Tuesday, July 31, 2012

निंदा करना ज़रूरी है क्या ?

बहुत से लोगों के मत में अन्ना टीम तानाशाही कर रही है, और बाबा रामदेव के आन्दोलन में विघ्न भी उत्पन्न करती है और भारत स्वाभिमान के प्रयासों का लाभ स्वयं ले लेना चाहती है। काफी हद तक ये बात सच भी है। कहीं-कहीं ये टीम स्वार्थी हो जा रही है। लेकिन आम जनता को इनके प्रति अपने मन में द्वेष नहीं रखना चाहिए। आम जनता तो बस कार्यों को देखें । यदि आन्दोलन जनहित में है तो समर्थन करना चाहिए। आन्दोलनकारी अपने आपसी मतभेदों से स्वयं ही निपट लेंगे। हमें बीच में नहीं पड़ना चाहिए। हमारा काम तो सद्प्यासों को आगे ले जाना होना चाहिए।

फेसबुक और ब्लॉग पर भी अनेक राष्ट्रवादी लेखक हैं, लेकिन वे सभी एक दुसरे से समन्वय और सामंजस्य बना कर रखते हों ऐसा नहीं है। अतः सबको अपने तरीके से काम करने देना चाहिए। मुख्य बात ये है, की सभी राष्ट्रहित में लिख रहे हैं। साथ रहे, या न रहे, ये ज़रूरीनहीं है।

मानव स्वभाव थोडा-बहुत ईर्ष्या और द्वेष से युक्त होता है। कोई संत ही होगा जो इन मानवीय दुर्गुणों से ऊपर उठ पायेगा। अतः मानवीय स्वभाव को समझते हुए इस बात पर गौर करना होगा। अच्छे मंतव्यों को तवज्जो दीजिये। उद्देश्य बड़ा होना चाहिए। अनशन करने वाला व्यक्ति नहीं।

Zeal

औरत


एक औरत किताब के पन्नों में नहीं मिलती। वो सर्द रातों में उठकर बच्चे के लिए दूध बनाती है। भूखे पेट खेतों में और बिल्डिंगों में काम करती मिल जायेगी। तपती दोपहरी में बीमार बच्चे को छाती से चिपकाए अस्पताल के चक्कर काटती मिलेगी। पति के चेहरे पर परेशानी की शिकन देखते ही मंदिरों में माथा टेकती मिलेगी।

एक स्त्री ममता की मूर्ती होती है। करुणा और वात्सल्य से भरी होती है। समझना चाहो तो बस एक शब्द "माँ" ही काफी है, अन्यथा इतनी मोटी-मोटी असंख्य पुस्तकें भी अपर्याप्त हैं एक स्त्री को समझने के लिए।

Zeal

Saturday, July 28, 2012

एक हज़ार हिन्दुओं का क़त्ल करो--राजदीप सरदेसाई

हमारे देश में विक्षिप्त मानसिकता वाले भांडों की कमी नहीं है। राजदीप जैसे ज़मीर का सौदा कर चुके आतंकवादियों का बयान देखिये- " पहले एक हज़ार हिन्दुओं का क़त्ल करो, फिर newz दिखाउंगा अपने चैनल पर"।

अगर अपने वतन से थोडा भी प्यार करते हैं तो पढ़िए ब्लॉगर विष्णुगुप्त द्वारा लिखे इस महत्वपूर्ण आलेख को

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राष्ट्र-चिंतन
विष्णुगुप्त की कलम से
आईबीएन सेवन के चीफ राजदीप सरदेसाई की असम दंगे पर एक खतरनाक,वीभत्स, रक्तरंजित और पत्रकारिता मूल्यों को शर्मशार करने वाली टिप्पणी से आप अवगत नहीं होना चाहेंगे? राजदीप सरदेसाई ने असम में मुस्लिम दंगाइयों द्वारा हिन्दुओं की हत्या पर खुशी व्यक्त करते हुए सोसल साइट ‘टिवट्र‘ पर टिवट किया कि जब तक असम दंगे में एक हजार हिन्दू नहीं मारे जायेंगे तब तक राष्ट्रीय चैनलों पर असम दंगे की खबर नहीं दिखायी जानी चाहिए,और हम अपने चैनल आईबीएन सेवन पर असम दंगे की खबर किसी भी परिस्थिति में नहीं देखायेंगे? अपनी इस टिप्पणी पर बाद में राजदीप सरदेसाई ने माफी मांगी पर उनकी असली मानसिकता और देश के बहुसंख्यक संवर्ग के प्रति उनकी घृणा प्रदर्शित करता है। क्या किसी पत्रकार को इस तरह की टिप्पणी करने या फिर मानसिकता रखने का कानूनी अधिकार है? क्या इस करतूत को दंगादइयों को उकसाने का दोषी नहीं माना जाना चाहिए। कानून तो यही कहता है कि ऐसी टिप्पणी करने वाले और मानसिकता रखने वाले को दंडित किया जाना चाहिए ताकि देश और समाज कानून के शासन से संचालित और नियंत्रित हो सके। पर सवाल यह उठता है कि राजदीप सरदेसाई को दंडित करेगा कौन? हिन्दुओं की हत्या करने के लिए मुस्लिम दंगाइयों को उकसाने वाली टिप्पणी पर राजदीप सरदेसाई से सवाल पूछेगा तो कौन? सत्ता, पुलिस, प्रशासन और न्यायपालिक तक हिन्दुओ के प्रसंग पर उदासीनता की स्थिति में होती है। ऐसा इसलिए होता कि सत्ता, पुलिस, प्रशासन, न्यायपालिका को मालूम है कि हिन्दु अपनी अस्मिता व अपने संकट को लेकर एकजुट होंगे नहीं और न ही हिंसा का मार्ग अपनायेंगे और मतदान के समय जाति और क्षेत्र के आधार पर मुस्लिम परस्त राजनीतिक पार्टियो के साथ खड़े होने की मानसिकता कभी छोंडेगे नहीं? फिर संज्ञान लेने की जरूरत ही क्या? इसीलिए राजदीप सरदेसाई की टिप्पणी पर न तो सरकार कोई कदम उठायी और न ही गुजरात दंगा पर गलत-सही सभी तथ्यो पर लेने वाली न्यायपालिका ने स्वतह संज्ञान लिया। हिन्दू संवर्ग की ओर से गंभीर प्रतिक्रिया का न होना भी अपेक्षित ही है। ऐसी स्थिति में हिन्दू अस्मिता भविष्य में भी अपमानित होती रहेगी और हिन्दुओं को तथाकथित अल्पसंख्यक मुस्लिम जेहादियों का शिकार होना पडेगा। यहां विचारणीय विषय यह है कि क्या असम दंगा के लिए बोड़ो आदिवासी जिम्मेदार है? बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुस्लिम जेहाद के प्रति राष्टीय मीडिया क्यो और किस स्वार्थ के लिए उदासीनता पसारती है?

अगर यह टिप्पणी मुस्लिम आबादी के खिलाफ होती तब होता क्या?

