष की खाई को बढ़ा रही है।


यदि मुस्लिम इस देश को अपना समझते हैं और भाईचारा रखते हैं, धर्मनिरपेक्ष भी समझते हैं स्वयं को तो उन्हें भी खुलकर विरोध करना चाहिए। ऐसे मनमाने विधेयकों का जो हिन्दुओं का अधिकार छीन रही है और मुसलामानों को बदनाम कर रही है।


मुस्लिम समुदाय को विरोध करना चाहिए ऐसे विधेयकों का, आरक्षणों का, और ऐसी स्वार्थी सरकार का जो देश का हित नहीं सोचती, देश की समस्त जनता के बारे में नहीं सोचती बल्कि समुदाय विशेष को निज हित में आगे रखती है।


आपको अपना वोट देश-हित में इस्तेमाल करना चाहिए, सदियों से किसी एक पार्टी की गुलामी क्यों ?...डर किस बात का है? निज हित से ऊपर उठिए स्वाभिमान से जियें।


ये देश आपका भी उतना ही है, जितना अन्य समुदायों का, तो फिर आपके नागरिक अधिकार भी उतने ही होने चाहिए जितने अन्य भारतीय नागरिक के हैं।


अनायास ही कोई ज्यादा कृपा करे तो समझ लीजिये दाल में कुछ काला है। आपका नहीं अपितु कृपा करने वाले का ही कोई निजी स्वार्थ है।


स्वाभिमान से जियें, सरकार की कृपा के मोहताज नहीं हैं आप।


जागो मुस्लिम जागो !


स्वाभिमान जगाओ


जोर से बोलो--


वन्देमातरम !




Sunday, November 13, 2011

भारत विभाजन की नयी विभीषिका




जो
अल्पमत जबरदस्ती देश का विभाजन करा सकता है, उसे आप अल्पसंख्यक क्यूँ समझते हैं ? वह एक मजबूत सुसंगठित अल्पमत है, फिर उसे संरक्षण एवं विशेष सुविधाएं क्यूँ ? -- सरदार वल्लभ भाई पटेल-- (दिनाक२५-२६ मई १९४९ को संविधान सभा में)

साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा निवारण विधेयक द्वारा केंद्र सरकार पूरे जोर-शोर से एक ऐसा क़ानून बनाने की तैय्यारी कर रही है, जो भारत में बड़े रक्तपात और विभाजन की बुनियाद रख सकता है श्रीमती सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय सलाहकार पार्षद द्वारा तैयार इस कानून के हिन्दू विरोधी प्रारूप को शीघ्र अतिशीघ्र कानून का रूप देने के लिए केंद्र सरकार तत्पर है यदि यह प्रारूप कानून का रूप लेता है तो इस देश में अल्पसंख्यक के बहाने मुसलमान और ईसाइयों के हाथों में सारे अधिकार और संसाधन सौंप दिए जायेंगे अर्थात अपने ही राष्ट्र में हिन्दू , दोयम दर्जे का एक भयभीत और गुलाम नागरिक होगा क़ानून कितना भयावह होगा उसे स्वयं देखिये-----


