Tuesday, May 29, 2012

सरलमना तिवारी का मनचला खून

जांच के बाद श्री तिवारी के खून की एक रिपोर्ट --

रोमांस- १०० %
शर्म -९० %
बेशर्मी - १८ %
ममता/अपनत्व- १०० %
ढिठाई- ९८ %
जवानी का जोश- ९६ %
मक्कारी- २०० %
स्त्री लुभाने की क्षमता- ९० %
नाजायज बच्चे पैदा करने की कुव्वत- भरपूर।
भ्रष्टाचार- ७० %
सुधरने के लक्षण- शून्य
मनचलापन- उम्र के साथ बढ़ता जाएगा। ( फिर हाल ८८ %)
धर्म-निरपेक्षता- भरपूर ( कोई अब्बू पुकारे , कोई डैड , कोई बाबूजी, कोई भेद-भाव नहीं। )
कूटनीति- १२ %
ह्रदय की सरलता- भरपूर ( जो भी प्यार से मिला, हम उसी के हो लिए)

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खून की जांच प्रक्रिया पूरी होने पर कपिल सिब्बल का वक्तव्य -- " तमाम जांच और उनके परिणामों की बिना पर हम ये गर्व से कह सकते हैं की ये खून असली कांग्रेसी है, खालिस-रोमांटिक है। जो खून का एक कतरा देने में पांच वर्ष का विलम्ब करा दे, ऐसे बहादुर सिपाही को हम परमवीर चक्र देने की सिफारिश करते हैं और इस सरलमना वृद्ध को 'राष्ट्रपति' पद के लिए नामांकित करते हैं।

धन्य हैं तिवारी
धन्य है कांग्रेस

Zeal

Monday, May 28, 2012

माही

एक पति की व्यथा। बहुत कुछ करना चाहता है वो अपनी पत्नी के लिए। लेकिन खुद को असमर्थ पा रहा है। पत्नी से दूर परदेस में नौकरी कर रहा 'मानव' , अपनी पत्नी के सभी स्वप्न पूरे करना चाहता है। वो अपनी पत्नी 'माही' के दुखों को समझता है। वो जानता है माही बेसब्री से उसकी प्रतीक्षा कर रही है। साथ मिलकर जीने- मरने की कसमें खाने वाले इस दम्पति ने साथ-साथ बहुत कुछ करने की भी कसमें खायी हैं।

गावं में रह रही 'माही' के पास यूँ तो बहुत काम था , लेकिन वो कुछ सकारात्मक करके अपने पति की सही अर्थों में सहचरी बनना चाहती थी। वो जो भी नया सोचती , उसे अपने पति के सहयोग की आवश्यकता पड़ती। वो मानव से इस विषय पर बात करती, उससे पूछती, कब आओगे? लेकिन मानव का यही जवाब होता -- " जल्दी आऊंगा, तुम्हारे पलकों में पल रहे हर स्वप्न को पूरा करूंगा "

माही फिर इंतज़ार और आशा में अपने घर के काम में व्यस्त हो जाती। मुंह झलफले गायों को चारा डालती , झाडू- बुहारू करके , घर के लोगों के उठने से पहले ही रसोयीं संभाल लेती। हांडी में दाल पकती रहती और उससे उठ रही सोंधी खुशबू के साथ ही परवान चढ़ते माही की आँखों के सपने।

हांडी रोज चढ़ती रही और उतरती रही , लेकिन उसका इंतज़ार ख़तम नहीं हो रहा था। उधर मानव भी बहुत बेबस था। अपनी माही से मिलने के लिए जार-बेजार होकर तड़पता था। डरता था कहीं माही उसे गलत न समझ ले। हर ख़त में उसे धीरज बंधाता , हौसला और विश्वास बनाये रखने को कहता। कभी-कभी माही के आसुओं से भीगे पत्र उसे बहुत विचलित कर देते तो कभी असहज।

माहि भी अपने पूरे संयम के साथ पति का इंतज़ार कर रही थी। कोशिश करती थी उसकी चिट्ठियों में उसकी बेचैनी न झलके। क्यूंकि जब वो कमज़ोर पड़ती थी, तो मानव के मन में अपराध-बोध बढ़ जाता था और यदि वह मज़बूत बनती थी तो मानव को लगता था वो दूर जा रही थी। लेकिन सच तो ये था की माही अपने पति को इतना विवश नहीं देखना चाहती थी। वो चाहती थी की मानव उसके लिए ज्यादा परेशान न रहा करे। वो उसकी बेबसी को समझती थी। परदेस में पड़े पति की चिंता उसे सताती थी, वो उसपर और बोझ नहीं डालना चाहती थी।

इसलिए अक्सर चुप ही रह जाती थी। पर माही की चुप्पी से मानव घबरा जाता था। उसे लगता था की उसकी पत्नी उसकी विवशता को नहीं समझ रही है, उस पर अविश्वास कर रही है। उससे अपने मन की बातें नहीं कहती है, शायद दूर जा रही है...

लेकिन माही सब जानती थी। अपने पति के 'प्रेम' पर उसे अटल विश्वास है। वो जानती है उसका पति आएगा, जल्दी ही आएगा , उसके सपनों को पूरा करने।

उसके मन का इंतज़ार बरबस ही बढ़ता जा रहा था। दाल की हांडी में उफान आने से चूल्हे की लकड़ियों में आंच कुछ धीमी हो गयी। माही नें फूंक मारकर उसे पुनः सुलगाने की कोशिश की । इस प्रयास में आग की लपटें प्रचंड हो गयीं और चूल्हे से उठते धुएं ने उसकी आँखों को गीला कर दिया।

दाल में उफान जारी था , लेकिन माही तो अपने मानव के साथ उस पवित्र अग्नि की लपटों के गिर्द अपने पवित्र प्रेम के फेरे ले रही थी.......आखें बंद थीं और इंतज़ार की मिठास उसके होठों पर त़िर आई थी...

Zeal

Sunday, May 27, 2012

रोम जल रहा है और नीरो बांसुरी बजा रहा है...