अगर एक हजार हिन्दुओं की हत्या करने के लिए मुस्लिम दंगाइयों को उकसाने वाली टिप्पणी की जगह राजदीप सरदेसाई ने एक हजार मुस्लिम आबादी की हत्या करने वाली टिप्पणी की होती तब होता क्या? फिर देश ही नहीं बल्कि मुस्लिम देशों सहित पूरी दुनिया में तहलका मच जाता। पाकिस्तान, ईरान, सउदी अरब,मलेशिया, तुर्की और लेबनान जैसे मुस्लिम देश भारत को धमकियां देना शुरू कर देते। भारत में मुस्लिम सुरक्षित नहीं है की खतरनाक कूटनीति शुरू हो जाती। अलकायदा जैसे सैकड़ो मुस्लिम आतंकवादी संगठन का भारत के खिलाफ जेहाद शुरू कर देते। अमेरिका-यूरोप के मानवाधिकार संगठन भारत में मुसलमानों की सुरक्षा को लेकर आग उगलना शुरू कर देते। यह तो रही मुस्लिम और अमेरिका-यूरोप की ओर से उठ सकने वाली प्रतिक्रिया। देश के अंदर मुस्लिम आबादी धरने-प्रदर्शन की बाढ़ ला देती। मुस्लिम नेता और संगठन सड़कों पर उतर जाते। तथाकथित बुद्धिजीवी बर्ग आसमान सर पर उठा लेते और सरकार से टिप्पणीकर्ता व्यक्ति को जेल में डालने की न केवल मांग करते बल्कि सरकार की आलोचना से भी पीछे नहीं हटते। क्या इतनी आलोचना और धमकियो को भारत सरकार झेल पाती ? उत्तर कदापि नहीं। मुस्लिम आबादी को संतुष्ट करने के लिए टिप्पणीकर्ता को आतंकवादी धाराओ के अंदर जेल में ठुस दिया जाता। ऐसी स्थिति में राजदीप सरदेसाई के चैनल पर भी ताला लग गया होता? शेयरधारक और राजदीप सरदेसाई के विदेशी गाॅडफादर चैनल से अपनी हिस्सेदारी वापस लेने के लिए तैयार होता। राजदीप सरदेसाई जेल की काल कोठरी में कैद हो जाते।

गोधरा भूल जाते क्यों हैं?

गुजरात दंगे को लेकर राजदीप सरदेसाई सहित राष्टीय मीडिया और तथाकथित बुद्धिजीवी संवर्ग हिन्दुओं को आतंकवादी साबित करने की कोई कसर नहीं छोड़ी है। गुजरात दंगो की मनगढंत व तथ्यारोपित प्रसारण व लेखन हुआ है। माना कि गुजरात दंगा जैसी प्रतिक्रिया नहीं होनी चाहिए। लेकिन जब गुजरात दंगे की बात होती है और राजदीप सरदेसाई जैसे पत्रकार गुजरात दंगे की बात करते हैं तब गोधरा नरसंहार को क्यों भूला दिया जाता है। निहत्थे कारसेवकों की हत्या क्यों नहीं इन पत्रकारों को दिखता है। गुजरात दंगों की एक बहुत बड़ी सच्चाई यह है कि जिस तरह से राष्टीय मीडिया ने गोधरा कांड के बाद हिन्दुओं को ही आतंकवादी और जेहादी बताने की पूरी कोशिश की थी। कारसेवकों को नरसंहार करने वाले मुस्लिम जेहादियों की पड़ताल करने की जरूरत महसूस नहीं की गयी कि इनके प्ररेणास्रोत मजहबी संगठन कौन-कौन है? गोधरा कांड की साजिश के पीछे की सच्चाई क्या थी। अगर राष्टीय मीडिया और तथाकथित बुद्धिजीवी जमात ने संयम बरतते और हिन्दुओं को आक्रोशित नहीं करते तब गुजरात में मुस्लिम आबादी के खिलाफ उतनी बड़ी प्रतिक्रिया होती नहीं। मुस्लिम आबादी के प्रति गुस्सा जगाने का गुनहगार राजदीप सरदेसाई जैसे पत्रकार और उनके चैनल हैं।

असम दंगा बंग्लादेशी मुसलमानों की है करतूत.................

खासकर बोड़ो आदिवासियों की अस्मिता और उनके जीने के संसाधनों पर मजहबी जेहाद चिंताजनक है। असम दंगा के लिए आॅल बोड़ो मुस्लिम स्टूडेंट यूनियन को दोषी माना गया है। बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद के उप प्रमुख खम्मा गियारी ने साफतौर पर कहा है कि असम के बोडोलैंड में जारी हिंसा के लिए आॅल बोड़ो मुस्लिम स्टूडेंट यूनियन की मजहबी मानसिकता जिम्मेदार है और आॅल बोड़ो मुस्लिम स्टूडेंट यूनियन की मजहबी मानसिकता के पोषक तत्व विदेशी शक्तियां हैं। असम के लोग यह जानते हैं कि आॅल बोड़ो मुस्लिम स्टूडेंट यूनियन की गतिविधियां क्या हैं और इनका असली मकसद क्या हैं? बांग्लादेशी घुसपैठियों का यह संगठन है। बांग्लादेश से घुसपैठ कर आयी आबादी ने अपनी राजनीतिक सुरक्षा और शक्ति के सवर्द्धन के लिए मुस्लिम स्टूडेंट यूनियन सहित कई राजनीतिक व मजहबी शाखांएं गठित की है। मुस्लिम स्टूडेंट यूनियन का काम शिक्षा का प्रचार-प्रसार या शिक्षा से जुड़ी हुई समस्याएं उठाने की नहीं रही है। उनका असली मकसद मजहबी मानसिकता का पोषण और प्रचार-प्रसार रहा है। इसके अलावा बांग्लादेश से आने वाली मुस्लिम आबादी को बोड़ोलैंड सहित अन्य क्षेत्रों में बसाना और उन्हे सुरक्षा कवच उपलब्ध कराना है। बोड़ोलैंड क्षेत्र की मूल आबादी के खिलाफ लव जेहाद जैसी मानसिकता भी एक उल्लेखनीय प्रसंग है। जिसके कारण बोड़ोलैंड की मूल आबादी और मुस्लिम संवर्ग के बीच तलवार खिंची हुई है। बांग्लादेश से आने वाली आबादी के कारण बोड़ोलैंड की आबादी अनुपात तो प्रभावित हुआ है और सबसे खतरनाक स्थिति यह है कि बोड़ोलैंड का परमपारिक रीति-रिवाज और अन्य संस्कृतियां खतरे खड़ी हैं।

असम दंगा मुस्लिम आबादी की करतूत नहीं होती तब ?............