यदि यह विधेयक नहीं रोका गया तो ----


  • जिस मंडली ने इसका प्रारूप तैयार किया है उसमें वे सभी शामिल हैं जो राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के विरोधी हैं । जैसे राम जन्मभूमि आन्दोलन के घोर विरोधी हर्ष मंदर , गुजरात में मुसलामानों को सदैव उकसाने वाली अनु आगा, गुजरात दंगों में झूठे गवाह जुटाने का दुष्कृत्य करने वाली तीस्ता सीतलवाद, मुस्लिम इण्डिया चलाने वाले सैय्यद शहाबुद्दीन, भारत में धर्मांतरण कराने वाले जून दयाल, हिन्दू देवी-देवताओं का खुला अपमान करने वाले शबनम हाशमी तथा नियाज़ फारुखी आदि।
  • यह सभी हिन्दू विरोधी तत्वों की वह जमात है जिसे किसी विधेयक को तैयार करने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है। एक ओर सरकार सिविल सोसायटी के औचित्य पर प्रश्न खड़ा करती है वहीँ दूसरी ओर ऐसे तत्वों को भारत विध्वंस की खुली छूट दे रखी है।
  • यह विधेयक उस समय सार्वजनिक किया है जब अमेरिका की बदनाम इसाई संस्था अंतर्राष्ट्रीय धर्म स्वातंत्र्य आयोग ने भारत को अपनी निगरानी सूची में रखा है। इस आयोग ने गुजरात और उडीसा के दंगों का उल्लेख किया है लेकिन काश्मीर, त्रिपुरा और मणिपुर के जघन्य नरसंहारों पर मौन साध रखा है।
  • यह विधेयक सांप्रदायिक हिंसा के अपराधियों को अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक के आधार पर बांटने का अपराध करता है। अभी तक यही लोग कहते थे की अपराधी का कोई धर्म नहीं होता है , लेकिन इस विधेयक में क्यों सांप्रदायिक हिंसा के अल्पसंख्यक अपराधियों को दंड से मुक्त रखा रखा गया है।
  • विधेयक का अनुच्छेद-८ , अल्पसंख्यकों की आलोचना को घृणा का प्रचार या अपराध मानता है परन्तु हिन्दुओं के विरुद्ध इनके नेता और संगठन खुले आम दुष्प्रचार करते हैं लेकिन उन्हें अपराधी नहीं माना जाता।
  • स्वतंत्र भारत के इतिहास में कथित अल्पसंख्यक समाज के द्वारा हिन्दू समाज पर १,५०,००० से अधिक हमले हुए हैं तथा हिन्दुओं के मंदिरों पर लगभग ५०० बार हमले हुए। २०१० में बंगाल के देगंगा में हिन्दुओं पर भायक अत्याचार हुआ।
  • अनुच्छेद- के अनुसार एक मुस्लिम महिला के साथ दुर्व्यवहार होता है तो वह अपराध है जबकि हिन्दू महिला के साथ किया बलात्कार भी अपराध नहीं है.
  • यह हिन्दू समाज को विभक्त करने का षड्यंत्र हैसंघर्षों को रोकने के लिए जिस सद्भाव की आवश्यकता होती है , इस कानून के बाद तो उसकी धज्जियाँ ही उड़ने वाली हैं

  • वो हिन्दू समाज जिसके कारण आज भारतवर्ष में धर्म-निरपेक्षता ज़िंदा है, उसे ही आज कटघरे में खड़ा किया जा रहा है इस विधेयक के माध्यम से।
  • ये लोग सेक्युलेरिज्म की मनमानी परिभाषा देकर देशभक्तों को प्रताड़ित करना चाहते हैं । वन्देमातरम का उद्घोष और गो हत्या के खिलाफ बोलना भी कानूनी जुर्म हो जाएगा।
  • सोनिया जी के अनुसार सेक्युलेरिज्म की परिभाषा है - अफज़ल गुरु को बचाना, आजमगढ़ जाकर आतंकवादियों के हौसले बढ़ाना , मुंबई हमले में बलिदान हुए लोगों के बलिदान पर प्रश्न चिन्ह लगाना, मदरसों में आतंकवाद के प्रशिक्षण को बढ़ावा देना, बंगलादेशी घुसपैठियों को बढ़ावा देना आदि।
  • विधेयक के उपबंध ७४ के अनुसार यदि किसी व्यक्ति के ऊपर घृणा सम्बन्धी प्रचार या साम्प्रदायिक हिंसा का आरोप है तो उसे तब तक दोषी माना जाएगा जब तक वह निर्दोष सिद्ध न हो जाये । यह उपबंध संविधान की मूल भावना के विपरीत है जिसके अनुसार जब तक अपराध सिद्ध न हो जाए तब तक आरोपी को निर्दोष माना जाए। अतः अब किसी को जेल भेजने के लिए किसी हिन्दू पर आरोप लगाना मात्र ही पर्याप्त होगा।
  • कोई कार्यकर्ता यदि आरोपी है तो संगठन का मुखिया भी अपराधी माना जाएगा। अतः आसानी से हिन्दू संगठनों और उनके नेताओं को जकड़ा जा सकेगा।
  • यदि दुर्भाग्य से यह विधेयक पास हो जाता है तो राज्य सरकार के अधिकारों को केंद्र सरकार आसानी के साथ हड़प सकती है।
  • प्रस्तावित अधिनियम में निगरानी व निर्णय लेने के लिए सात सदस्य होंगे जिसमें से चार अल्पसंख्यक होंगे। किसी न्यायिक प्राधिकरण का सांप्रदायिक आधार पर विभाजन देश को किस और ले जाएगा ?
  • इस प्राधिकरण को असीमित अधिकार दिए गए हैं । यह न केवल सशस्त्र बालों को सीधे निर्देश दे सकता है अपितु इनके सामने दी गयी गवाही न्यायालय के सामने दी गयी गवाही न्यायलय के सामने दी गयी गवाही मानी जाएगी। इसका अर्थ है तीस्ता जैसी झूठा गवाह तैयार करने वाली अब अधिक खुलकर अपने षड्यंत्रों को अंजाम दे सकेंगीं।
  • अनुच्छेद १३ सरकारी कर्मचारियों पर इस प्रकार शिकंजा कसता है की वे अल्पसंख्यकों का साथ देने के लिए मजबूर होंगे , चाहे वे ही अपराधी क्यों होंकोई अधिकारी इन लोगों से सहज काम भी नहीं करवा सकेगाकिसी अल्पसंख्यक की झूठी शिकायत पर भी हिन्दुओं को - वर्ष की सश्रम कारावास का प्रावधान हैयानी पुलिस भी उनकी कठपुतली होगी