पेट्रोल में लगी आग ने उपभोक्ताओं की नीदें उड़ा दी हैं। एक और जहाँ आम आदमी इस उछाल से परेशान हुआ है , वहीँ कार कंपनियों से सर पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा है। डीज़ल कारें पहले ही डिमांड में थीं , अब उनकी डिमांड चौगुनी हो गयी है। पेट्रोल कारों के दाम काफी गिर गए हैं। उपभोक्ताओं को लुभाने के लिए कार कंपनियों पेट्रोल कारों के दाम २५ हज़ार से लेकर ५० हज़ार तक कम कर दिए हैं। इसके विपरीत डीज़ल कारों की वेटिंग लिस्ट और भी लम्बी हो गयी है और दाम आसमान छू रहे हैं।

रूपए के अवमूल्यन से विदेशों से आने वाले पार्ट्स भी मंहगे हो गए हैं , लेकिन कंपनी मालिक अपना दुखड़ा नहीं कह सकते किसी से । अन्यथा उपभोक्ता और दूर भाग जाएगा।

रुपये का इस तरह तेज़ी से गिरना और पेट्रोल के धधकने से आग लगी है देश में लेकिन हमारा नीरो ( डॉ मन मोहन सिंह) बांसुरी बजा रहे हैं चैन से।

और प्रणब दा ? ....वो तो भावी राष्ट्रपति होने जा रहे हैं। फिर आग लगे बस्ती में, मस्तराम मस्ती में...इन्हें क्या ?

Zeal

Friday, May 25, 2012

एक लोमड़ी ने सारे गीदड़ों को हलाकान कर रखा है...

ब्लॉग-जगत के 'बाघ' और दो-चार 'घाघ' आजकल एक लोमड़ी के पीछे पड़े हुए हैं। बेचारों को न तो मंहगाई दिखती है, न रूपए का अवमूल्यन, न ही धधकता पेट्रोल और न ही जोरू की तकलीफ।


ले- दे के बस उनके सपनों में बस वही एक 'लोमड़ी' आती है। बेचारे नाकाम आशिकों की बदहाली पर तरस आता है। जहाँ देखो वहीँ, बस लोमड़ी-पुराण खुला हुआ है। कोई भजन लिख रहा है , तो कोई उस लोमड़ी पर बोध-कथा लिख रहा है। कोई जार-बेज़ार रोये जा रहा है अपनी कविता में। लेकिन लोमड़ी मस्त है अपनी दुनिया में। दूर बैठ मुस्कुराती रहती है , इनकी तिलमिलाहट पर....


गीदड़ों की दुर्दशा देखकर बरबस ही -- नाना पाटेकर की 'यशवंत' फिल्म का एक डायलौग याद आ गया, जिसमें नाना पाटेकर कहता है -----" एक मच्छर , इंसान को हिंजड़ा बना देता है "


यहाँ इस लोमड़ी ने ही इन गीदड़ सरीखे बाघ और घाघ, दोनों को ही - - - - - - - ।


शशश श श श स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्.........


Hats off to this wise and invincible fox !


Zeal

मुझे क्या पता जूता कहाँ काट रहा है...

जिसका जूता है और जिसका पाँव है, पता तो उसी को होगा न की कहाँ काट रहा है और कितना। शेष जन या तो सहानुभूति जता सकते हैं या फिर शिष्टाचार। या फिर कटे-छिले पर नमक छिड़ककर आनंद उठा सकते हैं।


कहा भी गया है- "पर उपदेश कुशल बहुतेरे" , लेकिन जब उपदेशकर्ता पर स्वयं आ बनती है वह जार-बेज़ार होकर रो पड़ता है। उस समय उसके खुद के उपदेश उसके काम नहीं आते।


एक ही घर में रहने वाले भी प्रायः एक-दुसरे की मनः स्थिति से अनजान होते हैं और कब क्या बोला जाए इसका सही अनुमान नहीं लगा पाते और फलस्वरूप स्थिति सँभालने के बजाये और बिगड़ जाती है। ऐसा ही कुछ हर जगह होता है। फिर चाहे वो घर हो दफ्तर हो अथवा ब्लॉगजगत ।


जो भुक्त भोगी है वह परिस्थिति को बेहतर समझता है, इसके विपरीत जो उस दौर से गुजरे नहीं हैं , वे समय आने पर ही समझते हैं।


एक सहेली ने एक बार कहा था - जो अज्ञानी हैं , वही सब प्रकार के भयों से मुक्त हैं और वही खुश भी हैं। दूसरी ने उसकी बात काटते हुए कहा- "जो ज्ञानी हैं वे ही सत्य से परिचित हैं और वे ही खुश हैं " --- फिर प्रश्न उठा, जो न ही ज्ञानी हैं और न ही अज्ञानी , उनका क्या...?


वैसे मेरे विचार से तो पूर्ण ज्ञानी कोई है ही नहीं अधिकतर लोग अपने अधूरे ज्ञान के झूले पर सवार होकार लम्बी-लम्बी पेंगें भरते हैं। अतः खुश तो कोई अज्ञानी ही हो सकता है , जिसे दुःख, सुख, भूत-प्रेत, चोर-उच्चक्के , मान-अपमान, किसी भी बात का ज्ञान ही न हो...बस अपने खयाली पुलाव बना-बना कर खुश रहता हो........


कहा भी गया है ---


" Ignorance is bliss"


Zeal

Thursday, May 24, 2012

पलायमान ब्लॉगर्स

कोई भी क्षेत्र हो,पलायन तभी होता है जब व्यक्ति उस संस्था से, पद्धति से, अनियमितताओं से , गुटबाजियों से अथवा पक्षपाती रवैय्ये से निराश हो चुका होता है।

ब्लोगजगत में भी बहुत कुछ ऐसा घट रहा है , जिसके कारण अनेक अच्छे ब्लॉगर्स लेखन के प्रति उदासीन हो चुके हैं। बहुतों ने लेखन छोड़ दिया है और अनेक हैं जो पलायन के कगार पर हैं।

कुछ लोग हाथ धोकर पीछे पड़ जाते हैं किसी एक ही ब्लॉगर के और उसे इतना हतोत्साहित करते हैं की वह यहाँ से पलायन करने को विवश हो जाए।

फिर उस ब्लॉगर की उस समय की कमज़ोर मनः स्थिति को भांपकर ये लोग उसके ताबूत में अंतिम कील भी ठोंक देते हैं उस पर अपमान जनक "टंकी चढ़ने" जैसा आलेख लिखकर।