असम दंगे में मुस्लिम स्टूडेंट यूनियन और बांग्लादेशी घुसपैठिये आबादी की भूमिका स्थापित होने और हताहतों में बोड़ोलैंड की मूल आबादी की संख्या अधिक होने के कारण ही राष्टीय मीडिया ने उदासीनता पसारी और इतनी बड़ी आग पर चुप्पी साधने जैसी प्रक्रिया अपनायी। अगर मुस्लिम स्टूडेंट यूनियन और बांग्लादेशी मुस्लिम आबादी की दंगाई भूमिका नहीं होती तो राजदीप सरदेसाई सहित राष्टीय मीडिया चिख-चिख कर पूरे देश की जनता को बताता कि देखो असम मे मुस्लिम आबादी के खिलाफ हिन्दुओ ने कत्लेआम किया है, हिन्दू आतंकवादी है और हिन्दुओं से देश की शांति को खतरा है? मीडिया चैनलों पर अरूधंति राय,तिस्ता शीतलवाड,हर्ष मंदर, जावेद आनंद और दिलीप पडगावरकर जैसे पत्रकार व एक्टिविश बैठकर और प्रिंट मीडिया में काॅलम लिख कर हिन्दुओं को आतंकवादी और दंगाई ठहराने की कोई कसर नहीं छोड़ते। पर असम दंगे पर अरूंधति राय, तिस्ता शीतलवाड, जावेद आनंद, दिलीप पंडगावरकर जैसे लोग आज चुप्पी साधे क्यों बैठे हैं? राष्टीय मीडिया और तथाकथित बुद्धीजीवी सिर्फ असम के दंगे पर ही अपनी मुस्लिम परस्ती नहीं दिखायी है। कश्मीर में मुस्लिम आतंकवादियों द्वारा कश्मीरी पंडितों की हत्या और उन्हें अपनी मातृभूमि से बेदखल करने की राजनीतिक कार्रवाई पर राष्टीय मीडिया और तथाकथित बुद्धीजीवी क्या कभी गंभीर हुए हैं। राष्टीय मीडिया और तथाकथित बुद्धीजीवी संवर्ग कश्मीर की आतंकवादियों की हिंसक राजनीति को आजादी की लड़ाई करार देते हैं। कुछ ही दिन पूर्व उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले कोसी कलां क्षेत्र में मुस्लिम आबादी ने हिन्दुओं के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसा फैलायी थी। कोसी कलां क्षेत्र में हिन्दुओं पर हुए अत्याचार की घटना उत्तर प्रदेश विधान सभा में उठी पर राष्टीय मीडिया ने मुस्लिम आबादी द्वारा हिन्दुओं के घरों और दुकानों को जलाने जैसी हिंसक घटना को साफतौर पर ब्लैक आउट कर दिया था। अभी हाल ही में बरैली में कवारियों के साथ मुस्लिम आबादी ने बदसूलकी की और दंगा फैलायी गयी। कई दिनों तक बरैली में कर्फयू लगा रहा। पर राष्टीय मीडिया बरैली में कर्फयू और कवारियों के साथ हुई बदसूलकी को ब्लैक आउट कर दिया।

जनसंख्यिाकी असंतुलन पर मीडिया का संज्ञान क्यों नहीं.................

राष्टीय मीडिया और सरकार असम की खतरनाक होती जनसांख्यिकी समस्या को नजरअंदाज करती आयी है। जबकि जरूरत जनसाख्यिकी संतुलन पर गंभीरता से विचार कर घुसपैठ की समस्या पर रोक लगाने की थी। असम में बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण आबादी का अनुपात तेजी अनियंत्रित हो रहा है। असम के कई जिले बांग्लादेशी मुस्लिम आबादी की बहुलता के चपेट में आ गये हैं। बांग्लादेशी मुस्लिम आबादी ने अपनी राजनीतिक स्थिति भी मजबूत कर ली है। कभी बांग्लादेशी मुस्लिम आबादी के खिलाफ असम में छात्रो का एक बड़ा विख्यात अभियान और आंदोलन चला था। छात्रों के इसी अभियान की गोद से असम गण परिषद और प्रफुल मंहत जैसे राजनीतिक ताकत का जन्म हुआ था। द ुर्भाग्य से असम गण परिषद खुद हासिये पर खड़ा है और बांग्लादेशी मुस्लिम आबादी की घुसपैठ का सवाल भी अब बेअर्थ होता चला जा रहा है। कांग्रेस वोट और सत्ता के लिए बांग्लादेशी घुसपैठियो का संरक्षण देती है। असम में कांग्रेसी सरकार के सह और संरक्षण के कारण ही मुस्लिम आबादी की दंगायी और मजहबी मानसिकता का विस्तार हो रहा है। असम की कांग्रेसी सरकार की बोड़ोलैंड में हुए दंगों पर कड़ाई नहीं दिखाने के प्रति कारण भी यही है।

राजदीप सरदेसाई जैसे पत्रकार मुस्लिम परस्त क्यो होते हैं..............

राजदीप सरदेसाई जैसे पत्रकार मुस्लिम परस्त क्यों होते हैं? राजदीप सरदेसाई जैसे पत्रकार हिन्दू अस्मिता को अपमानित करने के लिए क्यों उतारू होते हैं? मुस्लिम आतंकवादियों और कश्मीर के राष्टद्रोहियो के चरण वंदना क्यों करते हैं राजदीप सरदेसाई जैसे पत्रकार? इसके पीछे करेंसी का खेल है। पैसे के लिए व विदेशी दौरे हासिल करने के लिए देश के पत्रकार और बुद्धिजीवी हिन्दुत्व के खिलाफ खेल-खेलते हैं और देश की अस्मिता को अपमानित करने जैसी राजनीतिक-कूटनीतिक प्रक्रिया अपनाते हैं। फई प्रसंग आपको याद नहीं है तो मैं याद करा देता हूं। फई आईएसआई का एजेंट है। फई के इसारे पर भारतीय पत्रकार और बुद्धिजीवी लट्टू की तरह नाचते थे।
फई पर अमेरिका में आईएसआई एजेंट होने के आरोप में मुकदमा चल रहा है। फई के पैसे पर बडे-बडे पत्रकार राज करते थे और फई द्वारा भारत विरोधी सेमिनारों के आयोजन मे अमेरिका जाकर ऐस-मौज करते थे। फई के पैसे और फई के प्रायोजित अमेरिकी दौरे पर जाने वाले पत्रकारों में कुलदीप नैयर जैसे पत्रकार भी रहे हैं। राष्टीय मीडिया के बड़े स्तंभों में कहीं आईएसआई या फिर मुस्लिम जेहादियों का पैसा तो नहीं लगा है? ईरान-सउदी अरब सहित यूरोप के मुस्लिम संगठनों से भारत को इस्लामिक देश में तब्दील करने के लिए अथाह धन आ रहा है। अथाह धन मुस्लिम आबादी के पक्ष में खड़ा होने के लिए मीडिया पर खर्च नहीं हो रहा होगा? मीडिया को अपने वीभत्स, रक्तरंजित स्वार्थों के लिए हथकंडा के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान में अलकायदा जैसे संगठनों ने सबसे पहले मीडिया को ही अपना चमचा बनाया था। कश्मीर में आतंकवादियों की जमात ‘हुर्रियत ‘ की सबसे बड़ी ताकत देश का राष्टीय मीडिया ही है। यह एक सच्चाई है। हुर्रियत को आईएसआई और विदेशों से आतंकवादी और भारत विरोधी अभियान चलाने के लिए धन मिलता है। हुर्रियत के नेता अपने मजहबी स्वार्थो की पूर्ति के लिए राष्टीय मीडिया को करेंसी की ताकत लट्टू की तरह नचाते हैं।

स्वयं भू निगरानी संगठन मौन क्यों हैं? ..................