  • यदि यह विधेयक लागू हो जाता है तो किसी भी अल्पसंख्यक व्यक्ति के लिए किसी भी बहुसंख्यक को फंसाना आसान हो जाएगा । वह केवल पुलिस में शिकायत दर्ज कराएगा और पुलिस अधिकारी को उस हिन्दू को बिना किसी आधार के गिरफ्तार करना पड़ेगा। वह हिन्दू किसी सबूत की मांग नहीं कर सकता न ही शिकायतकर्ता का नाम पूछ सकता है। इसका अर्थ है अब कोई भी मौलवी या पादरी द्वारा किये हुए किसी भी दुष्प्रचार की शिकायत नहीं कर सकता ।
  • इस विधेयक के अनुसार अब पुलिस अधिकारी के पास असीमित अधिकार होंगे। वह जब चाहे तब आरोपी हिन्दू के घर की तलाशी ले सकता है । यह अंग्रेजों द्वारा लाये गए कुख्यात 'रोलेट-एक्ट' से भी ज्यादा खतरनाक सिद्ध हो सकता है । इस विधेयक की धारा ८१ में कहा गया है की ऐसे मामलों में नियुक्त विशेष न्यायाधीश किसी अभियुक्त के ट्रायल के लिए उसके समक्ष प्रस्तुत किये बिना भी उसका संज्ञान ले सकेगा और उसकी संपत्ति को भी जब्त कर सकेगा।
  • इसके अनुसार किसी अल्पसंख्यक के व्यापार में बाधा डालना भी इसमें अपराध है। यदि कोई मुसलमान किसी हिन्दू की संपत्ति को खरीदना चाहता है और वह हिन्दू माना करता है तो वह अपराधी कहलायेगा हिन्दू मकानमालिक , अल्पसंख्यक किरायेदार से अपना मकान खाली नहीं करा सकता । इस विधेयक में गृहस्वामी ही कटघरे में होगा।
  • अब हिन्दू को इस अधिनियम में इस तरह क़स दिया जाएगा की उसको अपने बचाव का बस एक ही रास्ता दिखाई देगा की वह धर्मांतरण को मजबूर हो जाएगा।
  • इस विधेयक के भेदभाव का सबसे बड़ा नमूना यह है की जम्मू-काश्मीर और पूर्वांचल के जिन राज्यों में आज हिन्दू अल्पसंख्यक हो गया है , वहां यह कानून लागू नहीं होगा। अतः स्पष्ट है की यह विधेयक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए नहीं अपितु हिन्दुओं को प्रताड़ित और गुलाम बनाने के लिए लाया जा रहा है।


यदि यह विधेयक पास हो जाता है तो परिस्थिति और भी भयावह होगी आपातकाल में किये गए मनमानीपूर्ण निर्णय भी फीके पड़ जायेंगे। हिन्दू का हिन्दू के रूप में रहना और भी मुश्किल हो जाएगा। भारतवासियों को दो हिस्से में बांटने की कानूनी साजिश और घृणा की स्थायी दीवार बनाकर , नए विभाजनों की नीव रखी जा रही है। श्री मनमोहन सिंह ने पहले कहा थी कि देश के संसाधनों पर मुसलामानों का पहला अधिकार है। यह विधेयक इस कथन का नया संस्करण है। इस विधेयक के विरोध में एक सशक्त आन्दोलन खड़ा करना होगा तभी इस तानाशाहीपूर्ण कदम पर रोक लगायी जा सकती है।