कई ब्लॉग्स पर तो अश्लीलता और अभद्रता अपनी दुर्गन्ध से पूरा वातावरण दूषित कर रही है। फिर भी उस पर उमड़ने वाले तथा टिप्पणी करने को लालायित ब्लॉगर्स , विषय की गन्दगी को नज़र अंदाज़ करते हुए फिकरा कसने में कोई कसर नहीं छोड़ते । कुछ तो अनावश्यक रूप से भोले बनकर टिप्पणी की हाजिरी दे आते हैं , ताकि अमुक व्यक्ति उनके यहाँ भी आता रहे। किस गन्दगी में हो आये हैं , इससे उन्हें कोई सरोकार नहीं होता।

इस बढती गन्दगी ने संजीदा लेखकों को उदासीन किया है और पलायन करने को विवश।

कुछ छोड़कर चले गए, कुछ ने टिप्पणी का ऑप्शन ही बंद कर दिया तो कुछ ने अपने ब्लॉग पर चुनिन्दा लोगों के लिए ही टिप्पणी का विकल्प रखा है।

बेहतर होगा यदि ब्लॉगर्स अपनी लेखनी के प्रति संजीदा और जिम्मेदार रहे।

Zeal

एक खुशखबरी-

एक खुशखबरी- --- गेहूं खराब बताकर खरीदे न जाने पर, गुस्साए किसानों ने खाद्य आपूर्ति अधिकारी की पिटाई की....कलेक्टर ने मौके पर पहुंचकर किसानों का गेहूं तुलवाया और सबके गेहूं बिकवाये.....

आत्महत्या नहीं अब रण होगा।
युद्ध बड़ा भीषण होगा।

जय हिंद !
जय किसान !

Zeal

Wednesday, May 23, 2012

सीनाजोरी.

अथर्ववेद के उपवेद "आयुर्वेद" को तो उसका समुचित सम्मान मिल नहीं पा रहा। अब चोर उचक्कों ने आयुर्वेद के एक अंग "योग" को अलोपैथी में शामिल कर लिया है। फिर लफ्फाजी क्यों करते हैं की सभी अपनी-अपनी पैथी द्वारा ही चिकित्सा करें। अलोपैथी की जहरीली दवाईयों द्वारा लाखों जानें जा रही हैं, अनेक अन्य घातक परिणाम सामने आ रहे हैं , तो स्वयं को बचाने के लिए अब MBBS में 'Yoga' शामिल कर लिया । ' चरक संहिता' पहले ही शामिल कर चुके हैं।

अरे चोरी करने और पराया माल अपना बताने से तो बेहतर है , अपनी संस्कृति, सम्पदा और धरोहर 'आयुर्वेद' में वर्णित चमत्कारिक चिकित्सा पद्धति को सम्मान दो।

Zeal

Tuesday, May 22, 2012

स्वार्थी मनुष्यों की दुनिया-

आमरण अनशन पर बैठे, पल-पल कमज़ोर होते हुए स्वामी ज्ञान-देव सानंद , जो अब अस्पताल पहुँच चुके हैं।





गंगा को प्रदूषित करता गंदा नाला।



सदियों से हमारी तारणहार रही गंगा को बचाने के लिए अनेक साधू-संत अपनी जान की परवाह किये बिना आमरण अनशन पर बैठ रहे हैं। लेकिन उनकी पुकार सुनने वाला कोई नहीं है। राजनेताओं के कान पर जूँ नहीं रेंगती और मीडिया वालों को कुछ दिखाई नहीं देता तो बेचारे दिखाएं क्या। उन्हें तो बस "खान" दिखते हैं। सारे चैनल इन खानों को कवरेज देते हैं। नशा करके स्टेडियम में बवाल करने वाले गुंडों को प्राथमिकता दी जाती है चैनलों पर।

धिक्कार है ! धिकार है !

पहले अनशन पर बैठे स्वामी निगमानंद की मृत्यु हो गयी , फिर अरुण दास जी शहीद हो गए, बहन राजबाला ने अनशन पर बैठकर देश की खातिर जान गँवा दी। लेकिन स्वार्थ से भरे सत्ता-लोलुप राजनेताओं की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा। मीडिया ने भी इन शहादतों को कोई अहमियत नहीं दी।

अब स्वामी ज्ञानदेव सानंद जी गंगा बचाने के लिए 'आमरण अनशन' पर बैठे हैं। निरंतर गिरते स्वाथ्य के कारण अस्पताल में भर्ती हो गए हैं। सरकार ने क्रूरता और नीचता की सारी हदें पार कर ली हैं। वे अब इनके भी मरने का इंतज़ार कर रही हैं।

हमारे देश में साधू संतों का जितना अपमान होता है, उतना कहीं नहीं होता।

गंदे नालों और बांधों से बचाओ इस पवित्र नदी गंगा को। बचाओं देश के संतों को। बचाओं अपनी संस्कृति को।

कहीं देर न हो जाए...

जय भारत।
जय गंगे।
हर-हर गंगे।

Zeal

Friday, May 18, 2012

दशक का चिट्ठाकार-- एक समीक्षा.

सर्व-प्रथम ब्लॉग-सम्मान आयोजित करने वाले ब्लॉगर श्री रवीन्द्र जी को बधाई एवं शुभकामनाएं इस आयोजन के लिए।

आजकल ब्लॉगजगत में गहमा-गहमी है। हर तरफ दशक का ब्लॉगर और दशक का चिट्ठा ही चर्चा का विषय बने हुए हैं। असंख्य आलेख आ चुके हैं इस पर। लेखकों में संतोष कम और असंतोष ज्यादा दिख रहा है। अतः यह ध्यान देने की ज़रुरत है की ऐसा क्यों है।

जज अथवा निर्णायक बनना एक अति-दुरूह कार्य है। इसके लिए "निष्पक्ष" होना पहली शर्त होती है। अर्थात निर्णायक मंडल को दोस्तीदारी और निज-हित से ऊपर उठकर इस सम्मान का सम्मान करना होगा , निर्णय और चयन प्रक्रिया के दौरान।

आचार्य चाणक्य के अनुसार , किसी भी कार्य को करने से पूर्व बहुत भली प्रकार से सोच बिचार लेना चाहिए की हम ये काम क्यों शुरू करने जा रहे हैं और इस कार्य से समाज को कितना लाभ हो रहा है।

चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता होना बहुत ज़रूरी है। जैसे चुनाव के दौरान EVM मशीन में घोटाले होते हैं , उस प्रकार नाम के आगे बने गोलों में मतदान करने और सही परिणाम के उल्लिखित होने पर संशय बना रहता है।

निज कटुता के चलते कुछ ब्लॉगर्स की टिप्पणियां हटा दी जा रही हैं और मोडरेट भी कर दी जा रही हैं। सूचना मिली है की कुछ लोगों द्वारा अपनी पसंद का नाम देने पर उसे दर्शाया तो गया लेकिन २४ घंटों के अन्दर उस नाम को हटा भी दिया गया। इस प्रकार की हरकतों से आयोजक की मंशा संशय के दायरे में आ जाती है। और उनकी निष्पक्षता पर संदेह भी होता है।

चुनाव प्रक्रिया बेहद पारदर्शी होनी चाहिए। इसके लिए सर्वप्रथम एक नामों की सूची जारी करनी चाहिए । उसमें नामांकन , ब्लॉगर द्वारा स्वयं होना चाहिए। फिर उन नामों पर अन्य ब्लॉगर्स द्वारा वोटों के मिलने पर उनकी गणना होनी चाहिए। ब्लॉगर से ये अधिकार नहीं छीना जाना चाहिए की वह अपना मत , अपने लिए इस्तेमाल कर सके। कभी-कभी यही एक मत निर्णायक साबित होता है।

जो संख्या अभी , दर्शायी जा रही है उस पर भी लोगों को संदेह है। अतः किसी के भी मन में आयोजक के प्रति कोई शक न आये इसके लिए मतदान कमेन्ट के माध्यम से होना चाहिए। जिसे सभी लोग देख सकें और अपने मन में किसी प्रकार का संशय न पालें।

बहुत से लोगों को यह भी आपत्ति है की इस सम्मान का नाम दशक का ब्लॉगर नहीं होना चाहिए, क्यों जो नाम सामने आये हैं उनमें से शायद ही किसी ने एक दशक पूरा किया हो। और कोई भी सम्मान उसके कार्य-काल की अवधी से नहीं अपितु उसकी योग्यता के आधार पर मिलता है। अतः मेरे विचार से इस समान का नाम " दशक का ब्लॉगर" न होकर "ब्लॉगर सम्मान--2011 हो तो बेहतर होगा। इससे एक लाभ यह भी होगा बुज़ुर्ग के साथ युवा ब्लॉगर्स को भी मौक़ा मिल सकेगा।

चूँकि मतदान करने वालों में युवा भी शामिल है और नवोदित भी शामिल है , जिसने दशक के चिट्ठाकारों को एक दशक तक पढ़ा ही नहीं है , अतः वे उनकी योग्यता से पूरी तरह परिचित ही नहीं हैं, फिर वे पूरे दशक में किये गए योगदान को जाने बगैर मतदान कैसे करेंगे? इस परिस्थिति में भी इसे दशक का नहीं बल्कि 2011 का सम्मान कहना ही ज्यादा उचित प्रतीत हो रहा है।

आयोजक को यदि अपने आयोजन को त्रुटी-रहित बनाना है तो आलोचनाओं को संज्ञान में लेना ही होगा। त्रुटियों को दूर करना होगा। चयन-प्रक्रिया पारदर्शी करनी होगी और इस बात का विशेष ध्यान रखना होगा कि किसी के भी मन में द्वेष और वैमनस्य और निराशा न स्थान लेने पाये। क्योंकि हमारा उद्देश्य तो लेखकों को प्रोत्साहित करना है, उन्हें हतोत्साहित करना नहीं।

कुछ लेखक अपनी मर्यादाओं को लांघ रहे हैं । खुद को बेहतर और सुझाव देने वालों को लघुतर समझ , उनसे अपमान जनक भाषा में बात , दोषारोपण और कीचड उछाल रहे हैं । जो लेखनी का अपमान है। माँ सरस्वती का अपमान है। अक्षम्य है।

मेरे विचार से इस चुनाव प्रक्रिया को पारदर्शी एवं सफल बनाने के लिए इसे पुनः शुरू करना चाहिए, जिसमें आयोजन के नियम वा शर्तों का स्पष्ट उल्लेख करके ब्लॉगर्स द्वारा टिप्पणी के माध्यम से नामांकन आमंत्रित करना चाहिए।

एक निश्चित अवधी के बाद जब नामांकन-प्रक्रिया पूरी हो जाए तो चयन हेतू लोगों को मतदान के लिए आमंत्रित कीजिये ।

एक से ज्यादा वोटों को और बोगस वोटों को रोकने कि समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।


मैं अपनी पसंद के कुछ ब्लॉगर्स का नाम लिख रही हूँ। मेरी इच्छा है इन लेखक/लेखिकाओं के नामों को भी उस सूची में शामिल किया जाए।


१-वंदना गुप्ता
२-रचना
३-प्रतिभा सक्सेना
४-माहेश्वरी कनेरी,
५-जेन्नी शबनम,
६-फिरदौस,
७-शिल्पा मेहता,
८-अंशुमाला,
९-पल्लवी
१०-घुघूती बासूती,
११-पारुल,
१२-संगीता स्वरुप,
१३ संगीता पुरी,
१४- राजेश कुमारी,
१५-अदा
१६-रश्मि प्रभा
१७- सदा
१८-रश्मि रवीजा,
१९-विभा रानी श्रीवास्तव
२०-अंजू चौधरी
२१-मृदुला
२२-डॉ अरुणा कपूर
२३-सोनल रस्तोगी
२४- अनीता
२५-निर्मला कपिला
२५-रेखा श्रीवास्तव
२६-वाणी गीत
२७-अराधना
२८-निवेदिता
२९-वंदना अवस्थी दूबे
३०- कविता रावत
३१-क्षमा
३२- सुनीता शानू