राजदीप सरदेसाई ने एक हजार हिन्दुओं की कत्ल करने के लिए जो टिप्पणी की थी वह क्या पत्रकारिता मूल्यो के अनुरूप थी? पत्रकाकारिता सिद्धंातों की कसौटी पर लोकतांत्रिक माना जाने वाली थी? राजदीप सरदेसाई की टिप्पणी सीधे तौर पर पत्रकारिता के मूल्य व सरोकारों को शर्मशार करने वाली घटना थी। देश के अंदर में कुकुरमुत्ते की तरह पत्रकारों के संगठन है। कई ऐसे संगठन हैं जो पत्रकारों और पूरे मीडिया पर निगरानी करने का दावा करते हैं? इलेक्टाॅनिक्स मीडिया का स्वयं भू एक निगरानी संगठन है। इलेक्टाॅनिक्स मीडिया के स्वयं भू निगरानी संगठन में बड़े-बड़े पत्रकार और सभी चैनलों के प्रमुख सदस्य हैं। यह निगरानी संगठन इलेक्टाॅनिक्स मीडिया को लोकतांत्रिक बनाने और तथ्यहीन कवरेज पर नोटिस लेता है। राजदीप सरदेसाई की टिप्पणी पूरी पत्रकारिता जगत को शर्मशार करने वाली है। पत्रकारिता की विश्वसनीयता भी तार-तार हुई। फिर भी इलेक्टाॅनिक्स मीडिया का स्वयं भू निगरानी संगठन चुप क्यों है। यही निगरानी संगठन इलेक्टाॅनिक्स मीडिया पर नजर रखने के लिए सरकारी नियामक का विरोधी रहा है। राजदीप प्रकरण के बाद इलेक्टाॅनिक्स मीडिया पर नजर रखने और इलेक्टाॅनिक्स मीडिया का गैर लोकतांत्रिक चरित्र पर राक लगाने के लिए सरकारी नियामक का होना क्यो जरूरी नहीं है? प्रेस परिषद अध्यक्ष न्यायमूर्ति काटजू के इलेक्टानिक्स मीडिया पर सरकारी नियामक बनाने के विचार को मूल रूप देने की प्रक्रिया चलनी ही चाहिए।

अति का परिणाम भी देख लीजिये..................

अति बहुत ही खतरनाक प्रक्रिया है? अति का परिणाम कभी भी सुखद निकलता नहीं? हिन्दुओं की अस्मिता से खेलने की जो अति पत्रकारिता चल रही है, राजनीतिक खेल जारी है, उसके परिणाम गंभीर होंगे। अगर मुस्लिम आबादी की तरह हिन्दू आबादी भी अपनी परमपरागत उदारता को छोड़कर मुस्लिम विरोध की प्रकाष्ठा पर उतर आयेगी तब स्थितियां कितनी खतरनाक होगी, कितनी जानलेवा होगी? इसकी कल्पना शायद राजदीप सरदेसाई जैसे बिके हुए पत्रकार नहीं कर सकते हैं। गुजरात दंगा अतिवाद के खिलाफ उपजा हुआ हिन्दू आबादी का आक्रोश था। गुजरात की तरह ही हिन्दू आबादी देश के अन्य भागो में भी एकजुट होकर मुस्लिम आबादी के खिलाफ वैमनस्य और तकरार का रास्ता चुन लिया तो फिर मुस्लिम आबादी के सामने कैसी भयानक स्थिति उत्पन्न होगी? इसकी कल्पना होनी चाहिए। क्या राजदीप सरदेसाई जैसे पत्रकार गुजरात दंगा हिन्दुओ के आक्रोश को रोक सके थे। सही तो यह है कि राजदीप सरदेसाई जैसे पत्रकार जेहादी मानसिकता का पोषण कर मुस्लिम आबादी को संकट में ही डाल रहे हैं। मुस्लिम आबादी की दंगाई मानसिकता का प्रबंधन होना भी क्यों जरूरी नहीं है?

निष्कर्ष ...............

सही अर्थो ंमें दंगाई मानसिकता और चरमपंथ की व्याख्या होनी चाहिए। एकांकी व्याख्या या फिर एकांकी दृष्टिकोण रखने से दंगायी मानसिकता व चरम पंथ को विस्तार ही मिलेगा। मुस्लिम आबादी की दंगायी मानसिकता और उनका चरमपंथ भी कम खतरनाक नहीं है। इस सच्चाई से राष्टीय मीडिया को मुंह नहीं मोड़ना चाहिए। असम ही नहीं पूरा पूवोत्तर क्षेत्र आज विदेशी ताकतों और मजहबी शक्तियों की चपेट में है। राष्टीय मीडिया ने असम दंगे पर प्रारंभिक चुप्पी साधकर अपने कर्तव्य से न्याय नहीं किया है। क्या राष्टीय मीडिया चरमपंथ और दंगाई मानसिकता का सही अर्थों में विश्लेषण करने के लिए तैयार होगा? क्या राष्टीय मीडिया राजदीप सरदेसाई जैसी मानसिकता से मुक्त होने के लिए तैयार है। फिलहाल असम में दंगायी आग को बुझाने और दंगाइयो को गुजरात दंगे की तरह ही कानून व सवंधिान का पाठ पढ़ाने की जरूरत है। राजदीप सरदेसाई जैसे पत्रकारों को भी लोकतांत्रिक बनाने के लिए सरकारी नियामकों का सौंटा चलना चाहिए।

Friday, July 27, 2012

केजरीवाल...

हाँ मैं अन्ना के साथ हूँ, रामदेव के साथ हूँ , मोदी के साथ हूँ, सुब्रमण्यम स्वामी के साथ हूँ, केजरीवाल के साथ हूँ। यदि इनका साथ दूं तो क्या सेक्युलर कोढियों (गिलानी, अरूंधती, कलमाड़ी, सोनिया, राजा और इनके रबर-स्टाम्पों) का साथ दूं? केजरीवाल का स्वास्थ्य बिगड़ रहा है। अनशन तोड़ देना चाहिए। दो-दो दिन का अनशन करके इस बीमार सरकार का रक्तचाप बढ़ाते रहना चाहिए और स्वयं को भी स्वस्थ्य रखना ज़रूरी, अन्यथा देश को लूटने वाले भेडियों के खिलाफ जंग कैसे जारी रखेंगे। केजरीवाल को अच्छे स्वास्थ्य की शुभकामनाएं।

Thursday, July 26, 2012

बाई हुक और बाई क्रूक...