Zeal

Friday, November 11, 2011

११-११-११ की तारीख स्त्रियों की एक कमजोरी के नाम

नारियों के उद्धार और उत्थान के लिए सदियों से प्रयास जारी हैं। २०११ में भी बेटी बचाओ जैसे सद्प्रयास किये जा रहे हैं। लेकिन क्या वजह है की नारियों की सामाजिक दशा में परिवर्तन की गति बहुत धीमी है।

उसका कारण है की वे स्वाभिमान के साथ जीना ही नहीं चाहती। वे पुरुषों द्वारा रौंदे जाने में ही अपना स्त्री -सुख समझती हैं। ऐसी स्त्रियों के कारण ही स्वाभिमानी स्त्रियाँ भी गेहूं के साथ घुन की तरह पिसती हैं।

यदि नारी शक्ति एक हो जाए तो कहर बरपा सकती है। अपने साथ-साथ दूसरी स्त्री के सम्मान की भी रक्षा कर सकती है। उसके अधिकारों के लिए लड़ सकती है, उसके अधिकार दिला सकती है और उसके स्वाभिमान को वापस ला सकती है।

लेकिन नहीं , ऐसी स्थिति में अक्सर देखा गया है की , कमज़ोर स्त्रियाँ , अपनी बहनों का साथ देने के बजाये दुशासनों का साथ देना ज्यादा पसंद करती हैं। वे सोचती हैं , उनका अपमान तो हुआ नहीं है फिर वे क्यूँ सरदर्द मोल लें। वे उस घृणित इंसान का विरोध अथवा बहिष्कार करना तो दूर , उसके पास अपनी स्वेच्छा से जाती हैं, यह कहते हुए- " उसे भूलो भी , मैं हूँ !मुझे रौंदो, मुझे कुचलो"

आँख के सामने अश्लीलता को घटते हुए देखेंगी , फिर भी वे उस पुरुष का बहिष्कार करने की हिम्मत नहीं जुटा पातीं। वे उससे सम्बन्ध तोड़कर स्वयं को उस स्त्रियोचित सुख से वंचित नहीं करना चाहतीं। वे एक लम्बे अरसे तक उससे जुडी रहती हैं , जब तक की स्वयं उनका नंबर नहीं जाता। वे पुरुषों की चिकनी-चुपड़ी फेंकी गयी रोटियों पर अपना बसर करती रहती हैं। अपनी बहनों का अपमान करने वालों को "आदरणीय" कहकर अपने घर निमंत्रित करती हैं।

शर्मनाक है स्त्रियों का ऐसा चरित्र।

कुछ पुरुष जो स्त्रियों को नीचा दिखाते हैं , गाली -गलौज करते हैं , उनका भी बहिष्कार नहीं कर पातीं कुछ स्त्रियाँ। उनसे दूर रहने का लोभ -संवरण नहीं कर पातीं। जुडी रहती हैं उनसे चिरकाल तक वर्तमान में घट रही घटनाओं से सबक नहीं लेतीं, अपितु ऐसे पुरुषों का बहिष्कार करके वे इनके कुत्सित मंतव्यों को बल प्रदान करती हैं और भविष्य में अन्य बहुत सी महिलाओं के अपमान का कारण बनती हैं।

पुरुष भी चतुर होते हैं ऐसे कमज़ोर स्त्रियों को पहचान कर उससे सम्बन्ध साधे रखते हैं ताकि वे महिलाएं आड़े वक़्त में उनके काम आयें उन्हें ज्यादा कुछ करना भी नहीं पड़ता -- बस दो -चार मक्खन -मलाई वाली बातें और वे जाती हैं इनके झांसे में।

जगाओ स्वाभिमान और बचाओ सम्मान अपनी बहनों का भी

  • बहिष्कार करो दहेज़ लोभियों का
  • कन्या -भ्रूण हत्या करने वालों का
  • राजीव मेनन जैसे बौसों का
  • स्त्रियों को गाली देने वालों का
  • अश्लील आलेख लिखने वालों का