३३-शोभना चौरे
आशा सक्सेना
आशा
जोगलेकर
साधना
वैद्य
रंजू भाटिया
मृदुला
प्रधान ,
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१- श्री भारत भूषण
२- पी सी गोदियाल
३-लोकेन्द्र सिंह राजपूत,
४ -महेंद्र वर्मा
५- प्रतुल वशिष्ठ
६- दिवस गौड़
७- दिनेश ( रविकर)
८- वाणभट्ट
९- वीरू भाई
१० संजय कटानवरे
११- अनूप शुक्ल
१२ रवि रतलामी
१३-अरविन्द मिश्र,
१४-अनवर जमाल,
१५-मंसूर अली
१६- अली
१७-एस मासूम।
१८-अमित श्रीवास्तव
१९-अरुण साथी
२०- कुंवर जी
२१-कुंवर कुसुमेश
२२ - अजय कुमार झा
२३ -रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
२४- चंद्रभूषण - गाफिल
२५- डॉ दराल,
२६- केवल राम
२७- संजय मो सम कौन
२८- कुश्वंश
२९- डॉ भोला-कृष्णा
३०-उन्मुक्त
३१-मनोज भारती
३२-मनोज ( विचार)
३३-सतीश पंचम
३४ -सुरेश चिपलुनकर
३५- संजय बोंगाडी
३६ -खुशदीप
३७- दिनेश राय दिवेदी
३८-सतीश सक्सेना
३९-राजेश उत्साही
४० -राकेश कुमार
४१- मुकेश पांडे (चन्दन)
४२-प्रवीण पण्डे
४३-प्रवीण शाह
४४-दीर्घतमा,
४५-पी एन सुब्रमन्यन
४६-जय कृष्ण तुषार
४७-सुरेन्द्र झंझट
४८-राहुल सिंह
४९-हंसराज सुज्ञ
५०-कैलाश शर्मा
५१-अलबेला खत्री
५२- डॉ श्याम गुप्त
५३-गिरीश बिल्लोरे
५४ -फिलिप शास्त्री
५५-दीपक बाबा
५६-अंतर सोहिल,
५७-महेंद्र श्रीवास्तव
५८- राजेन्द्र स्वर्णकार।

५९-कौशलेन्द्र।
६०- समीर लाल
६१- रजनीश झा।
६२-डॉ राजेंद्र तेला

६३-ललित शर्मा
६४-दीप पाण्डेय,
६५-विचार शून्य
६६
- अमित शर्मा
६७-हरदीप राणा 'कुंवर जी'
६८
-अविनाश चंद्र
६९-मुकेश कुमार सिन्हा,
७०
-आशीष राय
७१-रतन सिंह शेखावत
७२-यशवंत,
७३
-हिंदी ब्लॉग टिप्स,
७४
-चंद्रमौलेश्वर।
७५
-गिरधारी लाल खंकरियाल
७६-भारतीय नागरिक
अविनाश वाचस्पति
अरुण चन्द्र राय
हिमांशु,
अमरेन्द्र
त्रिपाठी।
सुनील
दत्त,
विश्वजीत
,
मान
सिंह पवार,
विनीत
कुमार सिंह
काजल
कुमार।
उदयवीर सिंह
सुबीर रावत
दिलबाग विर्क
डॉ आशुतोष मिश्र।

मरणोपरांत भी ब्लॉगर्स को सम्मानित किया जाए--

१- डॉ अमर कुमार,
२- डॉ रूपेश श्रीवास्तव
३-हिमांशु मोहन

मुझसे अनजाने में कहीं कोई त्रुटी रह गयी हो तो क्षमा अपेक्षित है ।
सम्मान समारोह को बेहतर बनाने के लिए विद्वान् पाठकों कि राय आमंत्रित है।

Zeal

Tuesday, May 15, 2012

अकेली स्त्री -- समाज और असहिष्णुता

आज भी हमारे समाज में अनेक तरक्की हो जाने के बावजूद भी 'स्त्री' की स्थिति सुदृढ़ नहीं है ! भले ही मनुष्य आज चाँद पर पहुँच गया हो लेकिन उसकी सोच उतनी परिष्कृत और परिपक्व नहीं हुयी है ! विज्ञान और संसाधनों में तो अभूतपूर्व तरक्की हुयी है , लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर समाज छोटी से छोटी इकाईयों में बंटता चला जा रहा है ! कारण है सहिष्णुता का विलुप्त होते जाना !

जैसे मशीनों के कल-पुर्जों की निर्बाध गति को बनाए रखने के लिए ग्रीज़ का इस्तेमाल करते हैं , उसी तरह रिश्तों को बनाये रखने के लिए भी सहिष्णुता नामक चिकनाई अथवा स्नेहक (lubricant ) की आवश्यकता होती है ! ये सहिष्णुता किसी एक व्यक्ति या समुदाय के पास से विलुप्त नहीं हो रही अपितु देश-विदेश में , हर बोली, भाषा और धर्म में 'बर्दाश्त' करने की क्षमता कम होती जा रही है ! हर व्यक्ति स्वयं में सिमटा हुआ , अपने ही बारे में सोचने में व्यस्त है! अपनी-अपनी एक छोटी सी दुनिया बना रखी है! उस छोटी सी दुनिया में थोडा सा भी विचलन व्यक्ति के जीवन में भूचाल सा ला देता है ! फिर वो स्वयं को असमर्थ और असहाय पाता है ,इससे निपट पाने में !

धीरे-धीरे व्यक्ति खुद को जागरूक, निडर और सक्षम बना रहा है ताकि ऐसी परिस्थियों से सफलतापूर्वक निपटा जा सके ! समाज में बढती विषमताओं और असंतोष को देखते हुए बहुत से युवक और युवतियां आजीवन अविवाहित रहने का निर्णय ले रहे हैं !कुछ लोग स्वयं को किसी भी प्रकार के बन्धनों से मुक्त रखकर देश और समाज की सेवा अपने स्तर पर करना चाहते हैं और अपना जीवन अपने तरीके से , अपने बनाए हुए आदर्शों पर चलकर जीना चाहते हैं ! हमारा कर्तव्य है की हम उनके निर्णयों का सम्मान करें और उन्हें भी सुख से जीवन जीने का अवसर प्रदान करें!

स्त्री हो अथवा पुरुष, दोनों को ही अनेक प्रकार की बाधाओं और दुश्वारियों को झेलना पड़ता है ! इष्ट-मित्र , समाज और रिश्तेदार भी बहुत सी बाधाएं उपस्थित करते हैं ! ऐसी परिस्थितियों में पुरुष तो संघर्ष करता हुआ येन-केन प्रकारेण, किसी प्रकार उस भंवर से बाहर भी आ जाता है, लेकिन एक अकेली-स्त्री को बहुत सी विषम परिस्थितियों से गुज़ारना पड़ता है ! समाज का हर तबका उसके लिए चरित्र प्रमाण-पत्र लिए खड़ा रहता है ! ज़रा सी भूल हुयी नहीं की थमा दिया हाथ में !