निसंदेह हिन्दुओं और हिंदुस्तान को यदि कोई बचा सकता है तो वह है बीजेपी। कुछ लोगों का कहना है की बीजेपी में कोई बेवकूफ नहीं बैठे हैं, सभी एक से बढ़कर एक दिग्गज हैं। उनके पास भी अकल है। वे भी कूटनीति कर रहे हैं और अपनी रण नीति बना रहे हैं। लेकिन प्रश्न यह है की वह रणनीति दिखेगी कब ? उत्तर प्रदेश के चुनाव निकल गए। सब कुछ अपने हाथ में ही था लेकिन नहीं वे तो निश्चिन्त थे। , फिर राष्ट्रपति के नाम पर भी एकमत न हो पाये। काश कलाम के नाम पर ममता की तरह अड़े ही रहते तो डॉ कलाम शायद अपना नाम वापस नहीं लेते। फिर प्रणब को भी कांटे की टक्कर मिलती और वे फूल कर कुप्पा नहीं होते। कांग्रेस की रण नीति स्पष्ट है, वह तो साम , दाम, दंड , छेदन , विभेदन और आतंक सभी हथियार को इस्तेमाल करके अपने कलाकार सभी सर्वोच्च पदों पर बैठा रही है। पहले मीडिया खरीद ली, फिर सीबीआई और अब तो राष्ट्रपति भी उनका है। सुन-गुड्डा प्रधानमन्त्री तो पहले ही बेमोल उनका हो चुका था। बीजेपी को भी अपनी रणनीति अब स्पष्ट कर देनी चाहिए। बाई हुक और बाई क्रूक , सत्ता हथिया ही लेनी चाहिए। नहीं तो कहीं देर न हो जाए, पहले आप, पहले आप की रण नीति में....

Tuesday, July 24, 2012

टॉक इन इंग्लिश ...

स्कूल बस में बैठी वह मासूम सी शिक्षिका 'मोना' खिड़की के बाहर देख रही थी। दिन भर की थकान के बाद घर पहुँच कर अपने मासूम बच्चों से मिलकर उन्हें अपने हाथों से खाना खिलाने की जल्दी थी उसे। अपने ही ख्यालों में डूबी हुयी वह खिड़की के बाहर देख रही थी। बस अपनी रफ़्तार से बढ़ी चली जा रही थी। बस के अन्दर अन्य शिक्षिकाओं और स्कूल के बच्चों की आवाजें गूँज रही थीं। बच्चे भी घर जाने की ख़ुशी में मस्त , दोस्तों के साथ निश्चिन्त होकर बातें कर रहे थे। कोई चुटकुला सुना रहा था तो कोई आपस में मिलकर खेल रहा था।

सहसा नेपथ्य में कोर्डीनेटर-मैडम की आवाज़ गूँज उठी- " टॉक इन इंग्लिश" और फिर नाज़ुक गालों पर चाटों की बरसात। सहम गए मासूम बच्चे। गुनाह कर दिया था हिंदी में बात करके....

मोना सोचने लगी, कहाँ जा रहा है ये देश । अपने ही देश में जन्मे बच्चे अपनी मातृ-भाषा में बात भी नहीं कर सकते। मैकाले की शिक्षा पद्धति ने किस कदर हमें गुलाम बना लिया है।

लाचारी में उसकी आँखों से दो- बूँद आँसू टपक पड़े...

बस आगे बढ़ी जा रही थी। बच्चे के सिसकने की आवाज़ आ रही थी। अगले स्टॉप पर कोर्डीनेटर-मैडम उतर गयीं। उनके जाने के बाद मोना ने उस बच्चे को अपनी गोद में बैठा लिया। उसकी सिसकियाँ थम गयीं थीं। मोना ने उसके आँसू पोछे और उससे हिंदी में एक गीत सुनाने को कहा।

बच्चा गुनगुना उठा--- सारे जहाँ से अच्छा , हिन्दोस्ताँ हमारा....

Zeal

Sunday, July 22, 2012

बेशर्मी की इंतहा देखिये...


धर्म का ह्रास होगा तो राष्ट्र प्रगति कैसे कर सकता है। हिंदुस्तान के हिन्दू ही अपने देश को शर्मसार कर रहे हैं। सेक्युलर बनकर अपने ही देश के साथ घात कर रहे हैं। कुछ दिनों में ये ड्रामेबाज सेक्युलर, मुल्लों और इसाईयों के साथ बैठकर हलाल का ऊँट और सुवर खायेंगे। और गो-ह्त्या कर धर्म का नाश करेंगे। इन्ही सेक्युलरों के कारण हमारे देश पर इस विदेशी पिज्जा बेचने वाली वेट्रेस का राज है। भारत-भूमि पतन की ओर तेज़ी से अग्रसर है। नकली हिन्दुओं का खून पानी हुआ जा रहा है। अब उनमें उबाल; भी नहीं आता। अपना धर्म बदल कर इस्लाम और इसाईयत को अपना रहे हैं। इन्ही मुगलों ने हमारे हिन्दू मंदिरों को तोड़ा और नष्ट किया। केरल में आज साठ प्रतिशत इसाई हो गए हैं। जगह-जगह , सार्वजनिक स्थानों पर कब्जा करके अपना बड़ा-बड़ा इसाई क्रूस खड़ा कर रहे हैं। देश का सबसे खूबसूरत राज्य केरल भी इन इसाईयों के कब्जे में है। समय आ गया गया है चेत जाने का , अन्यथा बहुत देर हो जायेगी। ये सेक्युलर-पिस्सू हमारे देश को खून पी जायेंगे।

देखिये इस तस्वीर में 'लक्ष्मण जॉन्सन' को ......हिन्दू धर्म का अपमान करते इस मूर्ख को पहचानिए और जानिये इनकी असलियत..... कौन है ये ? ...सेकुलर पिस्सू ?...हिंजड़ा?...अधर्मी ? ...कमीना ?.... या फिर कोई जेहादी ?

Zeal

काश ये सब मरणोपरांत न होकर उनके मरने से पहले होता....

आज सोनी चैनल पर 'इन्डियन आयडल' प्रोग्राम में सुपर स्टार राजेश खन्ना जी पर श्रद्धांजलि प्रोग्राम का आयोजन देखकर मन में एक बार फिर यही आया कि काश उनके सम्मान में इनता भव्य समारोह उनके जीते जी किया होता तो वे भी खुश हो लेते मृत्यु से पूर्व, और वही सच्ची श्रद्धांजलि होती एक कलाकार के लिए। लेकिन नहीं!.. दुनिया का दस्तूर भी अजब है , जब वे चले जाते हैं तो लोग उनके सम्मान में बहुत कुछ करते हैं , लेकिन उनके जीते-जी , उन्हें बिसरा देते हैं....

जाने चले जाते हैं कहाँ , दुनिया से जाने वाले.........
कैसे ढूंढें कोई उनको, नहीं क़दमों के भी निशाँ....

Zeal

Thursday, July 19, 2012

खुदा भी आसमाँ से जब ज़मी पर देखता होगा....

UPA सरकार जो चाहती है वही होता है। उसके आगे न तो जनता की चलती है, न ही विपक्ष की। न ही डॉ कलाम की, न ही संगमा की और न ही बंगाली शेरनी की....

