Friday, January 13, 2017

मनकामेश्वर का चमत्कार


लखनऊ का मनकामेश्वर मंदिर । प्रसिद्द है श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ती के लिए । हम भी बोर्ड परीक्षा में अच्छे अंकों की मनोकामना लिए हुए वहाँ गए ।
बात पुरानी है । हमारी उम्र तकरीबन 16 वर्ष । शिवरात्रि का महापर्व । समस्त परिवार के साथ दर्शन करने गए । मंदिर के बाहर बहुत दूर तक स्त्री पुरुष की प्रथक कतारें महादेव के दर्शनों को आतुर ।
धीरे धीरे कतार खिसक रही थी । हम भी मंदिर प्रांगण तक पहुंचे । वहां लगा कपाट खुलता था और थोड़े श्रद्धालुओं को अंदर लेकर फिर बंद कर दिया जाता था । बंद कपाट के इस तरफ व्यग्र भीड़ उग्र होती जा रही थी । भीड़ इतनी ज्यादा की सरसों डालने की जगह नहीं । लोगों द्वारा पीछे से पड़ने वाला धक्का इतना तीव्र था की अग्रिम पंक्ति के लोगों का दम घुट रहा था लेकिन वापसी की कोई गुंजाइश नहीं थी ।
मेरी स्थिति बेहद नाज़ुक हो चुकी थी । कपाट के चौखट से लगी दीवार की edge शरीर में धंसती जा रही थी । पीछे से श्रद्धालुओं की फ़ौज बढ़ती जा रही थी और सामने के कपाट खुलने के इंटज़ार में बन्द थे । हमारी सांस रुकने लगी । मुँह से चिल्लाने की कोशिश की तो आवाज़ नहीं पा रही थी । घुरघुराने की आवाज़ निकल रही थी ।
साक्षात मृत्यु दिखाई दे रही थी । पता नहीं भीड़ के उस शोर में दीदी को मेरी घुटी घुटी आवाज़ कैसे सुनाई दे गयी । उन्होंने भीड़ के बीच में से हाथ बढाकर मेरा कुर्ता मुट्ठी में पकड़ा और पूरी ताकत से पीछे खींचा । बमुश्किल एक सेंटीमीटर पीछे खिंचे होंगे हम तब तक भीड़ के धक्के से हमारा स्थान बदल गया और वो दीवार जो हड्डी को तोड़ने को आतुर थी उससे बचाव हो गया और साँस का आवागमन शुरू हो गया । मृत्यु टल गयी थी ।
किन्तु इतना ही पर्याप्त न था । आगे जो होने जा रहा था वो सोचकर दिल दहल जाता है । उसी क्षण कपाट खुला । पीछे भीड़ के दबाव से अग्रिम पंक्ति के लोग तो फुटबॉल की तरह उछलकर सामने मंदिर प्रांगण में गिरे । कितने कुचले गए पता नहीं लेकिन मेरे साथ जो घटा वो कल्पना से परे किसी चमत्कार से कम नहीं था ।
हम भी भीड़ के धक्के से उछलकर सामने वरांडे में गिरे । लेकिन जहाँ गिरे वो फर्श नहीं थी बल्कि वहाँ तैनात पुलिस वाले का हाथ था जिस पर हम टंग गए जैसे किसी डोरी पर सूखने के लिए टंगे कपडे । उसने मुझे धीरे से उतारा और पूछा , "बेटा चोट तो नहीं लगी" ! मैं बिलकुल ठीक थी , सकुशल ।
यकीन ही नहीं हुआ । पहले दीदी ने जीवनदान दिया फिर मानो , साक्षात मनकामेश्वर महादेव ने उस पुलिसवाले के रूप में आकर मुझे भीड़ द्वारा कुचले जाने से बचा लिया ।
उस घटना को 20 25 साल गुज़र गए हैं लेकिन उसका असर ये है कि इतने सालों में फिर कभी , किसी पर्व पर मंदिर नहीं गए । केवल आम दिनों में जब भीड़ नहीं होती , तभी जाती हूँ ।
हर हर महादेव ।