Saturday, May 30, 2015

राजनीति में आरक्षण


नेता चुनाव क्यों लड़ते हैं, 
तिलचट्टों के लिए तो कुर्सी आरक्षित रहती है !
राजनीति में भी दे दो आरक्षण 
खैराती कुर्सियों पर कर्णधारों को बैठने दो
चुनाव के खर्चे बचा लो, 

देश विकास कर लेगा !

Friday, May 29, 2015

नपुंसकों का हिस्सा छीनकर गुंडों को दे दिया

अंबेडकर ने जातिवाद का बीज बोया,
कांग्रेस ने पैसठ साल तक पानी दिया 
अब बीजेपी आकर खाद डाल रही है ! 
सरकारें कभी नहीं बदलती , 
केवल मतलबी चेहरे बदलते हैं
अंबेडकर के दिए ज़ख्म में,
कांग्रेसी चाकू से लहू रिसता रहा
बीजेपी ने आकर ज़ख्म में नमक डाल दिया !
डरपोक , मौकापरस्त सरकारों ने
गुज्जरों की अराजकता के आगे घुटने टेक दिए
इनकी जेब से क्या जाता है,
हमारा हिस्सा, इन पिस्सुओं को खैरात में दे दिया !
गुंडों को मिलेगा आरक्षण तो देश का ख़ाक विकास करेगा ?

Thursday, May 28, 2015

स्वर्ग में आरक्षण ...

सुप्रीम कोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण तो समाप्त कर ही दिया है , अब धीरे धीरे नौकरियों से भी समाप्त कर दिया जाएगा ! गुज्जरों, जाटों और दलितों को अब अपनी काबिलियत दिखानी होगी, प्लेट में हलवा सजाकर नहीं दिया जाएगा !
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आरक्षण एक बार लो, बार बार नहीं , पहले शिक्षा में, फिर कॉम्पिटिटिव एक्साम्स में , फिर नौकरी में फिर पदोन्नति में , अरे कितनी लालच करोगे भाई ? सुरसा की तरह मुंह मत फाड़ो ! कहीं तो कॉमा, फुलस्टॉप लगाओ ! या स्वर्ग तक आरक्षण चाहिए !

Wednesday, May 27, 2015

आरक्षण हटाने का कोई ठोस उपाय बताईये !

देश की बदलती सरकारें भी आरक्षण की ही बैसाखी थामें हैं ! लोगों को आरक्षण देकर बदले में वोट लेती हैं ! सामान्य कैटेगरी वाले चुपचाप अन्याय सहते रहेंगे क्या? आरक्षण वाले उनकी लाश पर चढ़कर अपना तथाकथित विकास कर रहे हैं ! निवेदन है समाधान दीजिये !

