Sunday, September 23, 2012

विधुर-विलाप

सब नहीं , केवल पौरुष-विहीन पुरुषों में , सशक्त होती नारी के कारण जो असुरक्षा की भावना बढ़ रही है , उसके कारण वे आर्त क्रंदन करने को मजबूर हो रहे हैं ! उनके कातर-प्रलाप और रूंदन  से जहाँ धरती और आकाश भीग रहे हैं वहीँ सशक्त नारी की हुंकार से उठती टंकार द्वारा समस्त चराचर जगत और चारों दिशायें गुंजायेमान हो रही हैं !

पति को , देवर को , सास को मार गयी
फिर पूरे भारत को चट से डकार गयी
रेफरी बनी खड़ी है केंद्र में घेरे के ,
चाटुकार खिलाड़ी हैं चारों तरफ खेमे में
जोर से बजाती है सीटी जब उचक के
एक नया घोटाला आता है चमक के
शर्म का जो पानी था, कोरों पे टिका हुआ
कोयले की राख ने उसको भी सुखा लिया
कौन से नछत्र लिए आई थी धरा पे तुम,
कालसर्प योग कब जाएगा भारत का ?

उपरोक्त कविता पर जहाँ राष्ट्रवादियों ने इसकी भूरी-भूरी सराहना की वहीँ समाज के अनेक ठेकेदारों का विधुर-विलाप भी देखने को मिले ! उनके रूंदन की ध्वनि बढाने विभिन्न प्रान्तों से पुरुष-रुदालियों का एक बड़ा समूह  भी आया ! विधुर -विलाप करने वालों ने नारीवादियों को ललकार कर उनसे भी विलाप करने का निवेदन किया , लेकिन जब जागरूक नारियों ने अनावश्यक प्रलाप/विलाप करने इनकार किया तो इन पुरुष-रुदालियों ने इनको भी अपशब्द कहकर अपमानित किया !   फिर क्या था इनके सरगना ने हमारे प्रधानमन्त्री की तरह आदेश जारी किया की - 'अपशब्दों की न्यायिक जांच कराई जाए शब्दकोष से" .....

विद्वानों ने शब्दकोष खंगाल डाले....खैर मेरे जैसे आम लोगों ने शब्दकोष पर मगजमारी करने से ज्यादा रोचक इन पुरुष-रुदालियों के लिए उपयुक्त शब्दावली ढूँढने का प्रत्न किया तो पाया की इनके कातर-प्रलाप के लिए, 'विधुर-विलाप' शब्द ही ज्यादा उपयुक्त है ! क्योंकि ये लोग अपना स्वाभिमान बेचकर कविता में निहित नारी  के चरणों में बैठकर , देश के साथ गद्दारी ही कर सकते हैं  और जब उस नारी पर आक्रमण होता है तो इनका विधुर-विलाप शुरू हो जाता है !

पाठकों को विधुर-विलाप का अर्थ शब्कोष में तलाशना न पड़े उसके लिए इसका अर्थ नीचे दे रही हूँ--


वन्दे मातरम् !

3 comments:

दिवस said...

आपसे ऐसे ही करारे जवाब की उम्मीद थी मुझे। क्या उठाकर पटका है।
इन पुरुष रुदालियों को अब समझ आ गया होगा कि किससे पंगा लेने चले थे?
बहुत आश्चर्य हुआ था जब आपकी उस राष्ट्रवादी कविता में भी इन जाहिलों ने विलाप की सामग्री जुटा ली। इससे दो बातें साफ़ नज़र आ रही हैं-
१. इन्होने सोनिया गांधी के सामने अपना राष्ट्रीय सम्मान बेच दिया है।
२. इन्हें दिव्या का खौफ सोने नहीं देता।

अब कहने को तो दिव्या और सोनिया दोनों ही स्त्रियाँ हैं किन्तु इन्हें खौफ दिव्या का है। इन जाहिल पुरुषों को सोनिया जैसी डायन के आगे झुकना मंज़ूर है किन्तु दिव्या जैसी राष्ट्रवादी के सामने इनका इनका पौरुष(?) अपमानित होता है।
खैर इन्होने इस लड़ाई को सोनिया बनाम दिव्या बना दिया है। अब आप ही सोचिये कि सोनिया जैसी घातक चुड़ैल से लड़ने के लिए हमे दिव्या जैसी "माँ शक्ति" की ही आवश्यकता है।

आपने विधुर-विलाप का अर्थ देकर, सच में मन मोह लिया।

जय माँ भारती
जय माँ शक्ति

ZEAL said...

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प्रिय भाई दिवस, मेरे इस आलेख पर आपके सिवा किसी ने हिम्मत तक नहीं की कमेन्ट करने की !

वन्दे मातरम् !

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रचना said...

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