Monday, July 20, 2015

कौवा मोती खायेगा ..

भारत देश में पढ़े-लिखे , ईमानदार और सत्यनिष्ठ लोगों की इज़्ज़त नहीं होती ! उन्हें अपमानित और प्रताड़ित किया जाता है ! येन केन प्रकारेण , दो कौड़ी के ढकोसलेबाज़ कुर्सी तक पहुँच जाते हैं और मनमानी करते हैं ! देशवासियों और देश के उत्थान से कोई सरोकार नहीं होता उन्हें !
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सत्य ही कहा था किसी ने -
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एक दिन ऐसा आएगा ,
हंस चुगेगा दाना तिनका
कौवा मोती खायेगा ..


Tuesday, July 14, 2015

Lal Bahadur Shastri


Lal Bahadur Shastri doing office work in Airplane. Along with him is his wife, Lalita Devi.
Most of us would have studied about Shastri in our school textbooks in which we were taught that he was initially a freedom fighter, then became prime minister after Nehru, and later died in Tashkent. Thats all we know. So, let me share some interesting facts about him here..
October 2nd. Whose birthday is it? Yeah correct. Also, it is Shastri's birthday on same day and most of us dont even know it, let alone celebrate.
If you combine dedication, ethics, honesty, integrity, responsibility, & austerity, you get Shastri!! The above photo is the best example to show his dedication towards his job. Can we think of today's politician doing his job in flight like this? Forget flight, do they do their jobs with this much of dedication even in their office?
Want to see how our politicians work? Watch this 1 min clip
http://www.youtube.com/watch?v=Fu8uqMEmyRE
Talking about integrity & responsibility.
There was a major railway accident sometime in 1950s. Being the railway minister at that time, he took moral responsibility and offered his resignation (However, Nehru did not accept it). That shows the moral standards he maintained.
Talking about honesty and ethics.
During freedom struggle, when he was jailed by the British, he was informed that his daughter was sick. So he asked for 15 days permission and was granted on the condition that he will not participate in freedom struggle in these 15 days. By the time he reached his home, his daughter had died. After performing the funeral for 3 days, he immediately returned back to jail inspite of having 12 more days of freedom from jail!!
Similarly, one day, while in jail, he was told that his son was sick and this time he got a permission of 7 days of leave from jail. He stayed with his son all the 7 days. The son had still not recovered, but Shastri went back to jail to keep up his word!! (Fortunately, the son survived)
Talking about austerity.
He is popularly called "The politician who made no money". He was born in a poor family, he lived his life in simplicity and austerity. And he died as a poor man. He really knew what austerity meant.
These are the kind of leaders we need today who can demonstrate what real austerity means. Not by someone who boards a train for the first time in his life at the age of 38, and spends a night in huts to prove that he is asture. We need austerity lessons from people who have really experienced poverty so that they understand what real poverty means. Not by someone who has zillions in swiss banks and talks about eradicating poverty here.
There is a nice article with more thought provoking facts about Shastri written by his press advisor:
http://in.rediff.com/news/2004/oct/06spec1.htm

जजमेंटल मत बनिए :

किसी को भी समझने के लिए पूरी एक उम्र भी काफी नहीं है ! फिर कैसे आप किसी की एक पोस्ट को पढ़कर उसे पूरी तरह समझ लेने का दावा कर सकते हैं ! पोस्टें तो प्रितिक्रिया मात्र है हमारे इर्द गिर्द घट रही घटनाओं की ! जब किसी भी दो व्यक्ति का जेनेटिक-कम्पोज़ीशन एक सा नहीं होता तो विचार कैसे एक होंगें ? विभिन्न विचारधाएं ही तो इस संसार की सबसे बड़ी खूबसूरती हैं ! उसी का आनंद लीजिये ! अधीर होकर लिखने वाले पर आक्रमण मत कर दीजिये ! बाद में आपको ही पछतावा होता है और ग्लानि होती है ! लेकिन अकसर देर हो चुकी होती है तब तक !
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कुछ लोगों का करेंट अफेयर्स पर पकड़ अधिक है तो किसी का दर्शन और साहित्य पर ! कोई शायरी लिखता है अथवा कोई राजनीति पर लिखता है, दोनों से ही उसकी असल ज़िंदगी का पता नहीं लगाया जा सकता ! कुछ लोग अपने गम/ अपनी मुश्किलें पब्लिक में लिखना पसंद नहीं करते ! कमज़ोर नहीं दिखना चाहते और समाज को कमज़ोर भी नहीं बनाना चाहते ! अतः बिना कुछ जाने समझे मत आहत करिये किसी को अपने शब्द बाणों से ! अपशब्द कहकर आप जीतेंगे नहीं , केवल खो देंगे उसे, सदा सर्वदा के लिए !
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यदि फेसबुक पर अलग अलग तरह का लेखन नहीं होगा, तो आपको वैराइटी कहाँ से मिलेगी? पृथक पृथक विचारों से ही तो मन में मंथन होता है और कुछ नया निकल कर आता है ! मुझे तो अपने मित्रों और अमित्रों , सभी की वॉल पर कुछ नया ही मिलता है सदैव ! बेहद उम्दा लिखते हैं सभी ! पढ़कर आनंद आ जाता है ! कुछ मित्रों की टिप्पणियां भी अति उत्कृष्ट होती हैं , बहुत कुछ सीखने को मिलता है उनसे !
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लेकिन कभी-कभी कुछ मित्र अत्यंत नाराज़ होकर अपशब्द लिख देते हैं , व्यक्तिगत आक्षेप लगा देते हैं! ऐसा कहकर वे किस सभ्यता और शिक्षा का परिचय देते हैं?
कल एक मित्र ने कहा आप औरत हो अतः अकल कम है आपके पास!
दुसरे ने मुझे कुंठित और पूर्वाग्रही कहा
तीसरे ने चिढ़कर मेसेज किया --"जाओ खाना बनाओ जाकर"
(बाद में तीनों ने अपनी गलती का एहसास भी कर लिया किन्तु...)
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अब ऐसे लोगों को क्या लिखूं , औरत हो या पुरुष , सभी तो मैडम क्यूरी और आईन्स्टाईन नहीं होते , लेकिन मात्र स्त्री अथवा पुरुष होने भर से ही किसी को कमतर नहीं आँका जा सकता ! किसी को कुंठित और पूर्वाग्रही कहना आपकी स्वयं की कुंठा और पूर्वाग्रह को परिलक्षित करती है ! रही बात खाना बनाने की तो वो खुद ही बनती हूँ भाई , तुम्हारी बीबी आकर नहीं बना जाती ! अतः लेखक/लेखिका पर व्यक्तिगत आक्षेप करने से बचें !
यदि किसी का लेखन और विचार आपको नहीं पसंद आता तो छोड़ दें उसे पढ़ना लेकिन आभासी दुनिया में अनजान और अपरिचित लेखकों का अपमान न करें ! इसका अधिकार शिष्ट जनों के पास नहीं है ! (अशिक्षितों के पास तो सारे अधिकार सुरक्षित होते हैं )
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अतः जजमेंटल मत बनिए ! अधीर मत बनिए ! किसी को समझना ही चाहते हैं तो उस व्यक्ति को लगातार पढ़िए तब थोड़ा थोड़ा समझेंगे ! प्रतिक्रिया सिर्फ पोस्ट पर दीजिये किसी के व्यक्तित्व पर ऊँगली मत उठाईये ! किसी को समझने के लिए एक उम्र भी नाकाफी है आप एक पोस्ट की बात करते हैं?