Friday, May 8, 2015

कायस्थ ब्राह्मण

कायस्थ ब्राह्मण
http://hi.wikipedia.org/s/zq7 से
कायस्थ, एक 'उच्च' श्रेणी की जाति है हिन्दुस्तान में रहने वाले सवर्ण हिन्दू चित्रगुप्त वंशी क्षत्रियो को ही कायस्थ कहा जाता है। स्वामी वेवेकानंद ने अपनी जाती की व्याख्या कुछ इस प्रकार की है :- एक बार स्वामी विवेकानन्द से भी एक सभा में उनसे उनकी जाति पूछी गयी थी। अपनी जाति अथवा वर्ण के बारे में बोलते हुए विवेकानंद ने कहा था “मैं उस महापुरुष का वंशधर हूँ, जिनके चरण कमलों पर प्रत्येक ब्राह्मण ‘‘यमाय धर्मराजाय चित्रगुप्ताय वै नमः’’ का उच्चारण करते हुए पुष्पांजलि प्रदान करता है और जिनके वंशज विशुद्ध रूप से क्षत्रिय हैं। यदि अपनें पुराणों पर विश्वास हो तो, इन समाज सुधारको को जान लेना चाहिए कि मेरी जाति ने पुराने जमानें में अन्य सेवाओं के अतिरिक्त कई शताब्दियों तक आधे भारत पर शासन किया था। यदि मेरी जाति की गणना छोड़ दी जाये, तो भारत की वर्तमान सभ्यता का शेष क्या रहेगा ? अकेले बंगाल में ही मेरी जाति में सबसे बड़े कवि, सबसे बड़े इतिहास वेत्ता, सबसे बड़े दार्शनिक, सबसे बड़े लेखक और सबसे बड़े धर्म प्रचारक हुए हैं। मेरी ही जाति ने वर्तमान समय के सबसे बड़े वैज्ञानिक (जगदीश चंद्र बसु) से भारत वर्ष को विभूषित किया है।’’स्मरण करो एक समय था जब आधे से अधिक भारत पर कायस्थों का शासन था। कश्मीर में दुर्लभ बर्धन कायस्थ वंश, काबुल और पंजाब में जयपाल कायस्थ वंश, गुजरात में बल्लभी कायस्थ राजवंश, दक्षिण में चालुक्य कायस्थ राजवंश, उत्तर भारत में देवपाल गौड़ कायस्थ राजवंश तथा मध्य भारत में सतवाहन और परिहार कायस्थ राजवंश सत्ता में रहे हैं। अतः हम सब उन राजवंशों की संतानें हैं, हम बाबू बनने के लिए नहीं, हिन्दुस्तान पर प्रेम, ज्ञान और शौर्य से परिपूर्ण उस हिन्दू संस्कृति की स्थापना के लिए पैदा हुए हैं जिन्होंने हमें जन्म दिया है।.
यही वह ऐतिहासिक वर्ग है जो श्रीचित्रगुप्तजी का वंशज है। इसी वर्ग कि चर्चा सबसे पुराने पुराण और वेद करते हैं। यह वर्ग १२ उप-वर्गो में विभजित किया गया है, यह १२ वर्ग श्रीचित्रगुप्तजी की पत्नियो देवी शोभावति और देवी नन्दिनी के १२ सुपुत्रो के वंश के आधार पर है। कायस्थो के इस वर्ग की उपस्थिती वर्ण व्यवस्था में उच्चतम है। प्रायः कायस्थ शब्द का प्रयोग अन्य कायस्थ वर्गों के लिये होने के कारण भ्रम की स्थिति हो जाती है, ऐसे समय इस बात का ज्ञान कर लेना चाहिये कि क्या बात "चित्रंशी या चित्रगुप्तवंशी कायस्थ" की हो रही है या अन्य किसी वर्ग की।
पौराणिक उत्पत्त्ति
कायस्थों का स्त्रोत भग्गवान श्री चित्रगुप्तजी महाराज को माना जाता है |कहा जाता है कि ब्रह्मा ने चार वर्ण बनाये (ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य, शूद्र) तब यमराज ने उनसे मानवों का विव्रण रखने मे सहायता मांगी।
फिर ब्रह्मा ११००० वर्षों के लिये ध्यानसाधना मे लीन हो गये और जब उन्होने आँखे खोली तो एक पुरुष को अपने सामने कलम, दवात-स्याही, पुस्तक तथा कमर मे तलवार बाँधे पाया। तब ब्रह्मा जी ने कहा कि "हे पुरुष! क्योकि तुम मेरी काया से उत्पन्न हुए हो, इसलिये तुम्हारी संतानो को कायस्थ कहा जाएगा। और जैसा कि तुम मेरे चित्र (शरीर) मे गुप्त (विलीन) थे इसलिये तुम्हे चित्रगुप्त कहा जाएगा "
श्री चित्रगुप्त जी को महाशक्तिमान क्षत्रीय के नाम से सम्बोधित किया गया है