पुरुषों के अनुचित कृत्य, अनर्गल प्रलाप भी सर आँखों पर रखे जाते हैं , जबकि इसके विपरीत एक स्त्री को उसके सहज और ममतामयी, स्नेहिल व्यवहार के लिए भी सूली पर आसानी से चढ़ा दिया जाता है ! ऐसी स्थिति से बचने के लिए, स्त्रियों को स्वयं ही अपनी सुरक्षा करनी पड़ेगी ! सबसे पहले वो इंसान परखना सीख लें ! दुष्ट हमेशा घात ही करेगा, अतः सावधान रहे ! जो पुरुष पूर्व में किसी स्त्री के साथ घात कर चुका है वो मौक़ा मिलते ही आपके साथ भी घात अवश्य करेगा, अतः आवश्यक दूरी बनाकर रखें, अन्यथा शेर की मांद में घुसने का नतीजा तो सभी को पता है !

स्त्री हो अथवा पुरुष दोनों को ही अकेले पाकर , असहाय समझ , बहुतेरे मौकापरस्त लोग अपना उल्लू सीधा करने चले आते हैं ! आवश्यकता है सावधान रहने की ! अन्यथा सावधानी हटी तो दुर्घटना घटी !

Zeal 

Zeal

Monday, May 14, 2012

कार्टून तो आप हैं जिन्हें कार्टून समझने की बुद्धि ही नहीं...

कार्टून समझना , कार्टूनों के बस का तो है नहीं, इसलिए उन्होंने इतना हंगामा मचा दिया संसद में सज़ा किसने भुगती? उन विद्वानों को जिन्होंने अथक परिश्रम से NCERT की पुस्तक डिजाईन की थी इस्तीफ़ा देना पड़ा उन्हें उस कार्टून में डॉ अम्बेदकर का अपमान कतई नहीं था, फिर भी बात-बात पर तुनकने वाले सांसदों नेबवाला करके बलि चढ़ा दी एक निर्दोष की

साठ वर्ष पहले जब एक ज़हीन कार्टूनिस्ट 'शंकर', जिसने असंख्य राष्ट्रीय पुरस्कार पाये थे, ने यह कार्टून बनाया था तब अम्बेदकर भी थे, जिन्होंने कभी स्वयं को अपमानित नहीं महसूस किया था उस कार्टून द्वारा, लेकिन अफ़सोस की आजकल के कार्टून-नेता , बिना बात का बतंगड़ बनाकर , संसद को असली मुद्दों से भटकाते हैं और खामियाजा भुगतती है मासूम जनता

एक नज़र इस कार्टून पर भी, जिसने छीनी विद्वानों की नौकरी और संसद को बनाया मछली-बाज़ार


http://zealzen.blogspot.in/2012/05/blog-post_8714.html

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मीठे मुगालते...

एक समय था जब मुगालते पालने में मज़ा आता था,
और उनके टूटने पर दुःख होता था !
आज भी मुगालते पालने में मज़ा आता है,
बस फर्क इतना ही है की उनके टूटने पर
दुःख नहीं होता , बस यही लगता है कि इसकी
'एक्सपायरी डेट' आ गयी !
फोकस नए पर शिफ्ट हो जाता है....

Zeal

Sunday, May 13, 2012

Be careful Dev !

कुछ बातें सिलसिलेवार---

१- भगवा वस्त्रों के साथ मुल्ली-टोपी और पोप की टोपी, कैप और हैट और पगड़ी जंचती नहीं।
२- सत्यवादियों और स्पष्टवादियों को राजनीति और कूटनीति की बैसाखी की ज़रुरत नहीं होती।
३- आरक्षण एक कोढ़ है , फिर दलितों के नाम से आरक्षण की बात क्यों की गयी ? और मुस्लिम-दलित और इसाई-दलित क्या होता है? जो जागरूक नहीं है , पढ़ा-लिखा होते हुए भी अज्ञानी है , जो राष्ट्र-हित में न सोचता हो वो सभी दलित ही तो हैं । फिर ऐसे दलितों को आरक्षण देने से लाभ क्या? अजगर करे न चाकरी, सबके दाता राम की तर्ज पर ये आरक्षण का लाभ लेते हैं और सामान्य जनता अपना हक मारे जाने पर खून के आँसू रोती है।
४- इस दलित आरक्षण से सत्ता में एक से बढ़कर बे-शऊर लोग बैठे हैं जो पूरे प्रांत का स्तर गिरा रहे हैं। सबसे बड़ा उदाहरण उत्तर-प्रदेश है।
५- कौआ हो अथवा हंस, जब वो अपनी चाल बदलता है तो औंधे मुंह गिरता ही है।
६- जनता जब किसी को सर आँखों पर बैठाती है, तो उससे बड़ी अपेक्षाएं पैदा कर लेती है। उससे एक छोटी सी भी गलती होने पर माफ़ नहीं करती।
७- सनद रहे-- बड़े लोगों को छोटी सी भूल पर भी "बड़ी-सजा" ही मिलती है।

अतः, भूल से भी कोई भूल हो ना.......

वन्दे मातरम् !

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Saturday, May 12, 2012

इतना हो हल्ला और बवाला क्यों ?


इसमें आपको अपमान किसका दिख रहा है ? नेहरू का अथवा आंबेडकर का ? अथवा सत्य को बेहद ज़हीन तरीके से दर्शाया गया है ?

नज़र अपनी- अपनी ! किसी को गिलास आधा भरा दीखता है तो किसी को आधा खाली। मुझे तो गिलास की पारदर्शिता और पानी की कल-कल करती तरंगें दिखती हैं।

मेरे नज़रिए से उपरोक्त कार्टून में , कार्टूनिस्ट ने सत्यता को बखूबी दिखाया है। नेहरू की तानाशाही दिखाई है जबकि आंबेडकर द्वारा उस तानाशाही को रोकने का अथक प्रयास दिख रहा है। जिस गति से नेहरू हांकना चाहते थे सभी उच्च पदस्थ लोगों को, उसका पुरजोर विरोध दिखाया गया है , बुद्धिमानों द्वारा घोंघों पर सवार होकर , जिस पर नेहरू की चाबुक कारगर नहीं हो रही थी...