अपने देश में बस वही होता है जो मंजूरे 'कांग्रेस' होता है।

खुदा भी आसमाँ से जब ज़मीं पर देखता होगा,
कांग्रेस को किसने बनाया सोचता होगा।

Zeal

Sunday, July 15, 2012

Education and qualification

हमारे देश में Education बहुत महँगी है, गरीब अपने बच्चे को पढ़ा नहीं पा रहा। और अफ़सोस कि इसी देश में Qualification बहुत सस्ती है, पढ़े-लिखे लोग अपनी-अपनी डिग्री लिए मारे-मारे फिरते हैं....

Sunday, July 8, 2012

बलात्कार करो !...मैं हूँ न !.. मैं बचा लूंगी (क्योंकि मैं कांग्रेस हूँ )

देश के कर्णधार जब बलात्कार करते हैं , तब उन पर ऊँगली तक नहीं उठती, क्योंकि मीडिया को खरीद लिया जाता है । पीड़ित युवती को उसके माता-पिता के साथ-साथ , उसके अन्य रिश्तेदारों को भी मरवा दिया जाता है। ताकि सब कुछ शांत हो जाये और बलात्कारी , निर्विवाद, निर्भय होकर अगले शिकार को सुकून के साथ कर सके। अश्लील वीडियो तो कांग्रेस की पहचान हैं ही, अब बलात्कारी बनेंगे प्रधानमन्त्री। -- जय हो-- हो रहा भारत निर्माण !

यदि आपकी आत्मा सोयी न हो तो पढ़िए एक फेसबुकिया 'अमित तेवरिया निशब्द' के शब्दों में एक दिल देहला देने वाली वीभत्स कहानी--


समझ में नही आता कि कहाँ से शुरू करू ?-

इस कांड का ना और दिखता हैं ना कोई छोर,,मज़े की बात ये हैं कि कांग्रेसियों की लघु शंका से लेकर दीर्घ शंका तक को परोसनेवाली बिकाऊं मीडिया ने राहुल गाँधी के बलात्कारी प्रकरण को एक बार भी टेलीकास्ट नही किया .....

इसे कहते हैं वफादारी ....

हमारे देश के कई मुलायम जैसे नेताओ ने गिरगिट की तरह रंग बदलना तों सीख लिया काश कुत्ती मीडिया से थोड़ी वफादारी भी सीख लेते ?

राहुल गाँधी ने सुप्रीम कोर्ट मे हलफनामा दिया हैं कि उनके उपर सुकन्या के बलात्कार का मामला जो यूपी हाईकोर्ट मे चल रहा है उसे रद्द किया जाये , क्योकि वो किसी का बलात्कार कर ही नही सकते .. लेकिन राहुल गाँधी ने इसका कारण क्यों नही बताया कि आखिर वो किसी लड़की का बलात्कार क्यों नही कर सकते ?

भाई शादी हुई नही, रेप किया नही तो 41 साल की उमर में हस्तमैथुन से काम चला रहे हो क्या?
या फिर बात कुछ और है?गेस्ट हाउस का सरकारी चौकीदार जो रेप का एहम गवाह है, वो गत अक्टूबर से गायब है ? एंट्री रजिस्टर से उन दिनो के पन्ने निकाल के फाड़ दिए गये है | यह बात लोअर कोर्ट मे दाखिल नही थी..
थोक कच्ची सब्जी खरीदी के बिल पर उस दिन राहुल के दस्तख़त है जो डिलीवरी कूक और गार्ड की गैरमोजूदगी मे राहुल ने रिसीव किए थे, रेप रूम मे राहुल के स्पर्म और बाल मिले थे, तों फिर डीएनए जांच के लिए तैयार क्यू नही ? या परम्परा हैं कांग्रेस की कि जब तक पीछे लठ्ठ ना दो तब तक खून नही निकलेगा ? नारायण दत्त तिवारी का खून भी बड़ा बलिदानी था ....

मेरा सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हुए अनुरोध है कि आप राहुल गाँधी के बयान को सही माने और इज़्ज़त के साथ बरी कर दे. क्योकि यह नेहरू और इंदिरा गाँधी परिबार से जुड़े है और राजीव गाँधी के साथ सोनिया की हराम की कमाई के मालिक है और कोकीन का शौक रखने पर 3 बार पुलिस ने इसे पकड़ा लेकिन नेहरू परिबार के कारण कुछ नही किया. बल्कि इनकी गर्ल फ्रेंड किसी ड्रग माफिया की लड़की बनी अब मालूम नही की वो बहन की तरह रहती थी या और तरह से थी. आज इनकी माँ का राज है तब आप क्या कर सकते है????

यह केस काफ़ी पुराना है जिसमे किशोर समरिते ने राहुल और उसके कुछ साथियों पर सुकन्या देवी नाम की लड़की का रेप का आरोप लगाया था. ये लड़की कांग्रेस वर्कर की बेटी है. जब ये मामला कोर्ट में आया तभी से सुकन्या और उसके माँ - बाप को गायब कर दिया गया था. हाइ कोर्ट ने राहुल को नोटिस जारी किया था की 15 दिनों के अंदर जवाब दो. लेकिन इसी बीच दिग्गी के समर्थक जज का दूसरा बेंच बनाया गया और बिना राहुल के जवाब के सुनवाई कर दी गई जिसमें 50 लाख का जुर्माना लगा दिया गया. (हमारा और आपका मामला होता तो सालों-साल तक कोर्ट में केस चलता रहता- लेकिन राहुल राजकुमार के लिए 15 दिन का भी इंतजार नहीं किया गया और दूसरा बेंच बैठा कर जुर्माना लगा दिया गया- तो ये है हमारा लोकतंत्र - गाँधी परिवार के लिए अलग और आम जनता के लिए अलग). किशोर समरिते ने आरोप लगाया था की सुनवाई के दौरान कोर्ट में नकली सुकन्या और उसके नकली माँ-बाप को पेश किया गया था जबकि उन सबकी हत्या कर दी गई है. राहुल यदि सच्चा है तो उन सबको मीडिया के सामने लाए.

पहले गाँधी ना जाने कितनो का रेप करके महात्मा बन गया और अब ये गाँधी आया है जो रेप कर कर के प्रधाम मंत्री बन जाएगा...., जैसे उत्तर प्रदेश सरकार रेप करने वालो को मुआवज़ा दे रही है वैसे ही गाँधी वादी रेप कर के मंत्री पद बाँट देते है...

झूठे आरोप के सन्दर्भ में आम लोगों के जेहन में उभरने वाले सवाल:- (1) इतने घृणित आरोप उसने क्यों लगाये? (2) समाजवादी मुखिया की चुप्पी के पीछे क्या है? (3) कॉंग्रेस के बड़बोले नेता मौन क्यों हैं (4) समाजवादी पार्टी ने विधायक को दल से क्यों नहीं निकाला? (5) समर्थन लेने वाली कॉंग्रेस और देने वाली समाजवादी इन दोनों की नीचता की हदें क्या हैं? (6) क्या कोई माँ इस प्रकार चुप्पी साधेगी (7) आरोपी की चुप्पी क्या जताती है?