चित्र इद राजा राजका इदन्यके यके सरस्वतीमनु।
पर्जन्य इव ततनद धि वर्ष्ट्या सहस्रमयुता ददत ॥ ऋग्वेद ८/२१/१८
गरुण पुराण मे चित्रगुप्त को कहा गया हैः
"चित्रगुप्त नमस्तुभ्याम वेदाक्सरदत्रे" (चित्रगुप्त हैं पात्रों के दाता)
पद्म पुराण के अनुसार श्री चित्रगुप्तजी महाराज का परिवार |
श्री चित्रगुप्त जी के दो विवाह हुये, पहली पत्नी सूर्यदक्षिणा / नंदिनी जो सूर्य के पुत्र श्राद्धदेव की कन्या थी, इनसे ४ पुत्र हुए। दूसरी पत्नी ऐरावती / शोभावति धर्मशर्मा (नागवन्शी क्षत्रिय) की कन्या थी, इनसे ८ पुत्र हुए।
अत: कायस्थ की १२ शाखाएं हैं - श्रीवास्तव, सूर्यध्वज, वाल्मीक, अष्ठाना, माथुर, गौड़, भटनागर, सक्सेना, अम्बष्ठ, निगम, कर्ण, कुलश्रेष्ठ | इन बारह पुत्रों का वृतांत नीचे दिया जा रहा है | जिसका उल्लेख अहिल्या, कामधेनु, धर्मशास्त्र एवं पुराणों में भी दिया गया है |
श्री चित्रगुप्तजी महाराज के बारह पुत्रों का विवाह नागराज बासुकी की बारह कन्याओं से सम्पन्न हुआ, जिससे कि कायस्थों की ननिहाल नागवंश मानी जाती है और नागपंचमी के दिन नाग पूजा की जाती है | माता नंदिनी के चार पुत्र काश्मीर के आस -पास जाकर बसे तथा ऐरावती / शोभावति के आठ पुत्र गौड़ देश के आसपास बिहार, उड़ीसा, तथा बंगाल में जा बसे | बंगाल उस समय गौड़ देश कहलाता था, पदम पुराण में इसका उल्लेख किया गया है |
माता सूर्यदक्षिणा / नंदिनी के पुत्रों का विवरण
1 - भानु (श्रीवास्तव) - श्री भानु माता नंदिनी के जेष्ठ पुत्र थे | उनका राशि नाम धर्मध्वज था | श्री भानु मथुरा में जाकर बसे | इसलिये भानु परिवार वाले माथुर कायस्थ कहलाने के साथ - साथ सूर्यवंशी भी कहलाये |
2 - विभानु (सूर्यध्वज) - भटनागर उत्तर भारत में प्रयुक्त होने वाला एक जातिनाम है, जो कि हिन्दुओं की कायस्थ जाति में आते है। इनका प्रादुर्भाव यमराज, मृत्यु के देवता, के पाप पुण्य के अभिलेखक, श्री चित्रगुप्त जी की प्रथम पत्नी दक्षिणा नंदिनी के द्वितीय पुत्र विभानु के वंश से हुआ है। उनकी राशि का नाम श्यामसुंदर था | विभानु को चित्राक्ष नाम से भी जाना जाता है। महाराज चित्रगुप्त ने इन्हें भट्ट देश में मालवा क्षेत्र में भट नदी के पास भेजा था। इन्होंने वहां चित्तौर और चित्रकूट बसाये। ये वहीं बस गये और इनका वंश भटनागर कहलाया। इनका वास स्थान भारत के वर्तमान पंजाब प्रदेश में भट्ट प्रदेश था। इनकी पत्नी का नाम मालिनी था। उपासना देवी- जयन्ती
3 - विश्वभानु (बाल्मीकि) - श्री विश्वभानु माता नंदिनी के तृतिय पुत्र थे | उनका राशि नाम दीनदयाल था |
श्री विश्वभानु का परिवार गंगा - यमुना दोआब, जिसको प्राचीन काल में साकब द्वीप कहते थे, में जाकर बसे | इसलिये विश्वभानु परिवार वाले सक्सेना कायस्थ कहलाने के साथ - साथ सूर्यवंशी भी कहलाये |
3 - वीर्यभानू (अष्ठाना) - श्री वीर्यभानू माता नंदिनी के सबसे छोटे पुत्र थे | उनका राशि नाम माधवराव था | श्री वीर्यभानू का परिवार बांस देश (काश्मीर), में जाकर बसे | इसलिये वीर्यभानू परिवार वाले श्रीवास्तव कायस्थ कहलाने के साथ - साथ सूर्यवंशी भी कहलाये |
माता ऐरावती / शोभावति के पुत्रों का विवरण
1- चारु (माथुर) - श्री चारु माता ऐरावती / शोभावति के जेष्ठ पुत्र थे | उनका राशि नाम पुरांधर था | श्री चारु का परिवार सूर्यदेश (बिहार) देश, में जाकर बसे और उनके राष्ट्रध्वज का चिन्ह सूर्य होने के कारण सूर्यध्वज कहलाये |
