Tuesday, September 2, 2014

बच्चों के साथ चर्चा और उनकी सुरक्षा

एक मित्र ने कौतूहल से पूछा कि क्या आप अपने बच्चों से सभी सामाजिक मुद्दों पर चर्चा कर लेती हैं ? क्या आपको नहीं लगता कि अभी उनकी उम्र बहुत कम है इन सब बातों के लिए?
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मेरा ये मानना है कि जो प्रश्न अथवा परिस्थिति जब उपस्थित हो जाए , तब वही सही वक्त होता है उसका उत्तर देने का, चर्चा करने का और जागरूक करने का !

हमारे पास वक्त बहुत कम होता है ! इंटर पास करते ही बच्चे हॉस्टल चले जाते हैं पढ़ने ! कठिनाईयों से भरी इस दुनिया में कदम रख चुके होते हैं जहाँ हर वक़्त उनके माता-पिता उनके साथ नहीं होते उनके मार्गदर्शन के लिए ! उस समय उनके काम वही आता है जो माता-पिता द्वारा पूर्व में सिखाया या जागरूक किया गया होता है !

यदि हम सोचें की १८ के बाद सही उम्र होती है और हम उन्हें तब जागरूक करेंगे , तब तक बहुत देर हो चुकी होती है ! बच्चे अपनी अज्ञानता या भोलेपन के कारण किसी मुश्किल में पड़ सकते हैं , फिर हमें पछतावा होता है कि काश हमने वक्त रहते अपने बच्चों को समझाया होता , बताया होता अथवा जागरूक किया होता इन मुद्दों पर!

आजकल छोटे-छोटे बच्चे सोशल मिडिया पर ऐक्टिव हैं! अनजान लोगों से बहुत जल्दी संपर्क बना लेते हैं , उनके साथ मनचाही योजनाएं बनाकर खुद को मुश्किल में डाल लेते हैं क्योंकि उन्हें स्वयं ही नहीं पता होता कि माता-पिता से छुपाकर वे किस दलदल में घुसते जा रहे हैं ! स्कूल कॉलेज , कोचिंग आदि का वातावरण भी चिंताजनक है , नयी पीढ़ी खुद को कुछ समझदार भी ज्यादा समझती है , माता-पिता को आउटडेटेड समझती है ! इसलिए यदि समय रहते उनको हर मुद्दे पर अच्छा-बुरा समझाकर अपडेटेड रखा जाए तो उनसे भूल होने कि गुंजाइश कम हो जाती है ! उनकी सुरक्षा कि दृष्टि से ऐसा करना ज़रूरी है!

सबसे अहम ये है कि मुझे ये नहीं पता कि मैं कब तक जीवित रहूंगी ! अतः जीते जी ज्यादा से ज्यादा बात समझा दूँ इस कारण से भी अपने बच्चों के साथ बहुत से सामाजिक मुद्दों (उदाहरण के लिए लव जेहाद और उनसे जुड़े क्रमशः कई अन्य विषयों पर चर्चा कर लेती हूँ )