इस कार्टून में आंबेडकर का अपमान तो कतई नहीं दिख रहा हाँ, नेहरू का असली चेहरा ज़रूर सामने रहा है।

Hats off to the great Cartoonist.

Zeal

जात-पात का जिम्मेदार कौन ?

जात-पात का जिम्मेदार कौन है ?---किसने बढ़ावा दिया इस जाति आधारित जनगणना को ?

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भारत की जाति आधारित जनगणना [Census] में घरेलु काम करने वाली महिलाओं [ Housewives] को वैश्या , भिखारी तथा कैदी की श्रेणी में रखा है


इस category में रखने के पीछे कारण दिया गया की ये सभी [Economically non-productive ] हैं अर्थात कुछ कमाते धमाते नहीं। इसलिये फालतू लोगों को इकठ्ठा कर दिया। अब अधिकारी महोदय को क्या कहें। अच्छा किया हम लोगों को हमारी औकात बता दी।


सुबह से रात मर-मर कर घर संभालो करो और बदले में तमगा क्या मिला है --" निकम्मे भिखारी "


बड़ा निडर अधिकारी है भाई, इतना साहसिक कार्य करते हुए ज़रा भी नहीं डरा?


एक और तो भाषण देते हैं, घर-बच्चे संभालो दूसरी ओर कमासुत होने के कारण भिखारी का दर्जा देते हैं?


एक घरेलु महिला की एक्सिडेंट में मौत होने पर मुआवजा भी कम ? वाह भाई वाह ! क्या जलवे हैं मर्दों के ?


एक घरेलु महिला [housewife] के कामों की कोई कीमत नहीं ?....अरे तो फिर गिनती भी मत करो हमारी कीड़े - मकोड़ों को गिनता है भला कोई ?


भिखारियों की इज्ज़त भी मिटटी में मिला दी...बिचारे काटोरा लिए दिन भर में २०० रूपए तो कमाते ही होंगे।


ओर ये वेश्याएं ?...अच्छी कमाई करती होंगी ?....फिर घरेलु महिलाओं के साथ clubbing करके क्यूँ बिचारी वैश्या ओर भिखारी को नीचा दिखा रहे हैं।


वैसे आपका क्या ख्याल है ?...Housewives....वैश्याएँ....कैदी ओर भिखारी , क्या सभी को एक ही श्रेणी में रखना उचित है ?

Zeal

Friday, May 11, 2012

यह घोषणा सुकूनदायी लगी...

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री को अपने प्रदेश की चिंता है। उसके विकास की चिंता है। अपने किसानों की चिंता है।

श्री शिवराज सिंह ने किसानों से मुखातिब होकर उनसे कहा की वे कृषि की अहम् भूमिका से ही राज्य का विकास देख रहे हैं। किसान की मेहनत व्यर्थ नहीं होने दिया जाएगा। गेहूं का एक-एक दाना खरीदा जाएगा। यदि पुराने बारदाने में गेहूं आएगा तब भी खरीदा जाएगा और यदि बारदाने की कमी के चलते खुला गेहूं लाया जायगा तब भी उसे खरीदा जाएगा और खुले गेहूं को रखने की व्यवस्था कर ली गयी है। अब तक जो भी विघ्न आये या फिर उपस्थित किये गए, उनको दूर कर लिया गया गया है। १३८५ रूपए , प्रति क्विंटल की दर से खरीदा जाएगा और याद रहे-- गेहूं का एक-एक दाना खरीदा जायेगा।। आप ही निराश होयें, ही चिंतित। आपकी मेहनत ही हमारी समृद्धि का आधार है।

जय जवान
जय किसान

Thursday, May 10, 2012

इस हैवानियत का शिकार हुयी मासूम रिंकल.



सिन्धी हिन्दू लड़की - रिंकल कुमारी को किडनैप करके उसे जबरदस्ती इस्लाम कबूल करवाया। उस मासूम ने धर्म परिवर्तन करने से इनकार किया लेकिन उस पाकिस्तानी दरिन्दे ने कोर्ट की अवमानना की और राष्ट्रपति तक को धत्ता बता दिया। खुले आम हथियारों और असलहों से लैस उसके आदमी कोर्ट के बाहर और अन्दर भरे हुए थे। किसी भी हिन्दू को वहां रहने की अनुमति नहीं थी। रिंकल कोर्ट में रोई चिल्लाई, कल्पी , लेकिन उसकी चीखों को नहीं सुना गया। उस दरिन्दे ने कोर्ट और राष्ट्रपति तक को धमकी दे दी की यदि रिंकल उसे नहीं दी गयी तो वह पूरे मीरपुर को आग लगा देगा। फिर भेंट चढ़ी एक हिन्दू लड़की , इस इस्लामी हैवानियत की। हमारी नाकारा मीडिया सो रही है , कभी नहीं दिखती इन अत्याचारों को जो सदियों से हिन्दुओं पर हो रहा है।

Check the link given below for more details......

http://marvisirmed.com/2012/04/18/rinkle-kumari-the-new-marvi-of-sindh/

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"Abraham Lincoln’s letter to his son’s teacher"

"Abraham Lincoln’s letter to his son’s teacher"

He will have to learn, I know, that all men are not just, all men are not true.
But teach him also that for every scoundrel there is a hero;
that for every selfish Politician, there is a dedicated leader…
Teach him for every enemy there is a friend,

Steer him away from envy,

if you can, teach him the secret of quiet laughter.

Let him learn early that the bullies are the easiest to lick…
Teach him, if you can, the wonder of books…
But also give him quiet time to ponder the eternal mystery of birds in the sky,
bees in the sun, and the flowers on a green hillside.

In the school teach him it is far honourable to fail than to cheat…
Teach him to have faith in his own ideas, even if everyone tells him they are wrong…
Teach him to be gentle with gentle people, and tough with the tough.

Try to give my son the strength not to follow the crowd when everyone is getting on the band wagon…
Teach him to listen to all men…
but teach him also to filter all he hears on a screen of truth,
and take only the good that comes through.

Teach him if you can, how to laugh when he is sad…
Teach him there is no shame in tears,

Teach him to scoff at cynics and to beware of too much sweetness…
Teach him to sell his brawn and brain to the highest bidders

but never to put a price-tag on his heart and soul.

Teach him to close his ears to a howling mob and to stand and fight if he thinks he’s right.
Treat him gently, but do not cuddle him, because only the test of fire makes fine steel.