स्त्रियों के लिए लड़ने वाली स्त्रियों की संख्या पहले ही काफी कम है , यदि वे भी अपने कर्तव्यों से विमुख हो जायेंगी तो कैसे सुधरेगी स्त्रियों की दशा इस समाज में।Link


गर कर सको तुम पैदा , स्वाभिमान खुद में कर लो।
हो बहन कहीं अपमानित, सीने में आग भर लो।
लौटा दो मान उसका , तुम स्वार्थ अपना छोडो।
तुम नारी हो , तुम शक्ति हो , कर्तव्य से मुख मोड़ो।

Zeal

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आभार

Wednesday, November 9, 2011

महिला है--मुट्ठी में रखो, ना माने तो प्रताड़ित करो.

Big FM भोपाल के स्टेशन हेड 'राजीव मेनन ' , ने अपनी जूनियर RJ मानसी को छुट्टी से लौटने पर यह कहकर की वह बिना बताये भाग गयी , को नौकरी ज्वाइन नहीं करने दी। जबकि मानसी के पास लिखित में परमिशन थी। जब मानसी ने बताया की उसे कुछ gynaecological complication थी , जिसकी surgery के लिए उसे दिल्ली जाना पड़ा, तो राजीव मेनन ने उसे मजबूर किया की वह अपनी मेडिकल प्रोब्लम उसे बताये।

एक स्त्री यह बात अपने बॉस को बताएगी या एक डाक्टर को ? एक स्त्री , अपनी स्त्री-सम्बन्धी समस्याओं का जिक्र अपने पति से अथवा किसी स्त्री रोग विशेषज्ञ से ही करेगी ना की अपने ऑफिस में गैर पुरुष और बॉस से करेगी। जब उसने अपनी स्त्री सम्बन्धी व्याधि को discuss करने से इनकार किया तो उसे नौकरी ही नहीं ज्वाइन करने दी गयी मानसी न्याय के लिए भटक रही है। कहीं कोई सुनवाई नहीं। उसकी शिकायत दर्ज नहीं की जा रही वह मीडिया से बात कर रही है , लेकिन राजीव ने चुप्पी साध रखी है और मुंह छुपाता फिर रहा है।

कब तक जारी रहेगा ये शातिरपना। सदियों से स्वाभिमान के साथ जीने को तरसती नारी कब सर उठा कर जी सकेगी। यदि २३ वर्षीय मानसी , जिसे उचित, अनुचित और मर्यादाओं का पूरा ज्ञान है और वह बॉस के चंगुल में आने से इनकार करती है तो उसे नौकरी से निकाल दिया जाता है।

यदि स्त्री असहज है अपनी बात कहने में तो उससे जबरदस्ती पूछना अनुचित है।

घर हो या बाहर, sexual harassment बदस्तूर जारी
हैसर उठाकर सम्मान और आजादी के साथ जीने का हक नहीं है स्त्री को। कब बदलेगी ये मानसिकता ? कब मिलेगा सम्मान नारी को?

क्या दो ही विकल्प हैं ? बॉस के हाथों की कठपुतली बनना या फिर नौकरी से तिरस्कृत हो निकाला जाना ?

घोर निंदा करती हूँ ऐसे घृणित कृत्य की। राजीव को उसकी गलती की पूरी सजा मिलनी चाहिए ताकि ऐसे अक्षम्य अपराधों की पुनरावृत्ति हो और स्त्रियों को उपभोग की वस्तु समझने से पहले कांपे इनकी अंतरात्मा भी।

Zeal

Tuesday, November 8, 2011

मर्दानगी

कलियुग में जिन गुणों का लोप हो रहा है , उसमें से एक है 'मर्दानगी' अतः उचित समझा इस विषय पर भी आपके विचार जाने जाएँ।

बढ़ रही मर्दों की संख्या, खो रही मर्दानगी
टकरा रहे अहम् के बादल , छुप रही मर्दानगी,
बेलगाम हो रहा अहंकार , बढ़ रहे शिकवे-गिले,
कर्तव्य से हो रहे विमुख सब, सिसक रही मर्दानगी

यहाँ 'मर्द' से अर्थ सामान्य-जन अर्थात स्त्री एवं पुरुष दोनों से हैतथा 'मर्दानगी' अथवा "पौरुष" भाववाचक संज्ञा (abstract noun) से है