समरथ को नहीं दोष गोसाई. प्रभावशाली व्यक्ति कुछ भी कर सकता है. क़ानून भी उसी का साथ देते हुए दिखाई देता है. और फिर बात राहुल गाँधी की हो तो बात ही कुछ और है. यही घटना यदि गाँधी परिवार में घटी होती तो सारे एक होकर उसे मार डालते. कहा गया है ग़रीब की लुगाई सबकी भोज़ाई. जिसकी मर्ज़ी जो चाहो सो करो कोई रोकने टोकने वाला नही सब तुम्हारे साथ है.

अजीब फ़ैसला है कोर्ट का, आरोपी को माफी और शिकायत कर्ता को सज़ा. वो भी आरोपी के कहने मात्र से,
आज सुकन्या बहिन को न्याय की दरकार हैं,और मैं आपसे हाथ जोड़कर विनती करूँगा कि इसे इतना शेयर कीजिये ,,इतना शेयर कीजिये ,,कि बिकाऊ मीडिया और कोर्ट दोनों को ही हमारी एकता एवं शक्ति का आभास हो जाये ,,जिससे फिर कोई सुकन्या ना बन सके ,,जिससे फिर कोई भी अपने रसूख की डोर पर किसी अबला के कपड़े ना टांग सके ......

वन्देमातरम................................................................इन्कलाब जिंदाबाद


अमित तेवतिया (निःशब्द)

 


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भाजपा का सेनापति

कांग्रेस हमारी दुश्मन है और भाजपा हमारी सेना , लेकिन हमारी सेना के पास नेतृत्व और नैतिकता की कमी हो गयी है। २०१४ से पहले इन दोनों कमियों को दुरुस्त कर लेने में ही भलाई है। अपने दिग्गज और कर्मठ श्रेष्ठ नेताओं को कभी निकाल बाहर कर देती है तो कभी पार्टी में रखकर ही उसके अस्तित्व को समाप्त कर देती है। चुनिन्दा लोग या तो पार्टी से टूटकर कांग्रेस को सशक्त करते हैं या फिर स्वयं ही निराश होकर अस्तित्व विहीन हो जाते हैं। भाजपा को ये समझना चाहिए की वो क्या गलती कर रहे हैं। समय रहते समेटना होगा सब कुछ और एक आदर्श व्यवस्था लागू करनी होगी पार्टी में। सबसे ज़रूरी है कि नेतृत्व एक सक्षम व्यक्ति के हाथों में दिया जाए। सेनापति श्रेष्ठ होगा तो सेना का मनोबल भी बना रहता है और हमारी जीत भी सुनिश्चित रहती है।

Friday, July 6, 2012

किटी पार्टी वाली नारियां

यह पोस्ट चंद महिलाओं को समर्पित है। कृपया तीन-चौथाई महिला-जगत आग-बबूला न होवें मुझ पर। लेकिन ये भी एक यथार्थ है की धन-संपन्न महिलाएं , घर में हर प्रकार के ऐशो आराम होने तथा काम-काज न होने की स्थिति में, अपने ही घर में बेरोजगार हो जाती हैं। हर काम नौकर कर रहा है तो वे बेचारी करें भी तो क्या करें। फिर घेर लेती है उनको बोरियत। अब बोरियत नामक मर्ज को भगाने के लिए सबसे , सरल और टिकाऊ रास्ता है किटी पार्टियाँ करके , परपंच में लिप्त रहकर खुद को व्यस्त रखना।

हे भारत की नारियों ! नाक ना कटाओ स्त्री जाती की । इस तरह के शौक पाल कर खुद को कलंकित न करो। कुछ ढंग का काम करो। जिससे तुम्हारा नाम हो। माता-पिता के साथ , पति बेचारा भी तुम पर कसम खाने के लिए गर्व कर सके।

ये तो सारा दिन न्यूज़ देखते रहते हैं, मैं बोर हो जाती हूँ....आदि आदि न कहो, अपितु अपने-अपने पतियों के साथ बैठकर न्यूज़ देखो, टॉक-शोज़ देखो। हर विषय पर अपडेटेड रहो। कब तक खुद को श्रृंगार की मोहताज बनाकर पति से झूठी प्रशंसा पाने की ललक मन में पाले रहोगी।

समानता का अधिकार चाहती हो तो , पुरुषों के समकक्ष आओ । अखबार पढो, पीरियोडिकल्स पढो, विज्ञान में रूचि बढाओ, देश-विदेश से सरोकार रखो। श्रृंगार और रूप-सज्जा से बाहर निकलो। चिंतन और मनन करो। विद्वता को ही खुद की पहचान बनाओ।

यदि हो सके , तो किटी-पार्टी जैसे अति- घटिया शौक मत पालो। न जाने क्यूँ, स्त्रियों का ये शौक मुझे समस्त स्त्री जाती पर कलंक लगता है।

Zeal

हर हर महादेव !


नंदी की सवारी, नाग अंगीकार धारी
नित संत सुखकारी, नीलकंठ त्रिपुरारी हैं।
गले मुंडमाला धारी,सर सोहै जटाधारी
वाम अंग में बिहारी, गिरिराज सुतवारी हैं।

सावन के सोमवार ९, १६, २३ और ३० को भगवान् शिव का उपवास रखकर अपने सभी मनोरथ पूर्ण कीजिये। -- हर हर महादेव !

Zeal

Thursday, July 5, 2012

नास्तिकों के चोंचले

मज़ाक तो देखिये-- ब्रम्हाण्ड के कणों को ढूंढ लिया। बोसोन्स से बने हुए हैं। ईश्वर का अस्तित्व ही नहीं ये, सोच कर खुश हो रहे हैं नास्तिक । गर्भ धारण , संतानोत्पत्ति , फल पुष्प आदि का खिलना कैसे होता है ? नास्तिक जवाब दें। गरीब भूखे मर रहे हैं और अमीरों के चोंचले जारी हैं --कभी ब्रम्हाण्ड का रहस्य जान लेते हैं तो कभी अरबों रूपए बर्बाद करके सृष्टि की उत्पत्ति पर शोध करते हैं।

Zeal

Tuesday, July 3, 2012

भगवा- ध्वज




यदि तिरंगे की जगह 'भगवा-ध्वज' को ही हमारा राष्ट्रीय ध्वज बनाया जाए तो कैसा रहेगा ?