Monday, July 13, 2015

गैस सब्सिडी

बहुतों ने गैस सब्सिडी छोड़ दी , ज़रा आंकड़े दीजिये कि इससे कितने गरीब घरों को गैस का चूल्हा पहुँचाया गया ? 'Give it up " का विज्ञापन तो बहुत धूम मचा रहा है ! लोगों को इमोशनल ब्लैकमेल करके उन्हें लूट रहा है , लेकिन जो पैसा सरकारी खजाने में जा रहा है , उसका लाभ कौन ले रहा है ?
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प्रतिदिन लगभग २५००० लोग अपनी सब्सिडी छोड़ रहे हैं और उनकी मेहनत की कमाई कहाँ जा रही है , ये सोचने की भी फुर्सत नहीं हैं उनको !
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देते कुछ नहीं , मांगते सब कुछ हैं ! कुछ दिनों में ये जनता कि सैलरी भी मांग लेंगें ! खुद तो जनता के पैसे पर ऐश करते हैं ! मुफ्त वाहन , सिक्योरटी आदि आदि ...
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Sunday, July 12, 2015

चलो झांसा-झांसा खेलें

नेता केवल जनता को ही झांसा नहीं देते बल्कि एक दुसरे को भी भरपूर झांसा देते हैं !


Thursday, July 9, 2015

लखनऊ का ये "नीम का वृक्ष"

लखनऊ का ये "नीम का वृक्ष" , पांच सौ वर्षों से अधिक पुराना है ! इसकी उम्र, अक्षय-वट-वृक्ष से भी ज्यादा बताई जाती है ! इसका पूरा विस्तार कैमरे की ज़द में नहीं आ रहा ! दोनों तरफ से निकलती शाखाएं देखिये, विस्तार पाकर दोनों तरफ से भूमिगत हो गयी हैं ! सैकड़ों वर्षों से ये वृक्ष सुरक्षित था लेकिन अब देखिये ये जो सफ़ेद टाइल्स का चबूतरा दिख रहा है ये मात्र चार माह पूर्व बना है , जो नीम की जड़ों को क्षति पहुंचा रहा है और उसकी नैसर्गिक छटा को कम कर रहा है ! ऑक्सीजन न मिल पाने के कारण जड़ें प्रायः सूख सी रही हैं ! श्रद्धालुओं की भावना का सम्मान करते हुए उनसे करबद्ध निवेदन है की कृपया इस तरह के पक्के चबूतरे न बनवाएं ! ये वृक्ष केवल कच्ची मिटटी के चबूतरे में ही अगले कई वर्षों तक जीवित रह सकेगा ! इस बृक्ष के चारों तरफ दस किलोमीटर में आम के बाग़ हैं ! इतना अलौकिक दृश्य कम ही देखने को मिलता है ! बचाईये अपनी धरोहर ! संरक्षित करिये इन वृक्षों को !




"अक्षय-वटवृक्ष "

लखनऊ में चन्द्रिका देवी मंदिर से आधे किलोमीटर आगे जाने पर ये अद्भुत एवं ५०० वर्ष पुराना "अक्षय-वटवृक्ष " देखने को मिलेगा ! इसका विस्तार एक बहुत बड़े क्षेत्र में हैं ! हज़ारों की संख्या में इसकी जड़ें दिखाई देंगीं ! सफ़ेद रंग में रंगे सभी वृक्ष, एक ही वृक्ष की जड़ें हैं ! मान-मानता पूरी होने पर लोग इस वृक्ष के नीचे अनेक मंदिर बनवा रहे हैं , जिससे वृक्ष को क्षति पहुंच रही है, अतः कृपया निर्माण कार्य न करवाएं यहाँ ! यहाँ हरिवंश राय बाबा की समाधि है , उसी पर यह वृक्ष उगा हुआ है !