मर्दानगी के विलुप्त होते इस दौर में भी अधिकाँश लोग इसी भ्रम में जीते हैं की उनसे ज्यादा मर्दानगी किसी में नहीं है। समझने के लिए कुछ उदाहण का ज़िक्र करूँगी


  • आज हमारी सरकार बड़े से बड़े मुद्दे पर 'चुप्पी' साधने में ही अपनी मर्दानगी समझती है।

  • दूध के धुले दिग्गी राजा , जिसे देखो उस पर ऊँगली उठाकर कटघरे में खड़ा करने में ही अपनी मर्दानगी समझते है।

  • युवराज राहुल तो दलितों के घर भोजन करने में ही अपनी मर्दानगी समझते हैं।

  • दिल्ली पुलिस की मर्दानगी तो भूखे प्यासे अनशनकारियों को आधी रात में पीटने में है।

  • बात करें अगर ब्लॉगजगत की तो दिन-प्रतिदिन संख्या बढ़ रही है 'पोपटलाल' और 'झपट कमाल' जैसे लोगों की संख्या बढ़ रही है , जो साथी ब्लॉगर पर अश्लील आलेख लिखते हैं और फिर भिखमंगों की तरह अपने अश्लील आलेख का लिंक बांटकर टिप्पणी की भीख मांगने में ही मर्दानगी समझते हैं। उससे भी ज्यादा मर्दानगी उन लोगों की है, जो टिप्पणियों की संख्या घट जाए , इस कारण से उन अश्लील टिप्पणियों को अपने ब्लॉग से हटाते तक नहीं।

  • कुछ लोग 'मोरल पुलिसिंग' बहुत करते हैं लेकिन ब्लॉगजगत में इतना कुछ अभद्र और अश्लील घट रहा है , लेकिन उस पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं होती।

  • किसी के गुणों को पहचानकर उसकी प्रशंसा करना लोगों के अहंकार को चोट पहुंचाता है लेकिन किसी के पीछे पड़कर उसके खिलाफ अश्लील और अभद्र आलेख लिखकर उसकी गरिमा को हानि पहुँचाने में ही अपनी मर्दानगी समझते हैं।

धन्य हैं ऐसे मर्द और धन्य है ऐसी मर्दानगी।


वैसे मर्दानगी एक मिसाल सुभद्रा कुमारी चौहान के शब्दों में.....

बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी ,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी

Zeal

Monday, November 7, 2011

ईद मुबारक


पूड़ी, पुलाव, दाल मखनी, मटर पनीर , खीर और सिवयीं खाएं, निरीह चौपायों की लाश खाएं। त्योहारों में खुशियों भरी किलकारियां गूंजनी चाहिए, भय मिश्रित हलाल होते पशुओं की चीखें नहीं। खेलना ही है तो रंगों की होली खेलिए। खून की होली क्यूँ ? धर्म के नाम पर निरीह पशुओं की बलि क्यूँ ? बदलते वक़्त के साथ अपनी सोच बदलिए। जबान के चटोरेपन के कारण देश और विश्व भर में कितनी कुर्बानियां दी जायेंगी आज ?

त्यौहार की शुभकामनाएं।


Zeal
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यह कोई बहस का मुद्दा नहीं है। यदि आप मेरी बात समझेंगे तो ज़रूर खुद को बदलेंगे, अन्यथा जिरह करेंगे अनायास ही अतः कमेन्ट ऑप्शन बंद है

आभार।

Sunday, November 6, 2011

माफ़ करके आप मुझे, दोहरी सजा न दीजिये

जगत जननी शारदे , वरदान इतना दीजिये
मन मेरा विचलित हो , पत्थर इसे कर दीजिये
जो हुयी है भूल मुझसे , दंड उसका दीजिये
बढ़ रहे गुनाह को , आप क्षमा कीजिये।


कहीं मेरे अपराध से , मासूम जन छले जाएँ
गर कहीं वो दूर मुझसे , निराश हों चले जाएँ।
पश्चाताप की आग में भस्म मुझको कीजिये,
जगत जननी शारदे , वरदान इतना दीजिये।

इस अक्षम्य अपराध का माँ,दंड पूरा दीजिये
अब सज़ा की आग में कुंदन मुझे कर दीजिये।
गर भटक कर लक्ष्य से मैं दूर तुझसे जा रही
सर कलम कर , दोष से अब मुक्त मुझको कीजिये।

माँ मुझे इस पाप की पूरी सजा है चाहिए,
माफ़ करके आप मुझे, दोहरी सजा दीजिये।
ग्लानी के इस ताप से अब मुक्त मुझको कीजिये।
मन के तम को हर-ले माँ , ये मार्ग प्रशस्त कर दीजिये।

Zeal

Friday, November 4, 2011

वतन की राह में वतन के नौजवाँ शहीद हों....