Zeal

Sunday, July 1, 2012

वेदों के देश भारत में आयुर्वेद की दशा

ऋषियों , मुनियों और विद्वानों की धरती से उसकी पहचान ही विलुप्त होती जा रही हैक्यों हमारे तथाकथित बुद्धिजीवी पश्चिम की भाषा, संस्कृति और चिकित्सा पद्धति को अपना रहे हैंनिज पर गर्व नहीं करते , ना ही उसके महत्त्व को समझते हैं

आयुर्वेद न सिर्फ रोगी की चिकित्सा करता है अपितु स्वस्थ के स्वास्थ्य की रक्षा भी करता है।

स्वस्थस्य
स्वास्थ रक्षणं, आतुरस्य विकार प्रशमनं च।

एलोपैथिक पद्धति तो मात्र २०० वर्ष पुरानी है , जबकि हमारा आयुर्वेद , ब्रम्हा जी के मुख से निकला है और हमारे वेदों में वर्णित हैआयुर्वेद , अथर्वेद का ही एक उपवेद है, जिसमें कायिक और मानसिक सभी व्याधियों का उल्लेख एवं निदान हैआज के समय के एड्स (AIDS), और सार्स (SARS) जैसी व्याधियों का भी सम्पूर्ण उल्लेख है हमारी वैदिक चिकित्सा पद्धति में

आयुर्वेद द्वारा आतुर (रोगी) की चिकित्सा की जाती है और स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा का प्राविधान है। इसके उहाहरण हमारे दीर्घायु ऋषि-मनीषी हैं। कंद मूल फल पर जीवित रहने वाले हमारे तत्कालीन विद्वानोंऔर बुद्धिजीवियों ने मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए एक चमत्कारिक , चिकित्सा पद्धति की रचना कर डाली थी। मुह में छाले हो अथवा पीलिया जैसा घटक रोग हो अथवा अस्थिभंग हो या फिर मधुमेह जैसा सुख्रोग हो, या पथरी हो, सभी का आशुकारी इलाज , बिना हानिकर प्रभावों वाली प्राकृतिक दवाईयों क्रमशः नकछीवक , अस्थि श्रंखला, स्ट्रिविया, गोक्षुरु आदि से अपने प्राकृतिक रूप चूर्ण, क्वाथ, आसव अथवा अरिष्ट के रूप में किया जाता है जो सर्वथा हानिकर प्रभावों से मुक्त है।

देव व्यपाश्रय और युक्ति व्यपाश्रय चिकित्सा द्वारा , इलाज करने वाले देवताओं के चिकित्सक 'अश्विनी कुमारों' की वैदिक चिकित्सा पद्धति है ये, जिसमें किस व्याधि का इलाज नहीं है भला ? दमा, राजयक्ष्मा, अतिसार , आमवात और प्रमेह से लेकर उन्माद आदि सभी व्याधियों की सम्पूर्ण चिकित्सा का वर्णन है , सुश्रुत, अष्टांग संग्रह आदि वृहदत्रायी और लघुत्रयी में

दीपावली से दो दिन पूर्व हम धनतेरस मनाते हैंजिसमें हम भगवान् धन्वन्तरी की पूजा करते हैंकौन हैं ये धन्वन्तरी ? समुद्र मंथन से अमृत कलश लेकर अवतरित हुए धन्वन्तरी को ही 'Father of medicine' कहा गया हैऔर सुश्रुत को 'Father of Surgery' कहा गया है

हमारी वैदिक चिकित्सा पद्धति में , उस समय भी शल्य क्रिया आज से कहीं ज्यादा उन्नत अवस्था में थीआज का 'Organ Transplant' और Plastic surgery जिसमें सफलता का प्रतिशत संशयात्मक ही बना रहता है , वही वैदिक काल में १०० प्रतिशत सफलता के साथ किया जाता था

सुशुत के काल में त्वचा की सात परतों के अध्ययन के लिए लाश को नदी में बाँध दिया जाता थाऔर गलन प्रक्रिया के बाद बहुत सफाई के साथ त्वचा की सातों परतों का अध्ययन सुलभ होता थाआज के दौर की 'Blood letting' , उस समय सफलतापूर्वक 'जोंक और 'श्रृंग' के माध्यम से होती थीउस समय भी शल्य क्रिया के बाद stitching होती थी , बस अंतर केवल इतना था की Catgut की जगह काले चींटों का सफलतापूर्वक इस्तेमाल होता था

समय के साथ विज्ञान ने जो तरक्की की इस पद्धति ने , उस तरक्की को पश्चिम ने एलोपैथ का नाम देकर उस पर अपनी मुहर लगा दीऔर भेंड-चाल जनता ने उसका अंधानुसरण करके अपनी वैदिक चिकित्सा पद्धति 'आयुर्वेद' को उपेक्षित कर दिया आज बड़े-बड़े चिकित्सा उपकरण विज्ञान की उप्लाधियाँ हैं , एलोपैथ की नहीं इसको प्रत्येक चिकित्सा पद्धति के साथ जोड़ा जाना चाहिए, किसी एक के साथ नहींताकि विज्ञान के अविष्कारों का लाभ लेते हुए आतुर ( रोगी ) की चिकित्सा की जा सके

हमारे वैदिक ग्रंथों में वर्णित 'नीम', 'हल्दी', 'ब्राम्ही' जैसे द्रव्यों को भी ये अपने नाम से पेटेंट करा कर सब पर कब्जा कर लेना चाहते हैंज़रुरत है हमें अपनी धरोहर की रक्षा करने की और अपनी चमत्कारिक वैदिक पद्धति में विश्वास करने की

चीनी, ग्रीक, रोमन, पर्सियन, इजिप्शियन , अफगानिस्तानी और यूरोपियन भी हमारे देश भारत आये और इस वैदिक पद्धति को सीखा इन्होनेलेकिन अफ़सोस की इन्होने हमारे वैदिक ग्रंथों का अनुवादन करके और थोड़ी हेर-फेर करके इसे आधुनिक पद्धति का नाम दे दिया, और विज्ञान के विकास के साथ जोड़कर खुद को ज्यादा उन्नत बता दियाभारत में अंग्रेजी शासन ने हमें गुलामी में जकड लिया और हमारे ग्रथों को नष्ट किया गयाउस समय उन्होंने इस चिकित्सा पद्धति की बहुत उपेक्षा की मुगलों ने इसे अरबी भाषा में अनुवादित करके इसी की सहायता से यूनानी पद्धति को जन्म दिया

अतः सभी चिकित्सा पद्धतियों के मूल में हमारी वैदिक चिकित्सा पद्धति 'आयुर्वेद' ही है, लेकिन इसे उपेक्षित और तिरस्कृत किया गयाआजादी के बाद आयुर्वेद ने पुनः अपनी प्रतिष्ठा को वापस प्राप्त किया है , और देश भर में १०० से ज्यादा आयुर्वेदिक विद्यायालाओं में विद्यार्थी उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं

७० के दशक के बाद से आयुर्वेद की लोकप्रियता विदेशों में बहुत बढ़ी है, वहां से विद्यार्थी इस पद्धति को सीखने निरंतर यहाँ रहे हैं, और अपने देश को समृद्ध कर रहे हैं , लेकिन अफ़सोस की हमारे अपने देश में इस वैदिक चिकित्सा पद्धति के प्रति जागरूकता बहुत कम है

काहे री नलिनी तू कुम्हलानी, तेरे ही नाल सरोवर पानी...

हमारे पास तो चमत्कारिक धन-सम्पदा है, लेकिन अफ़सोस की हमारे पास 'पारखी नज़रें' नहीं हैंपश्चिम की अंधी दौड़ ने हमें इस चमत्कारी चिकित्सा-पद्धति (आयुर्वेद) से होने वाले लाभों से वंचित कर रखा है, और मूढ़ जनता अनेक हानिकर प्रभावों वाली पश्चिमी चिकित्सा पद्धति से अपना इलाज करके स्वयं को क्षति पहुंचा रही है

Zeal