Let him have the courage to be impatient…
let him have the patience to be brave.
Teach him always to have sublime faith in himself,
because then he will have sublime faith in mankind.

This is a big order,
but see what you can do…
He is such a fine little fellow,
my son!

See the faith, this statesman reposed in teaching। This letter was written some 165 yrs back. It will be relevant at all the times & in all the times to come.

Zeal

Wednesday, May 9, 2012

दिव्या एक बात बताओ....

कल एक वरिष्ठ ब्लॉगर मित्र ने पूछा---- "दिव्या एक बात बताओ, फलां फलां फलां तो बहुत पढ़े-लिखे हैं , मैं तो इन लोगों को बहुत अच्छा समझता था , लेकिन अत्यंत दुखित हूँ इन लोगों के विचार जानकार और इनकी असलियत जानकार। आखिर ऐसा कैसे हो सकता है ? इतनी बड़ी-बड़ी डिग्रियां रखने वाले भी ऐसी तुच्छ सोच कैसे रख सकते हैं भला? मैं बहुत निराश हूँ इन लोगों के आचरण से"

क्या कहती उनसे--वे स्वयं ही विद्वान् हैं। उनसे कुछ कहना सूरज को दिया दिखाने के समान होता, अतः चुप रह गयी।

लेकिन, "All that glitters is not gold"

इस समाज में सभ्यता का मुखौटा लगाये गंदे षड्यंत्रों में लिप्त ये लोग परदे पर तो चमकते हैं , लेकिन परदे के पीछे चौपाल लगाए , जाम से जाम टकराते हुए, नशे में उन्मत्त हो सारी गन्दगी बाहर निकालते हैं। तब इनका नकाब उतर जाता है और इनका 'वाचिक-संयम' और 'दिखावटी शालीनता' नदारद हो जाती है। वही समय होता है जब इनकी असलियत को जांचा परखा जा सकता है।

Zeal

Tuesday, May 8, 2012

आप ब्लॉगर हैं , लेखनी का इतना अपमान मत कीजिये.

बूढा शेर,
शेरखोर लोमड़ी,
असुर लोमड़ी,
मृत शेरनी की खाल में लोमड़ी,
जंगली कुत्ते,
दीवाने लकड़बग्घे ,
बोटी पर लपकने वाला चम्चौड़ कुत्ता,
बहादुर बाघ।
खच्चर-प्रेस
गर्दभ
खिसियानी लोमड़ी।
ऊदबिलाव
आदि आदि...

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जी हाँ ये है भाषा आजकल के प्रबुद्ध लेखकों की। जब कोई स्त्री अपने दम पर आगे बढती है, सामाजिक सरोकार से जुड़े विषयों पर लिखती है और अनायास किसी की जी-हुजूरी नहीं करती तो कुछ लोगों की आँख की किरकिरी बन जाती है। वे उस स्त्री को शेरनी की खाल में लोमड़ी कहते हैं। और जो उस स्त्री का साथ देगा उसे "चम्चौड़ कुत्ता" कहा जाएगा।

गालियाँ देने के लिए सदियों से मूक और निर्दोष जानवरों के नामों का इस्तेमाल किया गया है। इन प्रबुद्ध लेखकों द्वारा एक स्त्री को अपमानित करने के लिए जंगल के जानवरों की सारी उपमाएं इस्तेमाल कर ली गयीं। बेहतर होता यदि स्त्री को जानवर कहकर उसके वास्तविक नाम से संबोधित किया होता तो शेर , बाघ, लोमड़ी और कुत्ते , मनुष्य की इस वाचिक हिंसा का शिकार नहीं होते।

स्त्री और पुरुष को मनुष्य ही रहने दो, पशुओं के नामों से अलंकृत करो। जिस भी स्त्री को "लोमड़ी" कहा है। वह स्त्री किसी की पत्नी, बहन , बेटी और माँ है।

जानवरों पर लिखी गयी बोध कथाएँ , मासूम बच्चों के पढने के लिए होती हैं। लेकिन अफ़सोस की , नफरत से भरी इनकी कहानी बच्चों को पढ़ाने लायक ही नहीं।

इस लेखक ने एक मृत-ब्लॉगर के चरित्र पर भी उँगलियाँ उठायीं और उस स्त्री की अस्वस्थता का भी मखौल बनाया


कुछ सम्मानित स्त्रियों ने, बुद्धिजीवियों ने , बुजुर्गों ने इस कहानी में शिरकत की और टिप्पणी के माध्यम से उस लोमड़ी को खूब कोसा। कुछ ने उस स्त्री को शेरों द्वारा गर्भिणी कहा, कुछ ने उसकी नाजायज संतानों का भी उल्लेख कर डाला। कुछ तो अति-आतुर दिखे उस स्त्री को का नाम जानने के लिए , जिसे लोमड़ी कहकर अपमानित किया जा रहा था, ताकि वे भरपूर आनंद ले सकें भरी सभा में अपमानित होती स्त्री का।

विद्वानों द्वारा रचित और पठित उस आधुनिक बोध कथा में शिरकत करने वाले प्रबुद्ध जनों ने "स्त्री" को अपमानित होते देखा। किसी ने भी उस भाषा शैली और लेखक के नापाक मंतव्यों पर प्रश्न नहीं उपस्थित किया।

इस तरह का साहित्य रचकर हमारे ब्लॉगर क्या साबित करना चाहते हैं ? हिंदी साहित्य को पतन की और क्यों ले जाना चाहते हैं लोग ? और ऐसी रचनाओं पर ताली पीट-पीट कर क्या प्रमाणित करना चाहते हैं प्रसंशक ?

यदि आपस में एक- दुसरे का अपमान करना और कुत्ता , लोमड़ी कहकर अपमानित करना ही करना तो निसंदेह यह हिंदी ब्लॉगिंग का पतन है।

कहानी अच्छे शब्दों और भाषा के चयन के साथ , समाजोपयोगी होनी चाहिए। ऐसी "सार-रहित" कहानी जिसे पढने के बाद मुंह का स्वाद कसैला हो जाए उसे नहीं लिखना चाहिए।

अंत में उस उस --मातृ-शक्ति-- "लोमड़ी" --के लिए मेरी तरफ से दो-शब्द समर्पित हैं....

आभार।

Zeal