आज देश को ज़रुरत है देश पर कुर्बान होने वालों की। सर्वत्र व्याप्त भ्रष्टाचार के इस दौर में जहाँ शासक और रक्षक ही भक्षक बन गया है , वहाँ ज़रुरत है हमें सही और गलत मंतव्यों की पहचान कर आगे आने वालों की। दिशाहीन होकर बस जिए जाने से काम नहीं चलेगा। अपनी दिशा स्वयं निर्धारित करनी है और उसे प्रशस्त भी करना है। देश की जडें खोदकर देश की नीव हिलाने वाले , कालाधन जमा करके अपने वतन के साथ गद्दारी करने वाले और धर्म का नाश कर अधर्म का प्रसार करने वालों को पहचानकर उनका बहिष्कार करना ही समय की मांग है , तभी राष्ट की रक्षा और सेवा की जा सकती है।

हमारे देश का सबसे बड़ा अभिशाप है गरीबी। इस देश में करोड़ों स्त्री और पुरुष और बच्चे हैं जो भूखे पेट , पानी पीकर सो जाते है और सुबह हो जाने पर , दो दाने अन्न की चाह में उनका पूरा दिन श्रम करते हुए निकल जाता है। ढाबों और होटलों की नाली से निकले जूठे अन्न को पाकर अपनी क्षुधा की शान्ति के लिए उन्हें कुत्तों से भोजन छीनना पड़ता है। कई बार वे हार जाते हैं जब कुत्ता त्वरित गति से उन दानों को चट कर जाता है और हमारे देश के बच्चे भूख से बिलबिलाते रह जाते हैं।

सत्ता में बैठे संवेदनहीन रक्षक अपनी जेबें भरने में ही इतने व्यस्त हो जाते हैं की अपनी प्रजा का ध्यान उन्हें ही रखना है, यह बात पूर्णतया भूल जाते हैं। आजादी के ६५ वर्षों बाद भी आधा भारत भूखे पेट सोये इससे ज्यादा शर्म की बात हम सबके लिए, खासकर हमारी सरकार (हमारे पालक ), के लिए और क्या हो सकती है।

न आतंकवाद पर नियंत्रण कर पा रही है , न बढती हुयी आबादी का पेट भर पा रही है , न ही काले धन की कालाबाजारी पर अंकुश लगा रही है , न ही तीन चौथाई जनता की अपेक्षाओं पर खरी उतर रही है।

ज़रुरत है हम पर शासन करने वाली सरकार को अपने लिए एक दिशा निर्धारित करने की , जिसमें देश का हित हो आम जनता का भला हो।

राष्ट्र सर्वोपरि हो
जय भारत !
जय हिंदुस्तान
वन्देमातरम !

Zeal

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श्री हरी ॐ पंवार (मेरठ विश्वविद्यालय में क़ानून के प्रोफ़ेसर व प्रसिद्द वीर रस कवी), द्वारा रचित इस ओजमयी कविता को पढ़िए

मैं भी गीत सुना सकता हूँ शबनम के अभिनन्दन के
मैं भी ताज पहन सकता हूँ नंदन वन के चन्दन के
लेकिन जब संसद से पगडण्डी तक कोलाहल है
तब तक केवल गीत लिखूंगा जन गण मन के क्रंदन के
जब पंछी के पंखों पर हो पहरे बम के गोली के
जब पिजरे में कैद पड़े हों सुर कोयल की बोली के
जब धरती के दामन पर हों दाग लहू की होली के
कोई कैसे गीत सुना दे बिंदिया कुमकुम रोली के
मैं झोंपडियों का चारण हूँ आस उगाने आया हूँ
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ

अन्धकार में समाँ गए जो तूफानों के बीच चले
मंजिल उनको मिली कभी जो चार कदम भी नहीं चले
क्रान्ति कथा में गौण पडी है गुमनामी की राहों में
गुंडे तस्कर तने खड़े हैं राज महल की राहों में
यहाँ शहीदों की पावन गाथाओं को अपमान मिला
डाकू ने खादी पहनी तो संसद में सम्मान मिला
राजनीति में लौह पुरुष जैसा सरदार नहीं मिलता
लाल बहादुर जी जैसा कोई किरदार नहीं मिलता
ऐरे गैरे नत्थू खैरे तंत्री बनकर बैठे हैं
जिनको जेलों में होना था मंत्री बन कर बैठे हैं
लोकतंत्र का मंदिर भी लाचार बना कर डाल दिया
कोई मछली बिकने का बाज़ार बना कर डाल दिया
अब जनता को संसद भी प्रपंच दिखाई देती है
नौटंकी करने वालों का मंच दिखाई देती है
पांचाली के चीर हरण पर जो चुप पाए जाते हैं
इतिहासों के पन्नो में वे सब कायर कहलाते हैं
कहाँ बनेंगे मंदिर मस्जिद कहाँ बनेंगी राजधानी
मंडल और कमंडल पी गए सबकी आँखों का पानी
प्यार सिखाने वाले बसते मज़हब के स्कूल गए
इस दुर्घटना में हम अपना देश बनाना भूल गए
कहीं बमों की गर्म हवा है और कहीं त्रिशूल जले
सौन चिरैया सूली टंग गयी पंछी गाना भूल चले
आँख खुली तो पूरा भारत नाखूनों से त्रस्त मिला
जिसको ज़िम्मेदारी थी वो घर भरने में व्यस्त मिला
क्या यही सपना देखा था भगत सिंह की फांसी ने
जागो राजघाट के गांधी तुम्हे जगाने आया हूँ
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ

जो जो अच्छे सच्चे नेता हैं उन सबका अभिनन्दन है
उनको सौ सौ बार नमन है मन प्राणों से वंदन है
जो सच्चे मन से भारत माँ की सेवा कर सकते हैं
हम उनके क़दमों में अपने प्राणों को धर सकते हैं
लेकिन जो कुर्सी के भूखे दौलत के दीवाने हैं
सात समंदर पार तिजोरी में जिनके तहखाने हैं
जिनकी प्यास महासागर भूख हिमालय पर्वत है
लालच पूरा नील गगन है दो कौड़ी की इज्ज़त है
इनके कारण ही बनते हैं अपराधी भोले भाले
वीरप्पन पैदा करते हैं नेता और पुलिस वाले
केवल सौ दिन को सिंहासन मेरे हाथों में दे दो
काला धन वापस न आये तो मुझको फांसी दे दो
जब कोयल की डोली गिद्धों के धर आ जाती है
तब बगुला भक्तों की टोली हंसों को खा जाती है
जब जब भी जयचंदों का अभिनन्दन होने लगता है
तब तब साँपों के बंधन में चन्दन रोने लगता है
जब फूलों को तितली भी हत्यारी लगने लगती है
तो माँ की अर्थी बेटों को भारी लगने लगती है
जब जुगनू के घर सूरज के घोड़े सोने लगते हैं
तो केवल चुल्लू भर पानी सागर होने लगते हैं
सिंहों को म्याऊं कह दे क्या ये ताकत बिल्ली में है
बिल्ली में ताकत होती कायरता दिल्ली में है
कहते हैं की सच बोलो तो प्राण गंवाने पड़ते हैं
मैं भी सच्चाई गा गा कर शीश कटाने आया हूँ
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ

कोई साधू सन्यासी पर तलवारे लटकाता है
काले धन की चर्चा हो तो आँख चढाने लगता है
कोई हिमालय ताजमहल का सौदा करने लगता है
कोई गंगा यमुना अपने घर में भरने लगता है
कोई तिरंगे झंडे को फाड़े फूंके आज़ादी है
कोई गांधी को भी गाली देने का अपराधी है
कोई चाकू घोंप रहा है संविधान के सीने में
कोई चुगली भेज रहा है मक्का और मदीने में
कोई ढाँचे का गिरना यूं आइनों में ली जाता है
कोई भारत माँ को डायन की गाली दे जाता है
कोई अपनी संस्कृति में आग लगाने लगता है
सौ गाली पूरी होते ही शिशुपाल कट जाते हैं
तुम भी गाली गिनते रहना जोड़ सिखाने आया हूँ
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ

आभार।