2- सुचारु (गौड़) - श्री सुचारु माता ऐरावती / शोभावति के द्वितीय पुत्र थे | उनका राशि नाम सारंगधार था | श्री सुचारु का परिवार पश्चिम बंगाल के अम्बष्ठ जनपद, में जाकर बसे इस कारण अम्बष्ठ कहलाये |
3- चित्र (चित्राख्य) (भटनागर) - श्री चित्र माता ऐरावती / शोभावति के तृतीय पुत्र थे | उनका राशि नाम सारंगधार था | श्री चित्र का परिवार गौड़ देश (बंगाल), में जाकर बसे इस कारण गौड़ कहलाये |
4- मतिभान (हस्तीवर्ण) (सक्सेना) - निगम उत्तर भारतीय कायस्थ होते हैं। श्री मतिभान (हस्तीवर्ण) माता ऐरावती / शोभावति के चौथे पुत्र थे | उनका राशि नाम रामदयाल था | श्री मतिभान (हस्तीवर्ण) का परिवार निगम देश (काशी), में जाकर बसे इस कारण निगम कहलाये|
5- हिमवान (हिमवर्ण) अम्बष्ठ - श्री हिमवान (हिमवर्ण) माता ऐरावती / शोभावति के पाँचवें पुत्र थे | उनका राशि नाम सारंधार था | श्री हिमवान (हिमवर्ण) का परिवार गौड़ देश (बिहार), में प्राचीन करनाली नामक ग्राम में जाकर बसे इस कारण कर्ण कहलाये |
6- चित्रचारु (निगम) - श्री चित्रचारु माता ऐरावती / शोभावति के छटवें पुत्र थे | उनका राशि नाम सुमंत था | श्री चित्रचारु का परिवार अष्ठाना देश (छोटा नागपुर), जो नागदेश से भी प्रसिद्ध है में जाकर बसे इस कारण अष्ठाना कहलाये |
7- चित्रचरण (कर्ण) - श्री चित्रचरण माता ऐरावती / शोभावति के सातवें पुत्र थे | उनका राशि नाम दामोदर था | श्री चित्रचरण का परिवार बंगाल में नदिया जो बंगाल की खाडी के ऊपर स्थित है, में जाकर बसे | सेवा की भावना के कारण अपने कायस्थ कुल में श्रेष्ठ माने गये इस कारण कुलश्रेष्ठ कहलाये |
8- अतिन्द्रिय (जितेंद्रय) (कुलश्रेष्ठ) - श्री अतिन्द्रिय (जितेंद्रय) माता ऐरावती / शोभावति के सबसे छोटे पुत्र थे | उनका राशि नाम सदानंद था | श्री अतिन्द्रिय (जितेंद्रय) का परिवार बाल्मीकि देश (पुराना मध्य भारत), में जाकर बसे इस कारण बाल्मीकि कायस्थ कहलाये |
श्रीचित्रगुप्त जयंती
चित्रगुप्त जयंती
कायस्थ भाई दूज के दिन श्रीचित्रगुप्त जयंती मनाते हैं। इस दिन पर वे कलम-दवात पूजा (कलम, स्याही और तलवार पूजा) करते हैं, जिसमें पेन, कागज और पुस्तकों की पूजा होती है। यह वह दिन है जब भगवान श्रीचित्रगुप्त का उदभव ब्रह्माजी के द्वारा हुआ था और यमराज अपने कर्तव्यों से मुक्त हो, अपनी बहन देवी यमुना से मिलने गये, इसलिए इस दिन पूरी दुनिया भैयादूज मनाती है और कायस्थ, श्रीचित्रगुप्त जयंती का जश्न मनाते हैं।
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==श्री चित्रगुप्त जी की आरती==
जय चित्रगुप्त यमेश तव, शरणागतम शरणागतम।
जय पूज्य पद पद्मेश तव, शरणागतम शरणागतम।।
जय देव देव दयानिधे, जय दीनबन्धु कृपानिधे।
कर्मेश तव धर्मेश तव, शरणागतम शरणागतम।।
जय चित्र अवतारी प्रभो, जय लेखनी धारी विभो।
जय श्याम तन चित्रेश तव, शरणागतम शरणागतम।।
पुरुषादि भगवत अंश जय, कायस्थ कुल अवतंश जय।
जय शक्ति बुद्धि विशेष तव, शरणागतम शरणागतम।।
जय विज्ञ मंत्री धर्म के, ज्ञाता शुभाशुभ कर्म के।
जय शांतिमय न्यायेश तव, शरणागतम शरणागतम।।
तव नाथ नाम प्रताप से, छुट जायें भय त्रय ताप से।
हों दूर सर्व क्लेश तव, शरणागतम शरणागतम।।
हों दीन अनुरागी हरि, चाहे दया दृष्टि तेरी।
कीजै कृपा करुणेश तव, शरणागतम शरणागतम।।